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  लेख  अभी जाने कितने दरवाजे खुले हुए हैं मेरे लिए…
लेख

अभी जाने कितने दरवाजे खुले हुए हैं मेरे लिए…

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 17, 2008 11:03 PM IST
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दक्षिण कोरिया की कंपनी एलजी अभी दो महीने पहले तक ही कार्पोरेट सामाजिक दायित्वों को सही दिशा में ले जाने के लिए जूझ रही थी।


पहले उसने कोशिशें की कि गांवों को गोद लिया जाए। इसी क्रम में उसने कुछ छोटे कार्यक्रम भी शुरू किए। लेकिन इसका कोई खास परिणाम नहीं निकला। उसके बाद कंपनी ने पुणे और दिल्ली के निकट स्थित अपने संयंत्रों के पास डिस्पेंसरी चलानी शुरू की। वह इसके अलावा भी और कुछ करना चाहती थी। वह चाहती थी कि इसका व्यापक प्रभाव पड़े, और यह बस मात्र एक और शुरुआत ही बनकर न रह जाए।

बहुत सी कंपनियां हैं, जो सामाजिक बदलाव में सक्रिय भूमिका निभाना चाहती हैं, लेकिन वे कोई नई शुरुआत करना चाहती हैं। खासकर कठिन समय में, जैसा कि वर्तमान में है। पिछले सप्ताह दिल्ली में एलजी ने तमाम अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों, उद्योग जगत के दिग्गजों और प्रवासी भारतीयों  से हाथ मिलाने का फैसला किया।

अमेरिका के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) यूनाइटेड वे इंटरनेशनल के साथ वे सभी एक मंच पर इकट्ठा हुए। इस एनजीओ के 25 सदस्य हैं, जो 10 देशों से ताल्लुक रखते हैं। इनमें से ज्यादातर सैमसंग और प्रॉक्टर ऐंड गैंबल जैसी कंपनियों के प्रमुख हैं।

बैंकर्स ट्रस्ट, आयोवा के अध्यक्ष सुकु राडिया बताते हैं कि अमेरिका के कोलोरैडो में जब 1880 के दशक में सिल्वर खदानें बंद कर दी गईं तो हजारों लोगों की नौकरियां चली गईं। उस समय एक एनजीओ ने ही इस बुरे दौर में साथ दिया था। चैरिटी ने उस बुरे वक्त में भी अपना काम जारी रखा ।

 बुरे वक्त में चैरिटी के  लिए और करने की संभावनाएं बढ़ती ही हैं। ये संस्थाएं चाहती थीं कि कुछ और किया जाए। इसलिए उन सभी ने मिलकर फंड और स्वयंसेवकों की व्यवस्था की और इसके बाद युनाइटेड वे का जन्म हुआ। राडिया भारतीय मूल के हैं।

जल्द ही इस मॉडल ने अन्य लोगों को भी आकर्षित किया तथा तमाम और उद्योग और चैरिटीज  अन्य देशों में इसकी शाखाओं से जुड़ती गईं।  आज स्थिति यह है कि उनकी 47 देशों में शाखाएं हैं। जब संयुक्त रूप से कोशिशें शुरू हुईं तो रोटरी क्लब चेन की तरह इसे विस्तार मिलता गया।

इसके साथ तमाम स्थानीय उद्योग और एनजीओ जुड़कर इसकी शाखा बनते गए। यूनाइटेड वे ने अपनी विस्तार योजना के तहत सबसे हाल में नई दिल्ली में अपनी शाखा खोली है। इसने कुछ महीने पहले बेंगलुरु में पहली शाखा खोलकर अपनी विस्तार योजना शुरू की और इसका प्रसार भारत के 11 बड़े शहरों तक किया जाना है।

राडिया शाखा खोले जाने के अवसर पर हाल ही में राजधानी में आए थे, जिनका कहना है कि, आर्थिक मंदी ने उनकी योजनाओं पर कोई असर नहीं डाला है।इस योजना की नींव उस समय पड़ी थी, जब पिछले साल कुछ प्रवासी भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने यूनाइटेड वे इंडिया लीडरशिप काउंसिल के साथ हाथ मिलाया था।

उन्होंने भारत में यूनाइटेड वे के कार्यों को आर्थिक मदद करने के लिए अमेरिका में धन एकत्र करने में मदद की।  इस काउंसिल में अमेरिका के प्रमुख उद्यमी, जिसमें द देशपांडे फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक निशीथ आचार्य, द प्रिंसिपल ग्रुप के चेयरमैन बैरी ग्रिसवेल, विनमार इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट हेमंत गोर्डिया, मूर्ति लॉ फर्म की संस्थापक और मैनेजिंग एटार्नी शीला मूर्ति, आई गेट कार्पोरेशन के चेयरमैन और संस्थापक सदस्य सुनील वाधवानी और राडिया जैसे दिग्गज शामिल हैं।

यूनाइटेड वे गुजरात के वडोदरा में पिछले 22 साल और मुंबई में पिछले 6 साल से काम कर रहा है। इसकी नई शाखाएं दिसंबर तक कर्नाटक के हुबली और धारवाड़ और उसके बाद पुणे, कोलकाता, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों में खोले जाने का प्रस्ताव है।

नई दिल्ली में इस कंपनी के बोर्ड में एटी ऐंड टी, एजीलेंट टेक्नोलॉजीज, एलजी, एमवे, अमेरिकन एक्सप्रेस, कारगिल इंडिया, कार्लसन होटल्स और हजेज नेटवर्क कंपनियां शामिल हैं। इस नेटवर्क का उद्देश्य है कि स्थानीय लोगों की जरूरतों के मुताबिक लंबे समय के लिए उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके।

इसके साथ ही इस कार्य के लिए स्थानीय स्तर पर ही धन एकत्र किया जाए, जिसमें जवाबदेही का सख्ती से पालन हो। सामाजिक बदलाव के लिए अधिकतर विचार लोगों के बीच से ही उभरकर सामने आते हैं। यह कम पूंजी से भी शुरू हो सकता है, जैसा कि सेवा (सेल्फ इंप्लायड वीमन एसोसिएशन) या ग्रामीण बैंक या समुदाय आधारित सामाजिक सुरक्षा फंड के माध्यम से होता है।

लेकिन क्या इस तरह के विचार से उस तरह का सामाजिक बदलाव आ सकता है जैसा कि मुकेश अंबानी के निवेश से होता है? राडिया का कहना है कि यूनाइटेड वे की कोशिश है कि व्यवसाय की इच्छा रखने वाले लोगों और सामाजिक कार्य करने वाले लोगों की क्षमता का उपयोग किया जाए।

राडिया का यूनाइटेड वे में उतना ही भरोसा है जितना कि वह विकास में उद्यमी पुरुष की भूमिका पर  विश्वास करते हैं।  उनका कहना है कि यूनाइटेड वे का यह काम नहीं है कि धनी लोगों का पैसा जुटाया जाए, बल्कि इसमें हर एक सदस्य को पूरी तरह से सक्रिय किया जाता है जो निर्धारित करता है कि अच्छे और बुरे दौर में धन का उपयोग किस तरह से किया जाना चाहिए।

इसकी वेबसाइट में भी कहा गया है कि आर्थिक तनाव से मानव सेवा कार्य नहीं रुकता, इससे कुछ करने के नए तरीके निकलते हैं। यूनाइटेड वे, लोगों की  एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो बुरे वक्त में कार्य करने की प्रेरणा देती है।

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