चीन ने गैलियम (Gallium) से बनने वाले आठ उत्पादों और जर्मेनियम से बनने वाले छह उत्पादों के निर्यात पर नियंत्रण लगाने का निर्णय लिया है जिससे सेमीकंडक्टर उद्योग में आपूर्ति क्षेत्र की अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है।
यह उन सभी उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों को प्रभावित करेगा जिनमें चिप का इस्तेमाल होता है। यह सीधे तौर पर अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ का प्रतिकार है जिन्होंने उच्च सेमीकंडक्टर उपकरणों का चीन को निर्यात रोक रखा है।
भारत की उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन पहल मसलन 76,000 करोड़ रुपये मूल्य का ‘सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम’ भी बाधित हो सकता है। आपूर्ति की बाधाएं कई उद्योगों में उत्पादन को प्रभावित कर सकती हैं। चीन से निर्यात को लाइसेंस की आवश्यकता होगी और यह स्पष्ट नहीं है कि यह प्रक्रिया कितनी दुष्कर होगी।
वर्ष 2022 में चीन ने दुनिया का 98 प्रतिशत गैलियम और 67 फीसदी से अधिक जर्मेनियम उत्पादित किया। बॉक्साइट अयस्क की खदानों के मिलने के बाद भारत में एल्युमीनियम का उत्पादन शुरू हुआ और उसके सह उत्पाद के रूप में मामूली मात्रा में गैलियम निकलना शुरू हुआ।
बहरहाल जर्मेनियम के मामले में हम पूरी तरह आयात पर निर्भर है। हालांकि कुछ श्रेणी के कोयले तथा जस्ते के अयस्क में यह कुछ मात्रा में पाया जाता है। दोनों धातुएं भारत के महत्त्वपूर्ण खनिज की सूची में शामिल हैं।
गैलियम का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर के सर्किट बोर्ड, एलईडी उपकरणों, थर्मामीटर और बायोमेट्रिक सेंसर आदि में होता है। जर्मेनियम का इस्तेमाल ऑप्टिकल फाइबर, सोलर सेल, कैमरा और माइक्रोस्कोप लेंस तथा इन्फ्रारेड नाइट विजन सिस्टम में होता है।
हर कारोबार और शोध एवं विकास प्रयोगशाला जिसे इन दोनों धातुओं की आवश्यकता होती है, वह चीन के निर्यात लाइसेंस के लिए जूझ रही है। आपूर्ति बाधित होने की आशंका से कीमतों में उछाल आई है। ऐसे में दुनिया भर में विकल्पों की तलाश तेज होगी।
व्यापक तौर पर देखें तो ऐसे अन्य अहम प्राकृतिक संसाधनों की तलाश जोर पकड़ सकती है जिनकी आपूर्ति में चीन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। फिलहाल सरकार ने उद्योग जगत को आश्वस्त किया है कि भारत को गैलियम और जर्मेनियम की कमी का सामना नहीं करना होगा।
बहरहाल, अहम और उभरती तकनीक यानी आईसेट पर भारत-अमेरिका की पहल जहां भविष्य में ऐसी धातुओं की आपूर्ति में मददगार हो सकती है, वहीं अस्थायी तौर पर आपूर्ति बाधित रह सकती है।
गैलियम और जर्मेनियम दुर्लभ नहीं हैं लेकिन चीन इकलौता ऐसा देश है जिसने इन दोनों धातुओं के खनन और परिशोधन में निवेश किया है इसलिए वही इसका किफायती उत्पादक है। जिन अन्य देशों के पास इसका भंडार है उन्हें परिशोधन सुविधा स्थापित करनी होगी। लेकिन इसमें वर्षों का समय लग सकता है और यह प्रश्न बरकरार है कि क्या वैकल्पिक आपूर्ति लागत में चीन का मुकाबला कर पाएगी या नहीं।
चीन कई अन्य दुर्लभ धातुओं तथा लीथियम का अहम आपूर्तिकर्ता है। नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों के निर्माण तथा सेमीकंडक्टर बनाने के लिए इन दुर्लभ धातुओं की आवश्यकता होती है। बिजली चालित वाहनों की तकनीक लिथियम-आयन बैटरी के इर्दगिर्द है। गैलियम और जर्मेनियम का निर्यात अचानक सीमित करने से अन्य देश वैकल्पिक आपूर्ति तैयार करने पर विचार कर सकते हैं।
जीवाश्म ईंधन की भूराजनीति जहां जटिल है। वहां पेट्रोलियम निर्यातक देशों के समूह ओपेक में 23 सदस्य हैं जबकि गैर ओपेक देशों में अमेरिका और कनाडा शामिल हैं। ऐसे में जीवाश्म ईंधन के आयातकों को किसी विपरीत परिस्थिति में विकल्प मिल सकते हैं।
दुर्लभ संसाधनों, लीथियम, गैलियम, जर्मेनियम और ऐसी अन्य धातुओं की भूराजनीति और अधिक जटिल हो सकती है क्योंकि इनका केवल एक ही बड़ा निर्यातक है। हरित ईंधन की ओर बदलाव और उच्च तकनीक आधारित उद्योग विकसित करने की कोशिशों को तब धक्का पहुंच सकता है जबकि चीन अन्य खनिजों पर भी ऐसे निर्यात प्रतिबंध लगा सकता है। चीन के एकाधिकार और भारत-चीन के कठिनाई भरे रिश्तों को देखते हुए भारत को हालात से बहुत सावधानी से निपटना होगा।