भारतीय वायु सेना के श्रीनगर स्टेशन के एक विंग कमांडर पर बलात्कार और यौन शोषण के आरोपों ने इस बात को रेखांकित किया है कि सुरक्षा और सशस्त्र बलों को लैंगिक संवेदी बनाने की तत्काल आवश्यकता है। खासतौर पर यह देखते हुए कि इनमें बड़े पैमाने पर महिलाओं को भर्ती किया जा रहा है। वायु सेना ने महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में स्वीकार करना आरंभ किया है, ऐसे में एकीकरण का मामला केवल सामाजिक जरूरत नहीं रह गया है बल्कि यह सुरक्षा संबंधी अनिवार्यता भी है।
पीड़िता को अपनी समस्या के निवारण के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस के पास जाना पड़ा। यह तथ्य बताता है कि ऐसा विभिन्न संस्थागत कमियों के कारण हुआ। जानकारी के मुताबिक पीड़िता की रिपोर्ट में पुरुषों के दबदबे वाले कार्यस्थल की कमियां खुलकर सामने आईं। सबसे पहले उसने कहा कि यौन हमले के पहले उसे दो वर्ष तक अधिकारियों के शोषण और मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा।
पीड़िता ने कहा कि इस वर्ष 1 जनवरी को ऑफिसर्स मेस में नए साल के जश्न के बाद उस पर हुए यौन हमले की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया। स्टेशन को इस शिकायत को व्यवस्थित तरीके से लेने में दो महीने से अधिक समय लगा और ऐसा प्रतीत हुआ कि इस दौरान उचित प्रक्रिया से समझौता किया गया। चिकित्सकीय परीक्षण भी पीड़िता के जोर देने के बाद हुआ, वह भी जांच के अंतिम दिन।
कमेटी का यह कहना भी चौंकाता है कि प्रत्यक्षदर्शी नहीं होने के कारण शिकायत अपूर्ण थी। यह इसलिए कि यौन संबंध खुले में बनने की संभावना कम होती है और ऐसे संबंध तो बिल्कुल नहीं जो जबरदस्ती बनाए गए हों। जानकारी के मुताबिक पीड़िता ने यह दावा भी किया है कि उसके एक गवाह पर स्टेशन छोड़ने का दबाव बनाया गया जबकि दूसरे गवाह को ‘प्रताड़ित’ किया गया। जब भी आततायी शक्तिशाली स्थिति में होता है तो ऐसा आमतौर पर देखने को मिलता है।
जल्दबाजी में बनी आंतरिक शिकायत समिति द्वारा समुचित कदम नहीं उठाए जाने के कारण पीड़िता को पुलिस के पास जाना पड़ा। पुलिस ने संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की। सैन्य और अर्द्धसैनिक बलों में महिलाओं की भर्ती के मामले में भारत का रिकॉर्ड अच्छा है। सेना की तीनों शाखाओं में 9,000 से अधिक महिलाएं कार्यरत हैं और थल सेना तथा नौ सेना को करियर प्रोग्रेसन की लिंग निरपेक्ष नीतियों का पालन करना होता है। बहरहाल इन बातों के बावजूद इन संगठनों में महिलाओं की संख्या बेहद कम है।
उदाहरण के लिए 33 फीसदी के तय स्तर के बजाय पुलिस बलों में केवल 12 फीसदी महिलाएं हैं। इसके चलते गृह मंत्रालय को महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए मशविरा जारी करना पड़ा। बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों में इन बलों में 20 फीसदी से अधिक महिलाएं हैं। अन्य राज्यों में भी भले ही महिलाओं की उपस्थिति बढ़ जाए, तो भी पुरुषों के दबदबे वाले इन संस्थानों की संस्कृति में जल्दी बदलाव आता नहीं दिखता।
यह तथ्य इस बात को रेखांकित करता है कि इन संस्थानों में और अधिक लिंग संवेदी कार्यक्रम चलाने की जरूरत है तथा साथ ही यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बेस और स्टेशन न केवल महिलाओं के काम करने के लिए सुरक्षित हों बल्कि वरिष्ठ कर्मचारी भी यौन शोषण और हमलों की शिकायतों पर सही प्रतिक्रिया दें।
निश्चित तौर पर दुनिया का कोई भी सैन्य बल जहां महिलाओं को शामिल किया गया हो (खासकर लड़ाकू भूमिका में), यौन शोषण की समस्या से सुरक्षित नहीं है और महिलाओं को भी अपनी सेवाओं को लिंग संवेदी नीतियां और माहौल बनाने के लिए मनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी है।
उदाहरण के लिए अमेरिकी सेना में ऐसे मनोविज्ञानियों की नियुक्ति की जाती है जो यौन हमलों और विभिन्न पदों पर आसीन लोगों के नुकसानदेह व्यवहार को रोकने के लिए प्रशिक्षित होते हैं। बिना ऐसी अनुकूल नीतियों के भारत की लैंगिक निरपेक्षता के मामले में बेहतरीन सैन्य और अर्द्ध सैन्य बल तैयार करने की कोशिशें दूर की कौड़ी रह जाएंगी।