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दुनिया में शहरीकरण की अलग-अलग प्रगति

Last Updated- December 11, 2022 | 4:23 PM IST

दुनिया का तेजी से शहरीकरण हो रहा है। अगले कुछ दशकों की अनुमानित जनसंख्या वृद्धि दर को मद्देनजर रखते हुए शहरीकरण की रफ्तार तेज होना तय है। 1960 के दशक में दुनिया की करीब 33 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती थी, जो 2020 तक बढ़कर 55 फीसदी पर पहुंच गई। हालांकि वैश्विक आंकड़े शहरीकरण की अलग-अलग क्षेत्रीय प्रगति का खुलासा नहीं करते हैं। उत्तरी अमेरिका में सबसे ज्यादा शहरी क्षेत्र है, जहां 82 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। इसके विपरीत वर्ष 2020 तक एशिया में शहरीकरण की दर 50 फीसदी थी, जिसका मतलब है कि इसकी आधी आबादी शहरों में रहती थी। अफ्रीका में शहरीकरण की दर महज 43 फीसदी थी। 

शहरीकरण की अलग-अलग प्रगति बहुत अलग तरीके से हुई है। पश्चिमी दुनिया में औद्योगिक क्रांति के बाद शहरीकरण तेज हुआ, जिससे ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों की ओर लोगों का पलायन शुरू हुआ। हालांकि शेष दुनिया में शहरीकरण 20वीं शताब्दी में हुआ है। इसके अलावा अगर हम उत्तरी अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के बीच ऐतिहासिक रुझानों की तुलना करते हैं तो विकसित और विकासशील क्षेत्रों के बीच असमानता स्पष्ट हो जाती है। उदाहरण के लिए 1950 में उत्तरी अमेरिका में करीब 64 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही थी। उस समय यह आंकड़ा एशिया में करीब 17.5 फीसदी और अफ्रीका में 14 फीसदी था। 

जब हम ज्यादा विकसित और कम विकसित क्षेत्रों की तुलना करते हैं तो शहरीकरण की रफ्तार में अंतर साफ हो जाता है। ‘वैश्विक शहरीकरण संभावनाएं 2018 संशोधन’ (संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी) के मुताबिक 1950 में ज्यादा विकसित क्षेत्रों में 29.8 फीसदी आबादी शहरों में रहती थी, जबकि यह आंकड़ा कम विकसित क्षेत्रों में (चीन को छोड़कर) केवल 20.8 फीसदी ही था। अगर हम चीन को कम विकसित क्षेत्रों में शामिल करते हैं तो यह आंकड़ा बढ़कर करीब 54 फीसदी हो जाता है। असल में 1950 में चीन में शहरी आबादी करीब 11.8 फीसदी थी। चीन के विशेष प्रशासित क्षेत्रों (हॉन्ग कॉन्ग और मकाऊ) के 80 फीसदी से अधिक बाशिंदे शहरों में निवास करते थे। वर्ष 2020 तक चीन में शहरी आबादी का अनुपात करीब 61 फीसदी था और इसके विशेष प्रशासित क्षेत्र 100 फीसदी शहरीकरण दिखा रहे हैं। 1958 और 1961 के बीच ग्रेट लीप फॉरवर्ड की अवधि में और चीन की अर्थव्यवस्था खुलने से 1978 के बाद शहरीकरण का दौर आया। 

दुनिया भर में शहरीकरण में बढ़ोतरी असमान रही है, जो किसी देश में विकास और औद्योगीकरण के स्तर पर निर्भर करती है। यह उप-क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रीय असमानताओं को भी बयां करती है। उदाहरण के लिए एशियाई उप-क्षेत्रों में मध्य एशिया में शहरी आबादी का सबसे अधिक प्रतिशत (करीब 32.7 फीसदी) है। हालांकि हम देख सकते हैं कि 2020 तक एशियाई क्षेत्र में शहरीकरण (करीब 48 फीसदी) की तुलनात्मक रूप से रफ्तार सुस्त रही है। अब पूर्वी एशिया में शहरी आबादी का अनुपात करीब 64.8 फीसदी है, लेकिन इस क्षेत्र में चीन और जापान जैसे ज्यादा विकसित देश शामिल हैं। हम जिस दक्षिण एशिया में आते हैं, उसमें 1950 में 16 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही थी। यह 2020 में बढ़कर करीब 36.6 फीसदी पर पहुंच गई है। 1950 में भारत में शहरीकरण की दर (17 फीसदी) दक्षिण एशियाई औसत से अधिक थी और 1970 के दशक में भी इसी तरह बनी रही। 

