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माइक्रोफाइनैंस क्षेत्र में नए दौर की शुरुआत, कर्ज लेने वालों को लुभाने और लोन देने पर तुली कंपनियां

बैंक, लघु वित्त बैंक, एनबीएफसी, एमएफआई और फिनटेक कंपनियां कर्ज लेने वालों को लुभाने और कर्ज देने पर तुली हुई हैं। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- October 01, 2024 | 10:19 PM IST

सूचीबद्ध माइक्रोफाइनैंस कंपनी फ्यूजन फाइनैंस लिमिटेड ने हाल ही में कहा कि फंसे हुए ऋणों में इजाफे को देखते हुए उसे 2024-25 की सितंबर तिमाही में 500-550 करोड़ रुपये अलग रखने पड़ सकते हैं। पहली तिमाही में फ्यूजन ने 348 करोड़ रुपये अलग रखे थे, जिसे प्रोविजनिंग भी कहते हैं।

21 सितंबर को स्टॉक एक्सचेंजों को दी सूचना में फ्यूजन ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही के नतीजे जारी होने के बाद से कंपनी का प्रबंधन इस बात पर नजर रख रहा है कि कर्ज लेने वाले उसे चुकाते किस तरह हैं। कर्ज चुकाने के रुझान बताते हैं कि कंपनी का 500 करोड़ से 550 करोड़ रुपये तक का कर्ज फंस सकता है, जिसके लिए उसे प्रोविजनिंग करनी पड़ सकती है। फंसे कर्जों से होने वाले घाटे के लिए जो रकम रखी जाएगी, उसमें वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के नतीजे आने के बाद संशोधन हो सकता है।’

एक माइक्रोफाइनैंस विश्लेषक का अनुमान है कि सितंबर तिमाही में कंपनी की सालाना ऋण लागत 17 फीसदी रहेगी, जो जून तिमाही की 11.8 फीसदी से अधिक है। फ्यूजन ने जून तिमाही में कर्ज लेने और उसे चुकाने के रुझान को ध्यान में रखा।

कंपनी के तिमाही नतीजे की घोषणा करते समय फ्यूजन के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी देवेश सचदेव ने विश्लेषकों को बताया कि कर्ज लेने वाले किस तरह अपनी उधारी बढ़ा रहे हैं। अलग-अलग कंपनियों से चार से ज्यादा कर्ज लेने वालों की संख्या बढ़ी है। सचदेव ने कहा, ‘हमारे कई ग्राहकों ने दो या ज्यादा कर्ज लिए हैं, जिन्हें चुकाने की उनकी क्षमता भी नहीं है। इसका असर हमारे पोर्टफोलियो पर दिखा है क्योंकि कुछ कर्जदार बार-बार कहने पर भी किस्त नहीं चुका पाए हैं।’

उन्होंने यह बात विश्लेषकों को स्लाइड संख्या 8 दिखाने के बाद कही। आखिर इस स्लाइड में क्या था?

स्लाइड के मुताबिक मार्च 2023 में फ्यूजन के कुल ग्राहकों में से ‘यूनीक’ यानी केवल उसी से कर्ज लेने वाले ग्राहकों की हिस्सेदारी 33.4 प्रतिशत थी। अब यह घटकर 30.9 प्रतिशत रह गई है। फ्यूजन के अलावा किसी एक संस्था से कर्ज लेने वाले ग्राहकों की हिस्सेदारी भी 30.1 प्रतिशत से घटकर 19.7 प्रतिशत रह गई है। फिक्र की बात यह है कि तीन, चार या इससे अधिक संस्थाओं से ऋण लेने वाले ग्राहकों की तादाद 6.1 प्रतिशत से बढ़कर 16.9 प्रतिशत हो गई।

इसके अलावा फ्यूजन से 40,000 रुपये तक का कर्ज लेने वालों की संख्या मार्च 2023 के 39.4 प्रतिशत से घटकर मार्च 2024 में 30.7 प्रतिशत रह गई है। मगर इसी बीच कम से कम 1 लाख रुपये तक का सूक्ष्म ऋण लेने वालों की संख्या 22.7 प्रतिशत से बढ़कर 32.2 प्रतिशत हो गई है।

कई लोग मानते हैं कि स्लाइड 8 ने मार्च महीने में 15.9 करोड़ खाते रखने वाले माइक्रोफाइनैंस उद्योग को चेतावनी दी है। इनमें से 8.6 करोड़ खाते यूनीक कर्जदारों के हैं और बाकी के हिस्से में एक से ज्यादा कर्ज हैं। सवाल यह है कि कितने प्रतिशत कर्जदारों ने पांच, छह या ज्यादा ऋण लिए हैं?

