नए साल की शुरुआत विकसित भारत के नए संकल्प के साथ हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से कहा है कि सरकार वर्ष 2047 तक देश को 30 ट्रिलियन यानी 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक देगी। भारत की स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने में अभी 22 वर्ष बाकी हैं और तब तक भारत को विकसित राष्ट्र में तब्दील करने के इस सफर में कई सुखद मोड़ आएंगे।
विकसित भारत के इस सफर में अन्य क्षेत्रों के साथ डिजिटल ताने-बाने या अर्थव्यवस्था की अहम भूमिका होनी चाहिए। अनुमानों के मुताबिक 2023 में भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था 175 अरब डॉलर की थी और अगले तीन वर्ष में यह बढ़कर 1 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकती है। जो आंकड़े प्रकाशित हुए हैं, उनके मुताबिक 2014 में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में केवल 4.5 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था 2026 तक जीडीपी की 20 फीसदी हो जाएगी।
कुलांचे भरती डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ यूपीआई से लेनदेन की लोकप्रियता, तेजी से पांव पसारता क्विक कॉमर्स (झटपट सामान पहुंचाने की सुविधा), स्टार्टअप कंपनियों में यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली कंपनियां) की बढ़ती संख्या, 5जी एवं 6जी तकनीक की मदद से होने वाले नवाचार तथा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का जलवा कई गुना बढ़ सकता है। मगर यह सब साकार करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी संचार नेटवर्क मजबूत होना चाहिए और मोबाइल ग्राहकों की संख्या बढ़नी चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान दूरसंचार के क्षेत्र में डिजिटल सुविधाओं के मामले में देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर काफी कम हुआ है मगर इस दिशा में अब भी लंबा सफर तय करना है। इस समाचार पत्र में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक हाल ही में नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी बी वी आर सुब्रमण्यम ने कहा था कि 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्त्वाकांक्षा के साथ हकीकत यह भी है कि देश के 90 फीसदी हिस्से का विकास होना तो अभी बाकी है। करीबा आधा ग्रामीण भारत किसी न किसी वजह से अभी तक दूरसंचार सेवाओं से महरूम है, यानी वहां वृद्धि की बहुत गुंजाइश है। इसी वृद्धि के दम पर न केवल डिजिटल अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी बल्कि विकसित भारत के सपनों को भी पंख मिलेंगे।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या शहरी क्षेत्र के करीब पहुंच रही है। अक्टूबर 2024 तक शहरी टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या 66.04 करोड़ थी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह बढ़कर 52.78 करोड़ हो गई थी। वायरलेस सेवाओं में तो अंतर और भी कम रह गया है। शहरी क्षेत्र में इसके 62.55 करोड़ कनेक्शन थे और ग्रामीण इलाकों में 52.48 करोड़ कनेक्शन। मगर दूरसंचार घनत्व (किसी क्षेत्र में हर 100 लोगों के बीच टेलीफोन कनेक्शन की संख्या) के आंकड़े शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर की असली तस्वीर दिखाते हैं। शहरी क्षेत्र में दूरसंचार घनत्व 131.31 बताया गया है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह 58.39 ही है।
एक दशक पीछे जाएं तो अगस्त 2014 में शहरी क्षेत्र में दूरसंचार घनत्व 147.54 था यानी आज की तुलना में बहुत ज्यादा। दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र में यह 44.67 ही था यानी आज के मुकाबले बहुत कम। आंकड़ों को गहराई से देखें तो उस समय शहर में टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या 56.66 करोड़ और ग्रामीण क्षेत्र में 38.52 करोड़ थी। शहरी वायरलेस उपभोक्ताओं की संख्या 54.46 करोड़ थी और ग्रामीण वायरलेस उपभोक्ता 37.69 करोड़ ही थे।
इन दरमियानी वर्षों में दूरसंचार घनत्व कुछ इस प्रकार बढ़ा है। अक्टूबर 2016 में शहरी दूरसंचार घनत्व 160.50 था और ग्रामीण घनत्व 52.43 था। अगले साल अक्टूबर में शहरी दूरसंचार घनत्व बढ़कर 172.98 हुआ और ग्रामीण घनत्व 57.73 हो गया। रिलायंस जियो ने दिसंबर 2015 में अपनी सेवा शुरू की थी और उसने कॉल एवं डेटा शुल्क काफी कम रखे। इसकी वजह से दूरसंचार बाजार में उथल-पुथल मच गई थी। इसका सीधा असर यह हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों सहित देश के तमाम हिस्सों में दूरसंचार घनत्व तेजी से बढ़ने लगा।
दुनिया भर में कोविड महामारी का आंतक फैलने से कुछ महीने पहले जून 2019 में दूरसंचार घनत्व कम होना शुरू हो गया था। उसी समय दूरसंचार शुल्कों में भारीभरकम छूट का दौर भी खत्म होने लगा था। उस समय शहरी क्षेत्र में दूरसंचार घनत्व 160.78 था और ग्रामीण क्षेत्र में 56.99 था। भारत में लॉकडाउन लागू होने के बाद शहरी उपभोक्ताओं की संख्या में ठीकठाक कमी दिखने लगी मगर ग्रामीण उपभोक्ताओं की संख्या में ऐसी कोई गिरावट नहीं दिखी। जून 2020 आते-आते शहरी दूरसंचार घनत्व कम होकर 137.35 (उससे पिछले साल में 160.78 था) रह गया मगर ग्रामीण दूरसंचार घनत्व बढ़कर 58.96 (2029 में 56.99 ही था) हो गया।
इंटरनेट कनेक्टिविटी में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के अंतीर की बात करें तो पिछले साल सरकार द्वारा जारी एक बयान के अनुसार कुल उपभोक्ताओं की संख्या मार्च 2014 के 25.15 करोड़ से बढ़कर मार्च 2024 में 95.44 करोड़ पर पहुंच गई। बयान में कहा गया कि अप्रैल 2024 तक 95.15 प्रतिशत गांवों में 3जी एवं 4जी सेवाओं के साथ इंटरनेट पहुंच चुका था। यहां जो संख्या दी गई है उसके हिसाब से यह शायद ग्राहकों की संख्या नहीं है बल्कि कुल मिलाकर इतने लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे होंगे।
सरकार डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया सहित कई प्रमुख योजनाएं चला रही है मगर जमीनी स्तर पर अंतर देखना है तो नीति निर्माताओं को दूरसंचार उद्योग और उपभोक्ताओं की जरूरतें समझनी होंगी। विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए दूसरे बुनियादी ढांचे और सामाजिक-आर्थिक उपायों के साथ ग्रामीण दूरसंचार घनत्व भी बढ़ाना होगा। मगर चाहे सैटेलाइट दूरसंचार को बढ़ाना हो या यूनिकॉर्न की दुनिया को मजबूत बनाना हो या क्विक कॉमर्स को फैलने देना हो, यह सब मुमकिन करने के लिए राह की सारी बाधाएं दूर करनी ही होंगी।