उपभोक्ता संरक्षण कानून तथा एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार (एमआरटीपी) अधिनियम में अनुचित व्यापार व्यवहार(यूटीपी) को विस्तार से परिभाषित किया गया है।
बहरहाल इन दोनों मंचों पर यूटीपी को लेकर तमाम याचिकाएं दायर की गई हैं। जब एमआरटीपी आयोग का अस्तित्व नहीं रहेगा तो इसे उपभोक्ता कानून के हवाले कर दिया जाएगा। प्रतिस्पर्धा अधिनियम को अभी पूरी तरह से लागू किया जाना है, लेकिन यह यूटीपी मामले में सीधा हस्तक्षेप नहीं करता।
विस्तृत परिभाषा के बावजूद, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में एमआरटीपी आयोग के फैसले पर दायर याचिका पर फैसला देते समय दो न्यायाधीश इस मामले में विभाजित नजर आए। एक अन्य फैसले में सेवाओं में कमी के एक मामले में आयोग खुद ही यूटीपी पर भ्रमित नजर आया।
पहला- सर्वोच्च न्यायालय में इस बात को लेकर ही मतभेद है कि इसकी परिभाषा को किस तरह लागू किया जाए। फिलिप्स मेडिकल सिस्टम्स (क्लीवलैंड) इंक बनाम इंडियन एमआरआई डायग्नोस्टिक ऐंड रिसर्च लिमिटेड मामले में भारतीय कंपनी ने अमेरिकी विनिर्माता कंपनी को पूरे शरीर का सीटी स्कैन करने वाली मशीन के लिए ऑर्डर किया था।
यूएस कार्पोरेशन को संबंधित सरकार से लाइसेंस की जरूरत थी, जो समय पर नहीं मिल सका। इसके बाद ऑफर का समय खत्म हो गया और डील टूट गई। फर्मों के बीच नए सिरे से बातचीत शुरू हुई, जो नई मशीन के बारे में थी लेकिन उसकी कीमत ज्यादा थी।
इस तरह से कीमतों में अंतर के चलते भारतीय फर्म ने बातचीत खत्म कर दी और उसी तरह की स्कैनर मशीन जापान से आयात कर ली। भारतीय फर्म आयोग के पास चली गई और उसने आरोप लगाया कि यह प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार है।
अमेरिकी फर्म के इस रवैए के चलते नुकसान हुआ और कंपनी ने इसकी भरपाई की मांग की। आयोग ने पाया कि अमेरिकी फर्म अवैध और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार के लिए दोषी है और उसने उसे हर्जाना देने को कहा। इसके बाद अमेरिकी फर्म ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जिसने आयोग के आदेश को एकतरफा करार दे दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के दोनों न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि आयोग का आदेश खारिज किया जाना चाहिए, लेकिन वे यूटीपी की व्याख्या पर एकमत नहीं थे। एक न्यायाधीश ने पूछा कि ऐसे मामले में यूटीपी कैसे लागू हो सकता है, जबकि किसी माल की आपूर्ति ही नहीं की गई है।
मूल एमआरटीपी अधिनियम, यूटीपी से कोई संबंध नहीं रखता। इस कानून का मतलब सिर्फ प्रतिबंधात्मक व्यापार और एकाधिकार गतिविधियों के विरुध्द ही था। इसके पीछे धारणा यह थी कि विनिर्माता, उत्पादक या डीलरों को विकृत प्रतिस्पर्धा से बचाया जा सके और इससे उपभोक्ताओं को स्वाभाविक रूप से फायदा हो सके।
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसके बाद 1984 में एक संशोधन के बाद यूटीपी की अवधारणा सामने आई। इस न्यायाधीश के मुताबिक संशोधन का मतलब था कि उपभोक्ताओं को गलत, भ्रमित करने वाले विज्ञापनों और खराब सामान सहित इस तरह की अन्य चीजों से बचाया जाए।