इसके अलावा क्षेत्रीय विविधताएं देशों में शहरीकरण की अलग-अलग रफ्तार को उजागर करती हैं। उदाहरण के लिए 1950 को शुरुआती बिंदु मानते हैं तो भारत ने इंडोनेशिया (12.4 फीसदी) से अधिक शहरीकरण की दर से शुरुआत की। हालांकि 2020 तक इंडोनेशिया में शहरी आबादी करीब 56.6 फीसदी थी, जो भारत की शहरी आबादी 34.9 फीसदी से काफी अधिक थी। 1982 के बाद इंडोनेशिया की शहरीकरण की दर भारत से आगे निकल गई। इंडोनेशिया में हर साल शहरीकरण की दर में 1-2 फीसदी इजाफा हो रहा है। खास तौर पर इंडोनेशिया के शहरीकरण की कहानी महत्त्वपूर्ण है। विश्व बैंक के मुताबिक उसकी शहरी आबादी 2016 तक हर साल 4.1 फीसदी बढ़ी। 

इस अंतर की बहुत सी वजह हैं, जिनमें  ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक आबादी वृद्धि की अलग-अलग दरें, ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में पलायन, अंतरराष्ट्रीय प्रवास और शहरी बस्तियों की वृद्धि आदि शामिल हैं। आबादी में प्राकृतिक वृद्धि और सभी क्षेत्रों में असमान वितरण क्षेत्रीय अंतर के महत्त्वपूर्ण कारण हैं। शहरी क्षेत्र के पुनर्वर्गीकरण या परिभाषा में बदलाव जैसे प्रशासनिक फेरबदल का भी शहरीकरण के स्तर पर असर पड़ता है। शहरीकरण की दर बहुत ऊंचे स्तरों पर अपने अधिकतम बिंदु पर पहुंचती है। इसके बाद यह यह आम तौर पर गिरती है। ऐसा विकसित देशों में देखा जा सकता है। वर्ष 2050 तक वैश्विक शहरी आबादी में कम से कम 33 फीसदी हिस्सा भारत, चीन और नाइजीरिया का होने का अनुमान है। ऐसे में अगले कुछ वर्षों के दौरान इन विकासशील देशों में शहरीकरण की रफ्तार पर कड़ी नजर रखना जरूरी हो जाता है। 

इसके अलावा आर्थिक बदलाव और आवास, बुनियादी ढांचा एवं सेवा देने जैसी स्थानिक योजना का शहरीकरण के स्तर एवं रफ्तार और अंतर्निहित जनसांख्यिकी गतिशीलता से गहरा संबंध है। हालांकि इन विभिन्नताओं से यह तथ्य नहीं छिपना चाहिए कि शहरीकरण की वैश्विक रफ्तार उत्साहजनक बनी हुई है। 

विश्व बैंक के शहरी विकास पर फीचर के मुताबिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 80 फीसदी हिस्सा शहरों में सृजित हो रहा है। इंडोनेशिया के मामले की तरह ग्रामीण से शहरी अर्थव्यवस्था में परिवर्तन और शहरी अनुपात में बढ़ोतरी के बीच आपसी संबंध अनुमान के मुताबिक एवं स्पष्ट है। ऐसा उच्च विकास, साझा समृद्धि एवं कल्याण और औपचारिक रोजगार एवं श्रम उत्पादकता में बढ़ोतरी के साथ होता है। इसके साथ ही पूरा ध्यान शहरीकरण बढ़ाने पर नहीं दिया जा सकता है। इतना ही जरूरी हमारे शहरों में बुनियादी ढांचा सुविधाओं की व्यवस्था करना है ताकि बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी की जा सकें। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ग्रामीण-शहरी असमानता और नगरों एवं महानगरों के बीच असमानता कम करने के लिए समतामूलक विकास जरूरी है ताकि महज कुछ शहरों में आबादी के जमाव से बचा जा सके। इसके बजाय छोटे शहरों को निवेश और मौकों को अपने यहां लाने के लिए प्रोत्साहन मुहैया कराए जाने चाहिए। इन शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास पर ज्यादा निवेश होना चाहिए और वहां के बाशिंदों के जीवन को आसान बनाने पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए। 

(अमित कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पटीटिवनेस, इंडिया के अध्यक्ष एवं स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के अति​थि प्राध्यापक और विवेक देवरॉय भारत  के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन हैं)

First Published - August 23, 2022 | 9:15 PM IST

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