देश के कॉरपोरेट जगत में वर्ष 2026 में कई अन्य चीजों के साथ कुछ बड़े और महत्त्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने यह घोषणा की है कि जियो प्लेटफॉर्म्स अगले साल की पहली छमाही में अपना आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाएगी लेकिन दो और बड़े आईपीओ के बारे में अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, जो शायद इसी के आसपास आ सकते हैं।
बाजार को और ताकत देते हुए, स्टील से लेकर सॉफ्टवेयर तक के क्षेत्र में अपना साम्राज्य कायम करने वाला टाटा समूह अपनी नियंत्रक कंपनी, टाटा संस को अगले साल सूचीबद्ध कर सकता है। हालांकि यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले पर निर्भर करेगा, जिसके जल्द ही आने की उम्मीद है। तीसरी सूचीबद्धता फ्लिपकार्ट की हो सकती है जिसका स्वामित्व अब अमेरिका की कंपनी वॉलमार्ट के पास है और यह एक ब्लॉकबस्टर आईपीओ हो सकता है।
आईपीओ के आकार पर हमेशा चर्चा होती रहती है जिससे यह तय होता है कि कोई कंपनी कितना पैसा जुटाएगी। जियो के आईपीओ के बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है और यह अभी तक का भारत का सबसे बड़ा आईपीओ हो सकता है, जो वर्ष 2024 में बाजार में पहली बार प्रवेश करने वाले ह्युंडै के 3.3 अरब डॉलर को भी पीछे छोड़ देगा। लेकिन आकार से बढ़कर, किसी कंपनी की सूचीबद्धता उसके लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित होती है जिसके कारण ही निवेशकों के बीच उसकी छवि और कंपनी के विकास की दिशा तय होती है। अब देखना यह है कि जियो, टाटा और फ्लिपकार्ट की संभावित सूचीबद्धता कैसी रहेगी?
जियो प्लेटफॉर्म्स रिलायंस के दूरसंचार कारोबार सहित सभी डिजिटल कारोबार की नियंत्रक कंपनी है और इसकी सूचीबद्धता से इस क्षेत्र में और परिपक्वता आने की उम्मीद है। जियो का आईपीओ आने के बाद, सभी निजी दूरसंचार कंपनियां (एयरटेल और वोडाफोन आइडिया) शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो जाएंगी। हालांकि वोडाफोन आइडिया भारी कर्ज के कारण आर्थिक स्तर पर चुनौतियों का सामना कर रही है लेकिन सूचीबद्धता से आमतौर पर कंपनियों को विस्तार करने और ग्राहकों को बेहतर अनुभव देने के लिए नए निवेश के लिए पैसा मिलता है। रिलायंस समूह ने पहले ही हाल में हुई अपनी 48वीं वार्षिक आम सभा में जियो की विदेश में विस्तार योजनाओं के संकेत दिए हैं।
रिलायंस की वार्षिक आम बैठक के बाद विश्लेषकों की रिपोर्ट में यह एक मुख्य विषय रहा है कि जियो और अन्य दूरसंचार कंपनियां अपनी सेवाओं की कीमतें (टैरिफ) बढ़ा सकती हैं। भारत दुनिया में सबसे कम शुल्क पर दूरसंचार सेवाएं देने वाले देशों में से एक है। उद्योग के शीर्ष अधिकारी अक्सर अधिक शुल्क लागू करने की जरूरत के बारे में बात करते रहे हैं, लेकिन बढ़ोतरी की रफ्तार बहुत धीमी रही है।
मासिक आधार पर प्रति ग्राहक औसत राजस्व (एआरपीयू) जो एक दूरसंचार कंपनी के प्रदर्शन का पैमाना होता है, वह लंबे समय से लगभग 200 रुपये से नीचे ही रहा है जबकि दुनिया की दूसरी कंपनियों की कमाई इससे कई गुना अधिक है। हाल ही में, एयरटेल ने 250 रुपये के एआरपीयू को पार किया था, जिसे एक बड़ी उपलब्धि माना गया।
जियो की सूचीबद्धता से दूरसंचार क्षेत्र के एआरपीयू के बढ़ने की उम्मीद है, जिससे दूरसंचार कंपनियों को 5जी, 6जी और अन्य नई तकनीकों में अधिक निवेश करने में मदद मिलेगी। सैटेलाइट ब्रॉडबैंड को भी जियो की सूचीबद्धता से फायदा हो सकता है जिससे खासकर दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट पहुंच बढ़ने की उम्मीद है।
