सरकार ने पेट्रोल में एथनॉल की मात्रा बढ़ाकर 20 प्रतिशत (ई20) करने की समयसीमा अब 2025 कर दी है। पहले उसने 2030 तक यह लक्ष्य हासिल करने की योजना बनाई थी। सरकार को अपने इस निर्णय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
नीतियों का विश्लेषण करने वाली निजी संस्था ऑर्कस ने पिछले सप्ताह जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि पेट्रोल में मिलाने के लिए आवश्यक 13.5 अरब लीटर एथनॉल का उत्पादन करने के लिए जरूरी कच्चा माल उपलब्ध नहीं है।
यह रिपोर्ट नीति आयोग के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में जारी की गई थी। जैव-ईंधन राष्ट्रीय नीति, 2018 में गन्ना, चावल और मक्का जैसे कृषि उत्पादों के उपयोग से अल्कोहल उत्पादन बढ़ाने की बात की गई है। इन फसलों का इस्तेमाल मुख्यतः भोजन, चारा एवं अन्य उद्देश्यों के लिए भी होता है।
जमीन एवं जल दोनों की कमी होने से इन फसलों का रकबा बढ़ाने की संभावनाएं सीमित हैं। चावल और गन्ना जैसी फसलों की सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है, वहीं मुर्गीपालन एवं स्टार्च (शर्करा) उद्योग के लिए मक्के का उत्पादन पर्याप्त नहीं हो रहा है।
वर्तमान समय में एथनॉल का ज्यादातर उत्पादन चीनी उद्योग में होता है। इस उद्योग को एथनॉल तैयार करने के लिए गन्ने के सभी उत्पादों (रस, तैयार चीनी) का इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है। पिछले वर्ष 36 लाख टन चीनी का उपयोग अल्कोहल बनाने के लिए किया गया था। इस वर्ष यह मात्रा बढ़कर 45 से 50 लाख टन हो सकती है। हमें यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि एक किलोग्राम चीनी तैयार करने के लिए 1,200 से 1,500 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
दुनिया में सबसे बड़ा चीनी और अल्कोहल उत्पादक ब्राजील और कई अन्य देश जैव-ईंधन के लिए इसलिए अधिक गन्ना उगा पाते हैं कि उनके पास कृषि योग्य भूमि काफी मात्रा में उपलब्ध है। भारत में इसकी गुंजाइश नहीं है।
भारत में इन फसलों की उत्पादकता भी वैश्विक औसत से कम है और भोजन एवं चारे की आवश्यकता पूरी करना पहला लक्ष्य होता है। यह सच है कि पिछले वर्ष भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने एथनॉल उत्पादन के लिए 10 लाख टन सब्सिडी युक्त चावल मद्य निर्माणशालाओं (डिस्टिलरियों) को दिया था।
मगर एफसीआई ने अपना भंडार कम करने के लिए ऐसा किया था। बार-बार ऐसा कर पाना संभव नहीं है। अब तो चावल अधिशेष मात्रा में नहीं रहने से इसके निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा रहा है। कुपोषण जैसी समस्या का सामना कर रहे और विश्व भुखमरी सूचकांक में फिसले भारत जैसे देश में चावल एवं मक्का जैसी फसलों का एथनॉल उत्पादन के लिए अधिक इस्तेमाल समझ-बूझ भरा कदम नहीं लगता है।
20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण के लक्ष्य पर पुनर्विचार करने का एक और कारण मौजूद है। इस समय देश में जितने वाहन हैं वे अधिक मात्रा में एथनॉल युक्त ईंधन से चलने के लिए उपयुक्त नहीं है। कम मात्रा में मिश्रण करने के लिए भी वाहनों में बदलाव की जरूरत होगी। इसके अलावा हानिकारक गैसों का उत्सर्जन रोकने का लक्ष्य भी इससे पूरा होता नहीं दिख रहा है।
विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि पेट्रोल में थोड़ी मात्रा में अल्कोहल मिलाना वाहनों के इंजन में बदलाव (ई20- वाहन) पर होने वाले निवेश को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक चौपहिया वाहन पर करीब 3,000-4,000 रुपये और प्रत्येक दोपहिये पर अतिरिक्त 1,000 से 2,000 रुपये खर्च आएगा।
दूसरी पीढ़ी (2जी) की तकनीक के उपयोग से पेट्रोल में मिलाने के लिए एथनॉल तैयार करना अधिक व्यावहारिक तरीका हो सकता है। इस तकनीक के माध्यम से पराली, पुआल, डंठल जैसे फसलों के अवशेष से अल्कोहल तैयार किया जाता है।
पानीपत (हरियाणा), बठिंडा (पंजाब), बारागढ़ (ओडिशा) और नुमालीगढ़ (असम) में कम से कम चार ऐसे 2जी एथनॉल संयंत्र लगाए जा रहे हैं। ऐसे और संयंत्र लगाने से पेट्रोल में मिलाने के लिए अधिक मात्रा में एथनॉल उपलब्ध होगा और फसलों के अवशेष जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण भी कम हो जाएगा।