प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से अपने संबोधन में कहा था कि भारतीय रेल ने वर्ष 2030 तक खुद को शुद्ध-शून्य उत्सर्जक बनाने का लक्ष्य तय किया है। भारत अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के मार्ग पर बढ़ रहे गिने-चुने देशों में शामिल है। मध्य सितंबर में अमेरिका के राष्ट्रपति के जलवायु मामलों के विशेष दूत जॉन केरी भारत की यात्रा पर आए थे। उन्होंने नई दिल्ली में उम्मीद जताई थी कि आगामी जलवायु 26 सम्मेलन में भारत वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिबद्धता जताएगा।
शुद्ध-शून्य का स्तर उस समय हासिल होता है जब वातावरण में बढऩे वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा इनकी मात्रा में हुई कटौती से ज्यादा नहीं रह जाती है। सवाल है कि भारत शुद्ध-शून्य के स्तर की तरफ कदम किस तरह बढ़ाता है? पहला तरीका कुल ऊर्जा मांग में होने वाली वृद्धि को कम करने के लिए जहां तक संभव हो ऊर्जा सक्षमता बढ़ाने का हो सकता है। दूसरा, सभी क्षेत्रों का अधिकतम सीमा तक विद्युतीकरण करना ताकि अंतिम ऊर्जा मांग में जीवाश्म ईंधनों का सीधा इस्तेमाल कम हो। इसके साथ नवीकरणीय संसाधनों का इस्तेमाल कर हरित बिजली उत्पादन को तेजी से अपनाया जाए।
तीसरा, कार्बन कीमत एवं कार्बन करों जैसी नई बाजार व्यवस्थाएं अपनाई जाएं। वैसे भारत ने इस दिशा में अभी तक कदम नहीं बढ़ाए हैं।
चौथा तरीका आंतरिक कार्बन कीमत-निर्धारण (आईसीपी) का हो सकता है। स्वेच्छा से आईसीपी को अपनाने वाली भारतीय कंपनियों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी से भारतीय कॉर्पोरेट जगत में निम्न कार्बन भविष्य को लेकर बढ़ती संवेदनशीलता का पता चलता है। मसलन, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने खुद को वर्ष 2035 तक शुद्ध-शून्य कंपनी बनाने का संकल्प जताया है।
पांचवां तरीका जीवाश्म ईंधनों के अवशिष्ट उपयोग से होने वाले उत्सर्जन के ‘कार्बन जब्ती’ का है। कार्बन जब्ती, उपयोग एवं भंडारण (सीसीयूएस) के तहत किसी बिजली संयंत्र या औद्योगिक इकाई से होने वाले उत्सर्जन को जब्त कर उसे किसी दूसरे मकसद के लिए दोबारा इस्तेमाल करना या भूवैज्ञानिक रूप से व्यवहार्य स्थानों पर पृथक कर दिया जाता है। इसी से कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओ2) का पृथक्करण यानी सीडीआर जुड़ा हुआ है जिसमें वनीकरण के जरिये वायुमंडल से सीओ2 को दूर किया जाता है। सीसीयूएस और सीडीआर की उत्सर्जन कम करने में अहम भूमिका हो सकती है।
ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर बाजार के तौर-तरीकों से काबू नहीं पाया जा सकता है। ऐसा करने के दो तरीके उत्सर्जन ट्रेडिंग सिस्टम (ईटीएस) और कार्बन कर हैं। ‘कैप ऐंड ट्रेड सिस्टम’ के नाम से भी जाना जाने वाला ईटीएस वायुमंडल में जा रही कार्बन एवं ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कुल स्तर की सीमा तय करने का अधिकार शासन को देता है। हालांकि इस सीमा में हर गुजरते साल के साथ क्रमिक गिरावट आती रहती है। इस पद्धति में कम उत्सर्जन वाले प्रतिष्ठान अपने अप्रयुक्त भत्ते उन कंपनियों को बेच सकते हैं जिन्होंने तय सीमा से ज्यादा उत्सर्जन कर दिया। दूसरा तरीका कार्बन कर का है जिसमें अनचाहे उत्सर्जन पर दंडात्मक कर लगाया जाता है।
भारत ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कई तरह की नीतियां एवं कदम उठाए हैं। इनमें कोयला उपकर, नवीकरणीय बिजली अनुबंध एवं नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र शामिल हैं। देश ने हरित ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने में उल्लेखनीय प्रगति की है और इसके वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट और 2030 तक 450 गीगावॉट क्षमता हो जाने की उम्मीद है। यह रेलवे के पूर्ण विद्युतीकरण की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार का तीव्र विस्तार सरकार के एजेंडा में है और भविष्योन्मुखी राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की भी हाल में घोषणा की गई है। ऊर्जा सक्षमता बढ़ाने वाले कई कदम भी उठाए गए हैं। रोशनी फैलाने वाले डायोड और चमकीली रोशनी फैलाने वाले कार्यक्रमों ने देश भर में ऊर्जा सक्षम रोशनी को काफी तेजी दी है।
इन कदमों के साथ भारत के 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में विश्वसनीय मौजूदगी दर्ज कराने की उम्मीद है। स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक होने वाले इस सम्मेलन में अमेरिका समेत करीब 130 देश उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों को और बढ़ाने के लिए राजी हो सकते हैं। चर्चा है कि ये देश वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की प्रतिबद्धता पर सहमति जता सकते हैं। बाकी पांच देशों ने उसके आगे का समय तय किया है जबकि वैश्विक ग्रीनहाउस उत्सर्जन में अकेले 25 फीसदी के लिए जिम्मेदार चीन ने कार्बन तटस्थता के लिए 2060 तक का लक्ष्य रखा है। भारत ने अभी तक कोई समयसीमा नहीं बताई है।
ऐसे में भारत का ग्लासगो सम्मेलन में क्या रुख रहने की संभावना है? ऊर्जा अनुसंधान संस्थान भारत के लिए मुफीद लक्षित वर्ष तय करने से संबंधित कई मॉडल लेकर आए हैं। इनमें 2035 के बेहद आशावादी लक्ष्य से लेकर 2075 तक का सुदूर लक्ष्य भी शामिल है। सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस के तत्वावधान में मोंटेक सिंह आहलूवालिया की निगरानी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, भारत का ग्रीनहाउस उत्सर्जन वर्ष 2035 तक चरम पर पहुंचेगा जिसके बाद वर्ष 2065-70 तक वह शुद्ध-शून्य का लक्ष्य हासिल कर सकता है।
एक लक्ष्य को लेकर भारत की स्वीकृति के पीछे ठोस आधार भी हैं क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन पर बहुस्तरीय कदम को लेकर जारी बहस में द्वि-ध्रुवीय स्थिति में है। भारत दुनिया में कार्बन का चौथा बड़ा उत्सर्जक है और इसी के साथ इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन उदीयमान अर्थव्यवस्थाओं में बेहद कम है। भारत ने जोरदार ढंग से अपनी बात रखी है कि विकसित देशों ने ग्रीनहाउस गैसों का यह जखीरा खड़ा किया है और प्रगति से कोई समझौता करने का सवाल ही नहीं उठता है।