मुझे ऐसा एक उदाहरण दिखा, जिसमें एक महिला 14 कंपनियों से कर्ज ले चुकी थी और 15वें के लिए आवेदन कर चुकी थी। उसके सभी कर्ज की किस्तें कुल मिलाकर 45,000 रुपये महीने बनती हैं मगर उसकी महीने की आमदनी केवल 30,000 रुपये है। इसमें भी 12,000 रुपये उसे घर चलाने के लिए चाहिए, जिसके बाद कर्ज चुकाने के लिए उसके पास केवल 18,000 रुपये बचते हैं। तो उसके पास क्या चारा बचा? पुराने कर्ज चुकाने के लिए नए कर्ज लेना!

यह उदाहरण एक क्रेडिट ब्यूरो के प्रबंध निदेशक ने दिया था। ऐसे कई कर्जदार हैं मगर उनकी संख्या शायद ज्यादा नहीं होगी। वित्त वर्ष 2017 में कुल माइक्रोफाइनैंस कर्ज करीब 1.07 लाख करोड़ रुपये था, जो सालाना 22.1 प्रतिशत चक्रवृद्धि दर से बढ़ते हुए वित्त वर्ष 2024 में 4.34 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसी दौरान यूनीक कर्जदारों की संख्या केवल 6.9 प्रतिशत बढ़ी और प्रत्येक कर्जदार पर औसत ऋण सालाना 14.3 प्रतिशत चक्रवृद्धि दर से बढ़ा।

माइक्रोफाइनैंस क्षेत्र के दो स्वानियामकीय संगठनों में से एक माइक्रोफाइनैंस इंस्टीट्यूशन नेटवर्क (एमफिन) के सीईओ आलोक मिश्रा इस चिंता को नकारते हुए कहते हैं कि प्रत्येक ऋणकर्ता पर औसत बकाया ऋण मोटे तौर पर मुद्रास्फीति के बराबर ही बढ़ता है। मार्च 2020 में यह 39,353 रुपये था और मार्च 2024 में 55,260 रुपये। अगर 5 प्रतिशत औसत मुद्रास्फीति मानी जाए तो मार्च 2024 में यह 47,833 रुपये होना चाहिए था। मुद्रास्फीति का हिसाब लगाने के बाद इसमें 7,000 रुपये की ही वृद्धि हुई है। क्या वाकई यह बहुत ज्यादा है?

वह कहते हैं कि 1.5 लाख रुपये से अधिक बकाया कर्ज वालों की हिस्सेदारी बढ़कर 4.7 प्रतिशत हो गई है मगर वास्तव में यह बहुत कम है। फिर भी एमफिन ने कामकाज में अनुशासन और कर्जदारों के कल्याण के लिहाज से सुरक्षा उपाय किए हैं। ये उपाय क्या हैं?

परिसंपत्ति बिगड़ने की चुनौती कम करने के लिए एमफिन और दूसरे स्वनियामकीय संगठन सा-धन ने तय किया है कि किसी को भी उतना ही कर्ज दिया जाएगा, जिसे चुकाने में उसके परिवार की आधी आमदनी ही खर्च हो। यह भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देश के मुताबिक है। साथ ही किसी भी व्यक्ति को चार से ज्यादा माइक्रोफाइनैंस कंपनियों से कर्ज नहीं लेने दिए जाएंगे तथा उसका कुल कर्ज 2 लाख रुपये से ऊपर नहीं होने दिया जाएगा।

कोविड महामारी के दौरान उद्योग की परिसंपत्ति गुणवत्ता बहुत घटी थी। मोतीलाल ओसवाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक पार30+ बुक यानी 30 दिन से ज्यादा समय से नहीं चुकाए गए कर्ज की हिस्सेदारी दिसंबर 2019 के 1.3 प्रतिशत से बढ़कर कोविड की दूसरी लहर के दौरान जून 2021 में 14.8 प्रतिशत तक हो गई। बाद में इसमें नाटकीय रूप से कमी आई। कोविड लॉकडाउन से पहले नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से इस क्षेत्र में सुधार हुआ था। इसके बाद अप्रैल 2022 में रिजर्व बैंक की नई माइक्रोफाइनैंस नीति भी लागू हो गई।