दूसरी बड़ी सूचीबद्धता यानी टाटा संस की बात करें तो आरबीआई को अभी यह साफ करना है कि उसे एक सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनी बनना होगा या इससे छूट दी जाएगी। आरबीआई के नियमों का पालन करने की समयसीमा सितंबर 2025 थी, इसलिए सभी की निगाहें इस समय आरबीआई पर हैं।
आरबीआई ने सितंबर 2022 में टाटा संस को एक शीर्ष स्तर (अपर लेयर) की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) का दर्जा दिया था, जिसके तहत उसे तीन साल के भीतर सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध होना जरूरी था। हालांकि, कुछ महीने पहले, टाटा संस ने आरबीआई से छूट मांगी और एक ‘मूल निवेश कंपनी’ (सीआईसी) के रूप में खुद का पंजीकरण खत्म करने का अनुरोध किया ताकि वह सूचीबद्धता की प्रक्रिया से बच सके। इसके लिए, टाटा संस ने खुद को एक ऋण-मुक्त कंपनी घोषित की जो इस तरह की छूट पाने के लिए एक मुख्य शर्त है।
अगर टाटा संस सूचीबद्ध होती है तो यह दूसरे अन्य कारणों से होगी जिनके लिए आमतौर पर कोई आईपीओ लाया जाता है। सबसे अहम बात यह है कि इसमें कंपनी के ‘आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन’ (एओए) में बदलाव करना होगा, जो कंपनी के आंतरिक नियम, शासन के तरीके और निदेशकों के अधिकारों व शक्तियों को तय करते हैं। इसका यह भी अर्थ हो सकता है कि नामित निदेशकों के वीटो पावर में भी बदलाव हो, जिससे टाटा ट्रस्ट और टाटा संस के बीच संबंधों में भी बदलाव आएगा। टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी के साथ टाटा ट्रस्ट सबसे बड़ा शेयरधारक है।
सूचीबद्धता का यह भी अर्थ हो सकता है कि शापूरजी पलोनजी समूह, अपनी कुछ हिस्सेदारी बेच दे, जिसके पास टाटा संस में 18 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी है। कुल मिलाकर, अगर आरबीआई सूचीबद्धता पर जोर देता है, तो यह एक ऐसा कदम हो सकता है जिसका देश के कॉरपोरेट जगत पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
अंत में, फ्लिपकार्ट की सूचीबद्धता अलग कारणों से सुर्खियां बटोरेगी। रिलायंस और टाटा जैसे पुराने और स्थापित कारोबारों से अलग, फ्लिपकार्ट वास्तव में कारोबार की एक नई दुनिया और एक नए भारत का प्रतीक है। इसे अक्सर भारतीय ई-कॉमर्स का ‘पोस्टर बॉय’ कहा जाता है। फ्लिपकार्ट की शुरुआत 2007 में हुई थी और यह देश का पहला ऐसा घरेलू स्टार्टअप बना जिसकी सफलता की कहानी दुनिया भर में जानी गई। पिछले 18 वर्षों में, बेंगलूरु के कोरमंगला से लेकर अमेरिका के बेंटनविले में मौजूद वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली कंपनी बनने तक की इसकी यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
भारत में सूचीबद्धता फ्लिपकार्ट के लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, जिससे यह भारत के खुदरा बाजार में और गहराई से जुड़ सकेगी। ऐसे समय में जब भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच स्वदेशी की भावना जोर पकड़ रही है, फ्लिपकार्ट की सूचीबद्धता एक मजबूत संदेश दे सकती है। कुछ समय से आईपीओ का बोलबाला रहा है। लेकिन अलग-अलग कारोबार और ऐतिहासिक महत्त्व से जुड़ी तीन बड़ी कंपनियों के आईपीओ का एक साथ आना एक ऐसी कहानी की पृष्ठभूमि तैयार कर सकता है जिसकी अभी शुरुआत हो रही है।