इसका मतलब यह नहीं हुआ कि ऐसे मामले में इसे लागू किया जाए जहां सामान बेचा ही नहीं गया, जैसा कि इस मामले में हुआ है। यूटीपी की परिभाषा इसके बाद 1991 में संशोधित की गई, लेकिन बदलाव के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
अन्य न्यायाधीश का मानना था कि इस कानून की बातों की उदारतापूर्वक व्याख्या की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘ऐसी स्थिति हो सकती है, जब किसी खास सामान की आपूर्ति के लिए वादा किया गया हो, जिसके बारे में आपूर्तिकर्ता जानता हो कि वह उसकी आपूर्ति नहीं कर सकता, लेकिन कुछ अन्य मॉडलों के प्रचार की मनोभावना से वह ऐसा कर रहा हो।
ऐसे मामले में उपभोक्ता पर यह दबाव डाला जा सकता है कि वह उसी तरह की सामग्री किसी दूसरी पार्टी से खरीदे और इस प्रक्रिया में उसका नुकसान हो जाए। यहां तक कि वास्तव में बगैर सामान बेचे, आपूर्तिकर्ता की इस तरह की गतिविधि यूटीपी के अंतर्गत आएगी।’
सामान्यतया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में इस तरह के अंतर्विरोध होने पर मामले को बड़ी पीठ के हवाले कर समाधान निकाल लिया जाता है, लेकिन इस मामले में असहमति को जस का तस छोड़ दिया गया। शायद इसका कारण यह हो कि अब आयोग का ही अस्तित्व खत्म होने वाला है।
बहरहाल यूटीपी की परिभाषा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में दी गई है, यह समस्या जल्द ही उपभोक्ता कार्यकर्ताओं और वकीलों के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में आएगी। प्रतिस्पर्धा आयोग में यूटीपी को परिभाषित नहीं किया गया है, वह केवल व्यापार गतिविधियों से संबंधित है।
कमोबेश वे सभी मामले, जो एमआरटीपी आयोग में लंबित पड़े हैं, उन्हें प्रस्तावित प्रतिस्पर्धा आयोग के सामने लाया जाएगा। इसके तहत गठित आयोग की यह भी जिम्मेदारी है कि ‘वह ऐसी गतिविधियों को खत्म करे, जो प्रतियोगिता पर बुरा असर डालती हैं। एक स्वस्थ और अच्छी प्रतियोगिता को बढ़ावा दे, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करे और अन्य के लिए भी स्वतंत्रता प्रदान करे, जो इसमें हिस्सा लेना चाहते हैं।’ इस तरह से यूटीपी की व्याख्या में अधिक स्पष्टता होगी।
अब एक और फैसले को लेकर भ्रम है। एमआरटीपी आयोग ने केएलएम रॉयल डच एयरलाइंस बनाम डॉयरेक्टर जनरल मामले में पिछले महीने फैसला दिया। अमेरिका के न्यू ओरलिएंस में हो रहे एक टूर्नामेंट में बिल्लों और कलगी को पहुंचाने का काम सौंपा गया, जो उस प्रतियोगिता के पहले नहीं पहुंच सका।
इस पर उचित सेवा प्रदान न करने से हुई क्षति का मामला सामने आया। आयोग ने इसे यूटीपी के अंतर्गत माना और एयरलाइंस को आदेश दिया कि ऐसी गतिविधियों को रोक दे और भविष्य में इस तरह की घटना से बाज आए। सर्वोच्च न्यायालय ने एक अपील में इसे सेवा की गुणवत्ता में कमी माना।
उसने कहा कि दोनों की अवधारणा अलग अलग है और कहा कि यूटीपी के तहत आने वाली क्षति को अधिक बड़े मामलों में ही देखा जाए न कि सेवा की गुणवत्ता खराब होने जैसे मसलों में। यह इस तरह के मामले हैं जिन पर भविष्य में उपभोक्ताओं को और भी स्पष्टीकरण की जरूरत होगी।