अब ब्याज दर पर कोई बंदिश नहीं है और कर्ज देने वाले खुद दर तय कर सकते हैं। मगर उन्हें बोर्ड से मंजूर और पारदर्शी नीति पर चलना जरूरी है। नए नियमों ने बैंकों और अन्य वित्तीय इंटरमीडियरी को बराबर खड़ा कर दिया है। पहले बैंकों को सूक्ष्म ऋण संस्थानों से ज्यादा तवज्जो मिलती थी। अब नियम सूक्ष्म ऋणदाताओं के बजाय सूक्ष्म ऋण पर लागू होते हैं। सूक्ष्म ऋण को दोबारा परिभाषित करते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, शादी-ब्याह जैसे किसी भी मकसद के लिए कर्ज दिया जा सकता है बशर्ते उसकी किस्तें परिवार की कुल आमदनी के 50 प्रतिशत से ज्यादा न हो जाएं।

लगभग सभी सूक्ष्म वित्त संस्थानों ने कोविड-19 के दौरान हुए घाटे की भरपाई के लिए ब्याज दरें बढ़ाई हैं। मगर घाटा भरने के बाद उसमें कमी कितनों ने की है? इस क्षेत्र में वृद्धि इसलिए नहीं हो रही कि लोग कर्ज मांग रहे हैं बल्कि इसलिए हो रही है कि ऋणदाता कर्ज देने पर तुले हुए हैं। अब तो यूनिवर्सल बैंक, स्मॉल फाइनैंस बैंक, एनबीएफसी, सूक्ष्म वित्त संस्थान और फिनटेक समेत हर कोई कर्ज देने के लिए दौड़ रहा है। जब किसी को पर्सनल लोन, शिक्षा ऋण, होम लोन और दोपहिया, ट्रैक्टर, सामान खरीदने के लिए कर्ज आसानी से मिल जाता है तो वह ज्यादा उधार लेने का मोह छोड़ नहीं पाता।

लोग ऊंची से ऊंची ब्याज दर पर खूब कर्ज ले रहे हैं क्योंकि बैंक बड़ी एनबीएफसी को कर्ज दे रहे हैं और लागत बढ़ने की वजह से ब्याज दर भी चढ़ रही हैं। बडी एनबीएफसी छोटी एनबीएफसी को कर्ज देती हैं और यह सिलसिला ऐसे ही बढ़ता रहता है। ब्याज बढ़ता जाता है और लोगों की कर्ज चुकाने की क्षमता घटती रहती है।

ज्यादातर सूक्ष्म ऋणदाता नहीं मानते कि कोई दिक्कत है। परिसंपत्ति बिगड़ने के लिए वे भीषण गर्मी से लेकर बाढ़, चुनाव, कर्जमाफी और देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे आंदोलन तक तमाम वजह गिना देते हैं। मगर वे जरूरत से ज्यादा कर्ज देने की बात कबूल नहीं करते।

पिछले वर्ष रेटिंग एजेंसी क्रिसिल लिमिटेड ने अनुमान लगाया था कि वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2025 के बीच इस क्षेत्र में 18 से 20 प्रतिशत वृद्धि होगी और माइक्रोफाइनैंस इकाइयां ज्यादा तेजी से बढ़ेंगी। क्रिसिल की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक सूक्ष्म ऋण की लागत वित्त वर्ष 2024 के 2 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 3-3.5 प्रतिशत तक हो सकती है।

एक अध्ययन के मुताबिक सूक्ष्म वित्त संस्थान इसलिए भी परेशान हैं कि औसतन 60 प्रतिशत कर्मचारी कंपनी छोड़ देते हैं। इससे कर्ज देने और लेने वाले के रिश्ते पर असर पड़ता है, जबकि माइक्रोफाइनैंस की कामयाबी की कुंजी यही है। इससे संस्थान को कर्ज वसूलने में भी दिक्कत आती है। रिजर्व बैंक यह देख रहा है और समय-समय पर टिप्पणी भी करता है। मगर क्या वह कोई कदम भी उठाएगा?

First Published : October 1, 2024 | 10:19 PM IST