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शेयर बाजार-म्युचुअल फंड में निवेश तो जानिए कैसे लगता है टैक्स

Last Updated- January 15, 2023 | 11:30 PM IST

ज्यादातर निवेशक शेयर मार्केट या म्युचुअल फंड में निवेश टैक्स के नियमों को बगैर जाने कर देते हैं। उनका ज्यादा फोकस रिटर्न पर होता है। जबकि उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि आखिर निवेश के इन विकल्पों से जो कमाई होती है उस पर टैक्स का भी प्रावधान है। अगर आप टैक्स नियमों को बगैर जाने निवेश करेंगे तो आपकी कमाई पर असर पड़ सकता है क्योंकि टैक्स की कटौती के बाद रिटर्न कम हो जाता है।

इसलिए बात इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंड (यदि किसी म्युचुअल फंड स्कीम में कार्पस यानी एसेट अंडर मैनेजमेंट का न्यूनतम 65 फीसदी निवेश इक्विटी में है) में निवेश से मिलने वाले रिटर्न पर लगने वाले टैक्स के बारे में करेंगे।

इक्विटी/इक्विटी फंड

एक वर्ष से कम अवधि (होल्डिंग पीरियड) में अगर आप इक्विटी शेयर या इक्विटी म्युचुअल फंड बेचते/ रिडीम करते हैं तो इनकम शार्ट टर्म कैपिटल गेन मानी जाएगी और आपको 15 फीसदी (4 फीसदी उपकर मिलाकर कुल 15.6 फीसदी) शार्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होगा। लेकिन अगर आप एक वर्ष के बाद बेचते हैं तो इनकम लांग टर्म कैपिटल गेन मानी जाएगी और आपको सालाना एक लाख रुपए से ज्यादा की इनकम पर 10 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होगा।

ध्यान रहे सालाना एक लाख से कम की इनकम पर टैक्स का प्रावधान नहीं है। ईएलएसएस और आर्बिट्रेज फंड भी इक्विटी फंड की कैटेगरी में आते हैं। अगर कोई बैलेंस्ड/ हाइब्रिड फंड भी कुल कॉर्पस का 65 फीसदी इक्विटी में निवेश करें तो टैक्स के हिसाब से इसे भी इक्विटी फंड ही माना जाता है।

इक्विटी शेयर पर डिविडेंड/ इक्विटी म्युचुअल फंड

आपके इक्विटी शेयर पर या अगर आप अगर किसी इक्विटी म्युचुअल फंड स्कीम का डिविडेंड प्लान लेते हैं तो आपको निवेश की अवधि के दौरान, जो रिटर्न डिविडेंड के रूप में मिलता है, वह आपके सालाना इनकम में जुड़ जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस रकम पर टैक्स अदा करना होगा। साथ हीं अगर किसी वित्त वर्ष में डिविडेंड 5 हजार रुपये से ज्यादा है तो डिविडेंड की राशि पर आपसे 10 फीसदी टीडीएस काट लिया जाएगा।

एसआईपी

होल्डिंग पीरियड म्युचुअल फंड खरीदने के दिन से लेकर उसे बेचने के दिन पर निर्भर करता है। लेकिन सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी के जरिये निवेश के मामले में हर एसआईपी के लिए होल्डिंग पीरियड अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए आपने किसी इक्विटी स्कीम के लिए एसआईपी जनवरी 2018 से दिसंबर 2018 तक चलाई।

इस मामले में जनवरी 2018 में किए गए निवेश के लिए तो एक वर्ष की अवधि दिसंबर 2018 में पूरी होगी। लेकिन दिसंबर 2018 में किए गए निवेश यानी एसआईपी के लिए एक वर्ष की अवधि दिसंबर 2019 में पूरी होगी। यानी हर एसआईपी के लिए बारह महीने पूरे होना जरूरी है।

यूलिप

यूलिप में भी आप इक्विटी फंड का विकल्प चुन सकते हैं। इसका लॉक इन पीरियड 5 वर्ष है। मतलब प्लान की शुरुआत के 5 वर्ष बाद आप इसे रिडीम/सरेंडर कर सकते हैं। अगर आप 5 वर्ष तक निवेश जारी रखते हैं, तो आपको इक्विटी फंड से होनेवाली कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। क्योंकि यूलिप ईईई (एग्जेंप्ट-एग्जेंप्ट-एग्जेंप्ट) कैटेगरी में है। यानी न तो जमा करने पर, न मिलने वाले रिटर्न और न निकासी पर टैक्स है। इसलिए 5 वर्ष के बाद मिलने वाले मैच्योरिटी अमाउंट पर भी टैक्स में छूट है।

साथ हीं 80C के तहत अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक (निवेश के अन्य विकल्पों को मिलाकर) डिडक्शन का फायदा मिलेगा। लेकिन अगर कोई पॉलिसी 1 अप्रैल 2012 या उसके बाद जारी की गई है तो एक वित्त वर्ष में सम एश्योर्ड के 10 फीसदी से ज्यादा के सालाना प्रीमियम पर डिडक्शन का फायदा नहीं मिलेगा।

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ईएलएसएस

ईएलएसएस भी एक इक्विटी म्युचुअल फंड स्कीम है क्योंकि इस स्कीम में कम से कम 65 फीसदी निवेश इक्विटी में होता है। अन्य म्यूचुअल फंड स्कीम की तरह इस स्कीम में भी निवेश के दो प्लान मसलन ग्रोथ और डिविडेंड में से एक चुनने का विकल्प है। ग्रोथ प्लान में रिटर्न स्कीम के बीच नहीं मिलता है।
कहने का मतलब रिटर्न रिडेम्शन से पहले नहीं। लेकिन अनिवार्य लॉक इन पीरियड के बाद 1 लाख रुपये से ज्यादा के सालाना रिटर्न पर 10 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (एलटीसीजी) टैक्स का प्रावधान है।

अगर आप अगर डिविडेंड प्लान लेते हैं तो आपको निवेश की अवधि के दौरान (लॉक इन पीरियड से पहले और बाद दोनों ), जो रिटर्न डिविडेंड के रूप में मिलता है, वह आपके सालाना इनकम में जुड़ जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस रकम पर टैक्स अदा करना होगा।

First Published - January 15, 2023 | 11:30 PM IST

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