facebookmetapixel
क्यों बढ़ रही हैं यील्ड और घट रही है लिक्विडिटी? SBI रिपोर्ट ने विस्तार से बतायाSBI अकाउंट हो तो तुरंत पढ़ें! mCASH बंद होने वाला है, बिना रजिस्ट्रेशन पैसे नहीं भेज पाएंगे₹650 डिस्काउंट पर मिलेगा अदाणी का दिग्गज शेयर! 3 किस्तों में पेमेंट, कंपनी ला रही ₹25,000 करोड़ का राइट्स इश्यूछोटी कारों की CAFE छूट पर उलझी इंडस्ट्री; 15 कंपनियों ने कहा ‘ना’, 2 ने कहा ‘हां’Tenneco Clean Air IPO: तगड़े GMP वाले आईपीओ का अलॉटमेंट आज हो सकता है फाइनल, फटाफट चेक करें ऑनलाइन स्टेटसचीनी लोग अब विदेशी लग्जरी क्यों छोड़ रहे हैं? वजह जानकर भारत भी चौंक जाएगाक्रिमिनल केस से लेकर करोड़पतियों तक: बिहार के नए विधानसभा आंकड़ेPEG रेशियो ने खोला राज – SMID शेयर क्यों हैं निवेशकों की नई पसंद?Stock Market Update: हरे निशान में खुला बाजार, सेंसेक्स 100 अंक चढ़ा; निफ्टी 25900 के ऊपरBihar CM Oath Ceremony: NDA की शपथ ग्रहण समारोह 20 नवंबर को, पीएम मोदी समेत कई नेता होंगे मौजूद

तय हो ‘जंगल’ की परिभाषा

Last Updated- December 05, 2022 | 9:44 PM IST

हाल में देश में जंगलों की हालत पर सरकार ने रिपोर्ट पेश की है। इसमें जंगलों की खराब हालत और इसके सिकुड़ने के अलावा एक और पहलू है, जो काफी चिंताजनक है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि जंगल की हदों में व्यावसायिक मकसद से लगाए गए पेड़ों और बाग-बगीचों को भी शामिल किया गया है। जंगल संरक्षण कानून, 1980 के तहत चाय-कॉफी बगानों और रबर के पेड़ों को जंगल के दायरे में शामिल नहीं करने का प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद रिपोर्ट में इसे नजरअंदाज किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 20.6 फीसदी हिस्से को जंगल माना गया है, जो इस बाबत तय लक्ष्य 33 फीसदी से काफी कम है।


इससे हालात की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जंगलों के मामले में एक अन्य चिंताजनक पहलू यह है कि 1980 में जंगल संरक्षण कानून के अमल में आने के बाद से जंगल की सीमाओं में बढ़ोतरी नहीं के बराबर हुई है। उस वक्त कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 19 फीसदी हिस्सा जंगल था।


जहां तक घने जंगलों की बात है, तो इसके कुल क्षेत्रफल का 10.12 से ज्यादा नहीं होने का अनुमान है। बाकी को हरित इलाके के दायरे में रखा जा सकता है। जंगलों में हो रही कमी पर्यावरण और यहां रहने वाले लोगों की आजीविका के लिए खतरनाक संकेत है। इसके नकारात्मक प्रभाव हमें पहले से ही देखने को मिल रहे हैं। मसलन पर्यावरण को हो रहा नुकसान, ग्लेशियरों का सिकुड़ना और नक्सलवाद की वजह से उपजी कानून-व्यवस्था की समस्या।


‘जंगल’ को तय करने में अपनाए गए मापदंड से कई समस्याएं पैदा होंगी और जमीन की उपलब्धता पर एक नया विवाद छिड़ जाएगा। चूंकि किसी भी जमीन को जंगल घोषित करने के साथ ही किसी भी अन्य गतिविधि के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता, लिहाजा जंगल की सुनिश्चित परिभाषा तय करना सबसे अहम है। हालांकि यह बात सच है कि यह परिभाषा तय करना काफी मुश्किल है और इस बाबत ऐसा मानदंड नहीं है, जो पूरी दुनिया में स्वीकार्य हो। बहरहाल, इस बाबत मौजूद कुछ नियमों के जरिये जंगल के लिए मानदंड तय करने की कोशिश की गई है।


फिलहाल जंगल के सीमांकन लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मानदंडों को आधार बनाया जाता है। इसमें जंगल को शब्दकोश के मुताबिक तय किया गया है। जंगल की परिभाषा को तय करने के लिए हाल में वन मंत्रालय ने एक गैरसरकारी संगठन के साथ मिलकर पहल की थी, लेकिन यह कोशिश कामयाब नहीं हो सकी। ‘


जंगल’ की इस उलझन को सुलझाने के लिए व्यापक मापदंड तैयार करने की जरूरत है। इसमें अगर सख्त शर्तों का पालन करना संभव नहीं हो तो कम से कम हरियाली, पर्यावरण और धरती पर मौजूद जीवधारियों की सुरक्षा को जरूर ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके बाद जंगल संबंधी आंकड़ों को दुरुस्त करने का काम शुरू करना होगा।

First Published - April 17, 2008 | 12:25 AM IST

संबंधित पोस्ट