गृह मंत्री अमित शाह ऐलान कर चुके हैं कि इस साल अक्टूबर-नवंबर में संभावित बिहार विधान सभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के विजयी होने पर मुख्यमंत्री की कमान नीतीश कुमार के पास ही रहेगी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बिहार इकाई के प्रमुख दिलीप जायसवाल ने भी शाह के सुर में सुर मिलाया है। गृह मंत्री के बयान का सीधा मतलब यह भी है कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की सीटें भाजपा से कम रहने पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहेंगे। मगर बिहार में इधर-उधर जो पोस्टर दिख रहे हैं उनमें चिराग पासवान की दावेदारी नजर जा रही है। एक पोस्टर पर अंग्रेजी में लिखा है , नेक्स्ट सीएम, चिराग पासवान’। दूसरे पोस्टर में हिंदी में लिखा है, ‘न दंगा होगा, न फसाद होगा, न बवाल होगा, क्योंकि हमारा मुख्यमंत्री चिराग पासवान होगा।‘
देश में दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले दिग्गज नेताओं में एक राम विलास पासवान के पुत्र चिराग भी इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि उनमें मुख्यमंत्री बनने और यह पद संभालने की योग्यता है। वह कह भी चुके हैं कि उनकी सोच उनके पिता से अलग है, जिनकी राज्य के बजाय राष्ट्रीय राजनीति में अधिक दिलचस्पी थी। रामविलास छह प्रधानमंत्रियों के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्री रहे।
बिहार विधान सभा के आगामी चुनाव में चिराग का नारा ‘बिहार प्रथम’ और ‘बिहारी प्रथम’ पर केंद्रित है। चिराग इस समय केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हैं मगर उन्होंने राज्य विधान सभा का चुनाव लड़ने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है। केंद्र में मंत्री के तौर पर वह हरेक कदम पर अपनी बात देश के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचा रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि अगर मध्य प्रदेश के जनजातीय मामलों के मंत्री विजय शाह उनकी पार्टी में होते तो वे उन्हें पार्टी से आजीवन निष्कासित कर देते। शाह ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की जानकारी देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। जदयू के साथ पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी-राम विलास (लोजपा-रामविलास) राजग के साथ मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ने का जरिया साबित हुई हैं।
मगर बड़ा सवाल यह है कि चिराग के इस आत्मविश्वास का कारण क्या है? वर्ष 2020 के विधान सभा चुनाव में वह राजग से बाहर चले गए और राज्य की 137 विधान सभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। उनकी पार्टी केवल मटिहानी सीट जीत सकी मगर चुनाव में उसने कुल 5.7 प्रतिशत मत बटोर लिए। माना गया कि चिराग की पार्टी ने 25 से अधिक सीटों पर जदयू के वोट में सेंधमारी की और इस वजह से भी जदयू अनुमान से कमतर प्रदर्शन कर सकी। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि 25 से अधिक सीटों पर जदयू की संभावनाओं को लोजपा ने चोट पहुंचाई।
इसके बाद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में लोजपा का प्रदर्शन सराहनीय रहा। पार्टी ने केवल पांच सीटों पर चुनाव लड़ा और पांचों जीत लाई। उसे 7 प्रतिशत मत मिले। चिराग को लगता है कि जब सभी राजनीतिक दल युवाओं के वोट बटोरने की होड़ में जुटे हैं तब बिहार में दलितों की बड़ी आबादी के लिए वह सबसे भरोसेमंद चेहरा हैं। मगर भाजपा में कई लोग ऐसा नहीं मानते।
चिराग फिल्म अभिनेता रह चुके हैं और कंगना रनौत (भाजपा की लोकसभा सांसद) के साथ एक फिल्म में काम भी कर चुके हैं। बाद में वह अपने परिवार की विरासत संभालने के लिए राजनीति में आ गए। जब तक रामविलास जीवित रहे, पार्टी के सामने आने वाली चुनौतियों से अच्छी तरह निपटते रहे। मगर उनके निधन के बाद पशुपति पारस (राम विलास के छोटे भाई) ने लोजपा तोड़ दी। चिराग को हमेशा लगा कि लोजपा को तोड़ने के पीछे भाजपा का हाथ है। जब भाजपा ने चिराग की जगह पारस को जगह दी तो वह अकेले और अलग-थलग पड़ गए। मगर 2020 के विधान सभा चुनाव में यह बात साफ हो गई कि चिराग की पार्टी के धड़े में मत प्रतिशत के लिहाज से अब भी बहुत दम बचा है। फिर भी बिहार की भाजपा इकाई में दलित नेताओं का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग का प्रदर्शन को भाजपा की सफलता माना जाए, लोजपा-रामविलास की नहीं।
अब तक चिराग राजग में आदर्श सहयोगी बने रहे हैं। उनकी पार्टी ने वक्फ विधेयक के पक्ष में मतदान किया और अपने मुस्लिम समर्थकों को अपने इस निर्णय की वजह भी पूरी तत्परता से समझाई। बिहार विधान सभा चुनाव अब नजदीक आ रहा है और अगले कुछ दिनों में सीटों की साझेदारी पर बातचीत शुरू हो जाएगी।
यह पेचीदा काम होगा और संभव है कि चिराग के कभी गरम-कभी नरम तेवर की एक वजह यह भी हो। मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश करने के लिए उन्हें अधिक सीटें जीतनी होंगी मगर यह तभी होगा जब उन्हें चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त सीटें दी जाएंगी। बहरहाल चिराग के सामने सभी विकल्प खुले हैं। कुछ दिनों पहले ही राष्ट्रीय जनता दल (राजग) के नेता तेजस्वी यादव के साथ उनकी मुलाकात गर्मजोशी के साथ हुई।
इस बैठक के बाद दोनों ही दलों की तरफ से यह कहा गया कि राजनीति को छोड़ दें तो चिराग और तेजस्वी भाई की तरह हैं! तेजस्वी ने सार्वजनिक रूप से चिराग को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर बिहार लौटने और राज्य की राजनीति से जुड़ने की सलाह दी है। फिलहाल ऐसा कुछ नहीं होने वाला है मगर अगले कुछ महीनों में इस मोर्चे पर बिहार की राजनीति के घटनाक्रम पर सबकी नजरें होंगी।