भारत और जापान के रिश्तों की गहराई और व्यापकता को देखते हुए जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा की भारत यात्रा काफी महत्वपूर्ण है। आर्थिक क्षेत्र में दोनों देशों का रिश्ता ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहा है। जापान की कंपनियों ने भारत में भारी भरकम निवेश किया है और जापान की एजेंसियां अधोसंरचना विकास के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराने में भी अग्रणी रही हैं।
जापान के लिए भारत एक अहम आर्थिक और भू-आर्थिक साझेदार है। हालांकि जापान के नीति निर्माताओं को इस बात से बुरा भी लगा कि भारत ने न केवल क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी में शामिल होने से इनकार कर दिया बल्कि उसने हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे के व्यापार संबंधी हिस्से को लेकर भी ठंडा रुख अपनाए रखा। भारतीय नीति निर्माताओं को अपने जापानी समकक्षों को प्राथमिकता के साथ इस बात को समझाना चाहिए कि आर्थिक साझेदारी को केंद्र में रखते हुए व्यापार और खुलेपन को लेकर उनका नया रुख क्या है।
इसके बावजूद दोनों देशों के पड़ोस को देखते हुए रिश्ते के रणनीतिक हिस्से में भी बीते दशकों में खासी बढ़ोतरी हुई है। खासतौर पर उस समय से जबसे दिवंगत शिंजो अबे और सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने राजनीति पर दबदबा कायम किया था। किशिदा को अबे की तुलना में अधिक उदारवादी माना जाता है। लेकिन व्यवहार में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री की विदेश नीति को जारी रखा है जो आमतौर पर ‘मुक्त और खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र’ के इर्दगिर्द है।
यह विदेश नीति इस क्षेत्र में अमेरिका को सुरक्षा की गारंटी देने वाला अहम देश मानती है। परंतु इसके साथ ही वह जापान, आसियान और भारत को भी अपनी सामूहिक सुरक्षा और चीन से निपटने की दृष्टि से अहम मानती है। किशिदा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी इस क्षेत्र को स्थिर बनाने में साझा हित है क्योंकि चीन की आक्रामकता के कारण यह क्षेत्र लगातार अस्थिर बना हुआ है।
भारत और जापान इस वर्ष क्रमश: जी20 और जी7 के अध्यक्ष हैं। भारत को इस वर्ष टोक्यो में आयोजित होने जा रही जी7 शिखर बैठक में बतौर पर्यवेक्षक आमंत्रित किया गया है। दोनों समूहों के बीच सहयोग अनिवार्य है। विकास और सुरक्षा दोनों मोर्चों पर यह सहयोग जरूरी है। हाल ही में जी7 ने जलवायु फाइनैंसिंग और ट्रांजिशन यानी कम उत्सर्जन की दिशा में बदलाव की फाइनैंसिंग को लेकर जो प्रस्ताव रखे हैं तथा विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार को लेकर जो भी कुछ कहा है, उनके बारे में जी20 को ही निर्णय लेना होगा तभी वह अपनी पकड़ बना सकेगा।
जी7 यह भी मानता है कि पर्यावरण की दिशा में व्याप्त गतिरोधों और व्यापार के खुलेपन को लेकर भविष्य में जो भी अंत:संबंध कायम होने हैं उन्हें ‘जलवायु क्लबों’ के माध्यम से अंजाम देना होगा जहां विभिन्न देश अगर उत्सर्जन को लेकर एक समान रुख अपनाते हैं तो व्यापारिक गतिरोध कमतर है। यह भी एक ऐसा सवाल है जिसे भारत की अध्यक्षता वाले जी20 को संबोधित करना होगा। भारत इस बात से अवगत है कि सितंबर में होने वाली बैठक में कम से कम उतना सामंजस्य तो दिखाना होगा जितना कि बाली में गत वर्ष इंडानेशिया की अध्यक्षता में नजर आया था।
रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण किए जाने को लेकर व्याप्त मतभेद तब से अब तक और अधिक गहरे हो गए हैं। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की ताजा मॉस्को यात्रा से भी यह बात साबित होती है। जी7 के अध्यक्ष के रूप में जापान एक अहम साझेदार है जो यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि जी20 के अमीर देश युद्ध से इतर अन्य मुद्दों पर सहमति बनाने के क्रम में भारत के प्रयासों के साथ हैं। किशिदा भारत से कीव की अघोषित यात्रा पर गए हैं। इससे पता चलता है कि सुरक्षा मसलों को लेकर जापान कितना सक्रिय है।