सरकार के नए कार्यकाल का आरंभ यह अवसर प्रदान करता है कि नीतिगत मसलों पर दोबारा नजर डाली जाए और लंबी अवधि के दौरान टिकाऊ वृद्धि हासिल करने के लिए जरूरी हस्तक्षेप किए जाएं। ऐसा ही एक क्षेत्र है व्यापार। यह बात अच्छी तरह स्थापित है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार समेकित मांग को गति प्रदान करता है और कोई भी देश बिना निर्यात में महत्त्वपूर्ण इजाफा किए तेज वृद्धि हासिल नहीं कर सकता।
निर्यात में इजाफा विदेशी बचत पर भारत की निर्भरता कम कर देगा और बढ़ती श्रम शक्ति के लिए रोजगार तैयार करेगा। इससे घरेलू मांग को गति प्रदान करने में मदद मिलेगी और गुणक प्रभाव उत्पन्न होगा। अगर तुलना की जाए तो भारत आने वाले वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।
बहरहाल वैश्विक वस्तु निर्यात में उसकी हिस्सेदारी की बात करें तो विश्व व्यापार संगठन के आंकड़ों के अनुसार 2023 में यह केवल 1.8 फीसदी थी। अमेरिका और चीन के आंकड़ों से तुलना करें तो वहां यह क्रमश: 8.5 और 14.2 फीसदी थी। भारत का लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह वैश्विक वस्तु निर्यात में अपनी हिस्सेदारी में इजाफा करे। वर्ष 2023-24 में भारत के वस्तु निर्यात में 3.09 फीसदी की ऋणात्मक वृद्धि दर्ज हुई।
भारत को निरंतर उच्च निर्यात वृद्धि हासिल करने के लिए अपनी व्यापार नीति की व्यापक समीक्षा करनी होगी। भारत में टैरिफ ऊंचा है जो घरेलू विनिर्माताओं खासकर सूक्ष्म, छोटे और मझोले उपक्रमों की निर्यात प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करता है। इसके अलावा भारत किसी बड़े क्षेत्रीय या प्राथमिकता वाले व्यापार समझौते से भी नहीं जुड़ा है।
अगर उसका ऐसा कोई जुड़ाव होता तो कच्चे माल की लागत में कमी आती और भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखला का हिस्सा बनने में मदद मिलती। भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) से भी बाहर रहने का निर्णय लिया। यह एक अहम व्यापार समझौता है जो दुनिया के सर्वाधिक गतिशील क्षेत्रों में से एक में हो रहा है। भारत इससे शायद इसलिए बाहर रहा क्योंकि उसे इसमें चीन का दबदबा होने की आशंका है।
बहरहाल, इससे चीन के आयात पर हमारी निर्भरता में कोई कमी नहीं आई। हालांकि भारत ने कई देशों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन शायद यह वैश्विक मूल्य श्रृंखला से जुड़ने में सहायक नहीं है। भारत को जलवायु को लेकर बढ़ती चिंताओं के हिसाब से भी तैयारी कर लेनी चाहिए। यूरोपियन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (ईबीएएम) जैसे उपाय भारतीय निर्यात को काफी हद तक प्रतिबंधित कर सकते हैं।
सेवा क्षेत्र की बात करें तो भारत ने बीते वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया है और उसे इसकी गति को बरकरार रखने की जरूरत है। भारत सेवा क्षेत्र में दुनिया का सातवां सबसे बड़ा निर्यातक है और उसने वैश्विक अनिश्चितता के बीच भी काफी मजबूती दिखाई है। वास्तव में देश का सेवा क्षेत्र केवल आउटसोर्सिंग से आगे बढ़कर विकास और शोध के क्षेत्र में भी आगे बढ़ा है।
जैसा कि रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों के हालिया शोध से पता चला है, 2015-16 की तुलना में 2022-23 में देश में वैश्विक क्षमता केंद्र करीब 60 फीसदी बढ़े। यह बताता है कि देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की रुचि बढ़ी है। हालांकि इस मजबूती के बावजूद सेवा निर्यात ने 2023-23 में 4.9 फीसदी के साथ तीन वर्षों की सबसे कम वृद्धि दर्ज की। इसका अध्ययन करना आवश्यक है।
सेवा निर्यात बढ़ाने के लिए भारत को मानव संसाधन में निवेश करना होगा। चूंकि सेवा क्षेत्र कुशल कर्मियों पर बहुत अधिक निर्भर करता है इसलिए बुनियादी और उन्नत शिक्षा, पेशेवर प्रशिक्षण, शोध और विकास में भारी निवेश आवश्यक हैं। सेवा निर्यात केंद्रों में विविधता लाना भी मददगार होगा। देश का आधा से अधिक सेवा निर्यात अमेरिका और कनाडा जाता है। ऐसे में वहां आर्थिक उथलपुथल हमें भी प्रभावित करेगी।
व्यापक नीतिगत स्तर पर भारत को वस्तु निर्यात बढ़ाने पर जोर देना चाहिए और इसे ध्यान में रखते हुए ही हस्तक्षेप किया जाना चाहिए। भूराजनीतिक हालात को देखते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन से दूर विविधता लाना चाहती हैं। यह बात भारत के सामने निवेश जुटाने और विनिर्माण बढ़ाने का बड़ा अवसर लाती है। इससे निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।