इस बार त्योहारों पर आवास ऋण यानी होम लोन के लिए ऑफरों की बौछार है मगर उनमें से ज्यादार दो ही तरह के हैं – ब्याज दर में कमी और प्रोसेसिंग शुल्क में पूरी या थोड़ी बहुत माफी। ऑफर्स अच्छे हो सकते हैं और उनका फायदा उठाने में बुराई भी नहीं मगर कर्ज लेने वाले को पहले होम लोन से जुड़ी दूसरी शर्तों पर गौर जरूर कर लेना चाहिए।
त्योहार पर सबसे अच्छे ऑफर हर किसी को नहीं दिए जाते। उन्हें पाना है तो आपको कई शर्तें पूरी करनी पड़ेंगी। बैंक और हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां अक्सर कट-ऑफ क्रेडिट स्कोर रखती हैं, जिससे कम स्कोर वालों को लोन ही नहीं दिया जाता।
पैसाबाजार में बिजनेस हेड (होम लोन्स) रतन चौधरी कहते हैं, ‘त्योहारी सीजन के लिए भारतीय स्टेट बैंक ने खास ब्याज दर रखी है मगर उस पर लोन 700 या उससे अधिक क्रेडिट स्कोर वालों को ही मिल सकता है और वह भी उन्हीं को मिलेगा, जो बैंक से नया लोन ले रहे हैं। इसी तरह एचडीएफसी बैंक कम से कम 800 क्रेडिट स्कोर वालों को ही अपनी खास त्योहारी ब्याज दर पर होम लोन देता है। जिनके स्कोर इससे कम होते हैं, उन्हें सामान्य ब्याज दर पर ही कर्ज दिया जाएगा।’
कई दूसरे पैमाने भी हो सकते हैं। बैंकबाजार के मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) आदिल शेट्टी बताते हैं, ‘सबसे कम ब्याज दर के कई ऑफर महिला आवेदकों के लिए ही हो सकते हैं या उन्हें ही दिए जा सकते हैं, जो कम अवधि (मान लीजिए 15 साल) के लिए कर्ज ले रहे हैं या कम रकम (30 लाख रुपये या कम) उधार ले रहे हैं।’
अगर आपको सही दाम में मनचाहा मकान मिल रहा है तो आपको इन ऑफरों का पूरा फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिए। विशफिन के सीईओ ऋषि मेहरा का कहना है, ‘मकान खरीदते समय लोग अपनी पूरी बचत खर्च कर देते हैं। इन ऑफरों के जरिये थोड़ी सी भी रकम बच जाए तो उनके लिए राहत की बात होगी।’ मगर उनकी सलाह है कि ऑफर लपकने से पहले यह जरूर देख लीजिए कि यह छूट किसी और जगह आपसे वापस तो नहीं वसूली जा रही है।
रहे इन बातों का ध्यान – यदि आप कर्ज लेने जा रहे हैं तो बैंक या फाइनैंस कंपनी चुनने से पहले कुछ खास बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
कुल लागत: कर्ज की कुल लागत का हिसाब सबसे पहले लगाना चाहिए। शेट्टी समझाते हैं, ‘केवल ब्याज दर मत देखिए। प्रोसेसिंग शुल्क पर भी ध्यान दीजिए।’ ईएमआई कैलकुलेटर खोलिए और देखिए कि आपको कर्ज के बदले कुल कितनी रकम चुकानी पड़ रही है।
चौधरी समझाते हैं, ‘सबसे पहले देखिए कि जिस बैंक या कंपनी में आपके जमा खाते हैं, क्रेडिट कार्ड खाते हैं या पहले से लोन चल रहे हैं, वहां आपको कर्ज के बदले कुल कितना चुकाना पड़ रहा है। उसके बाद किसी ऑनलाइन फाइनैंशियल मार्केटप्लेस पर जाएं और देखें कि दूसरे ऋणदाता क्या ब्याज दर और शुल्क वसूल रहे हैं।’
स्प्रेड बहुत अहम: स्प्रेड रीपो दर और ब्याज दर का अंतर होता है यानी बैंक तथा कंपनियों की ब्याज दर रीपो दर से जितनी ज्यादा होती है, उसे स्प्रेड कहा जाता है। महामारी से पहले ऋणदाता 300 से 350 आधार अंक तक स्प्रेड वसूल रहे थे मगर अब उसे घटा दिया गया है और कुछ मामलों में तो यह 190 आधार अंक ही रह गया है।
शेट्टी की सलाह है, ‘देख लीजिए कि आपको जितना कम स्प्रेड मिलना चाहिए उतना मिल रहा है या नहीं। उसके साथ जुड़ी शर्तें भी समझ लीजिए – बैंक अपनी मर्जी से स्प्रेड बदल सकता है या कुछ खास स्थितियों में (जैसे कर्जदार का क्रेडिट स्कोर बिगड़ना) ही बदल सकता है।’
कर्ज की रकम: मेहरा के हिसाब से उस बैंक या फाइनैंस कंपनी से कर्ज लेना चाहिए, जो आपकी जरूरत भर की रकम आपको दे रही हो। मान लीजिए कि आपको 1 करोड़ रुपये की जरूरत है। एक बैंक आपको 8.5 फीसदी ब्याज दर पर 75 लाख रुपये देने को तैयार है और दूसरा बैंक 8.7 फीसदी पर 85 लाख रुपये दे रहा है।
मान लीजिए कि आपके पास डाउन पेमेंट के लिए केवल 15 लाख रुपये हैं। उस सूरत में अगर आप मनचाहा मकान हाथ से नहीं जाने देना चाहते तो आपके पास ज्यादा रकम (अधिक ब्याज दर के बावजूद) उधार लेने के अलावा कोई चारा नहीं होगा।
प्रीपेमेंट की शर्तें: ज्यादातर लोग 8-10 साल में अपना होम लोन चुका देते हैं। इसलिए प्रीपेमेंट से जुड़ी शर्तें भी काफी अहमियत रखती हैं। कुछ कंपनियां आपको ईएमआई के साथ हर महीने छोटी रकम जैसे 2,000 रुपये अलग से चुकाने की इजाजत दे सकती हैं। इससे प्रीपेमेंट आसान हो जाता है। मगर कुछ करीब तीन महीने की ईएमआई के बराबर एकमुश्त रकम लेने पर अड़ सकती हैं। कुछ साल में एक निश्चित संख्या में प्रीपेमेंट पर राजी हो सकती हैं।
शेट्टी कहते हैं, ‘अगर आपको कम बार प्रीपेमेंट करने की इजाजत दी जाती है या प्रीपेमेंट के समय न्यूनतम राशि काफी ज्यादा रखी जाती है तो समय से पहले कर्ज चुकाना आपके लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है।’
कर्ज की अवधि: मेहरा की सलाह है कि कर्ज की अवधि जरूर देखें क्योंकि ईएमआई की रकम इसी से तय होती है। मियाद ज्यादा होगी तो ईएमआई छोटी हो जाएगी और महीने में कम बोझ पड़ेगा। मगर दिक्कत यह है कि इसमें आपसे बतौर ब्याज ज्यादा रकम वसूल ली जाती है। इसीलिए दोनों पलड़े बराबर रहने चाहिए।