India Growth Forecast: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने चालू वित्त वर्ष (2023-24) के लिए राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमान गत सप्ताह जारी किए। इन अनुमानों ने अधिकांश अर्थशास्त्रियों को विस्मय में डाला है क्योंकि ये उम्मीद से ज्यादा हैं।
अनुमान उम्मीद से ज्यादा तब रहे हैं, जब ज्यादार अनुमानों को वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों में दिखी अपेक्षा से अधिक वृद्धि के हिसाब से दुरुस्त या समायोजित कर लिया गया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुमान कहते हैं कि वर्ष 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.3 फीसदी की दर से वास्तविक वृद्धि होगी, जबकि गत वित्त वर्ष में इसकी वृद्धि दर 7.2 फीसदी रही थी।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने दिसंबर की अपनी बैठक में इस वर्ष के लिए वृद्धि का अनुमान बदलकर 7 फीसदी कर दिया था। यह संशोधन इस वर्ष पहली छमाही में 7.7 फीसदी वृद्धि देखने के बाद किया गया। सरकार के अनुमान से संकेत मिलता है कि दूसरी छमाही में गिरावट की रफ्तार अनुमान लगाने वाले पेशेवरों के अनुमान से बहुत धीमी रहेगी।
एक ओर हेडलाइन वास्तविक वृद्धि के आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्वास बढ़ाएंगे मगर दूसरी ओर वित्त मंत्रालय के नीति निर्माताओं को अब भी बदलाव करने पड़ सकते हैं क्योंकि नॉमिनल (मुद्रास्फीति के बगैर) वृद्धि दर धीमी है। नॉमिनल अर्थव्यवस्था में केवल 8.9 फीसदी इजाफे का अनुमान है। इन अनुमानों का बुनियादी उद्देश्य है वित्त मंत्रालय को चालू वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान पेश करने और अगले वित्त वर्ष के लिए बजट अनुमान तय करने में मदद करना।
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ध्यान देने वाली बात है कि वित्त मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष के लिए 10.5 फीसदी नॉमिनल वृद्धि का अनुमान लगाया है। चूंकि अर्थव्यवस्था का आकार पहले जताए अनुमान से कम रह सकता है इसलिए सरकार राजकोषीय घाटे को निर्धारित किए गए स्तर के भीतर रखने में सफल हो गई तो भी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में यह आंकड़ा ज्यादा हो जाएगा।
चूंकि पिछली बार आंकड़ा कम रहा था, इसलिए राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.02 फीसदी तक रहेगा, जो वित्त वर्ष के लिए अनुमानित 5.92 फीसदी घाटे से थोड़ा अधिक होगा। राजस्व और व्यय के मोर्चे पर मौजूदा हालात को देखकर सरकार लक्ष्य हासिल करने के प्रति आश्वस्त है। पिछले कुछ वर्षों में वित्त मंत्रालय नॉमिनल वृद्धि का अनुमान लगाने में काफी संकोची रहा है, इसलिए उसे बेहतर वित्तीय प्रबंधन में मदद मिली है। परंतु इस वर्ष अर्थव्यवस्था मौजूदा मूल्यों पर धीमी गति से बढ़ रही है,
इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले वर्ष के लिए क्या अनुमान पेश किया जाता है। यहां ध्यान रखना होगा कि वृद्धि के अनुमानों में अच्छा खासा संशोधन किया जा सकता है क्योंकि यह बहुत थोड़े से आंकड़ों पर आधारित होते हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने भी उल्लेख किया है कि इसमें विभिन्न क्षेत्रों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है और उनमें से कुछ आंकड़े केवल सितंबर माह तक के ही हैं।
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फिर भी यह मान लिया जाए कि वास्तविक आंकड़े आय के पहले अग्रिम अनुमान के नजदीक हैं तो निजी खपत में केवल 4.4 फीसदी की धीमी वृद्धि चिंताजनक है। 2023-24 में सकल स्थायी पूंजी निर्माण में 10.3 फीसदी की दर से वृद्धि होने का अनुमान है। हालांकि निवेश अच्छी गति से बढ़ रहा है लेकिन निजी खपत में वृद्धि की दर कम होने से उसमें भी सुस्ती आ सकती है।
उदाहरण के लिए यदि खपत की मांग कमजोर रहती है तो निजी कंपनी क्षेत्र भारी निवेश करने को तैयार नहीं होगा। इस बीच सरकार के लिए भी पूंजीगत व्यय बढ़ाना मुश्किल होगा क्योंकि वह खजाने को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है।
केंद्र सरकार का इरादा 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को कम करते हुए सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 फीसदी पर समेटने का है। हालांकि घाटा इस स्तर पर भी ज्यादा ही माना जाएगा। ऐसे में बजट में तथा उसके बाद सरकार के सामने चुनौती यह होगी कि वह खपत में इजाफा करे और लगातार निवेश सुनिश्चत करे। साथ ही उसे राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के पथ पर भी आगे बढ़ना होगा।