भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति ने 8 जून की अपनी समीक्षा में रीपो दर से कोई छेड़छाड़ नहीं की। केंद्रीय बैंक ने अपने रुख में उदारता का भी कोई संकेत नहीं दिया। इससे पता चलता है कि महंगाई को काबू में लाने पर ही उसका जोर बना हुआ है। चालू वित्त वर्ष में उपभोक्ता महंगाई औसतन 5.1 फीसदी बनी रहने का अनुमान है, जो 4 फीसदी के RBI के लक्ष्य से अधिक होगी।
इस बीच जिंस की कीमतें घटने और बारिश अच्छी होने से खाद्य उत्पादन बढ़ा तो महंगाई कम हो सकती है। अगर मामला इसका उलटा रहा तो महंगाई फिर चढ़ सकती है। इसलिए दरों पर केंद्रीय बैंक के रुख का अंदाजा कुछ समय बाद ही लगेगा।
कॉरपोरेट ट्रेनर (डेट) और लेखक जॉयदीप सेन कहते हैं, ‘दरें लंबे अरसे तक ठहरी रहेंगी। इस साल तो ब्याज दरें घटने की उम्मीद नहीं है। पहली कटौती अगले साल जनवरी-मार्च तिमाही या उसके बाद वाली तिमाही में हो सकती है। मगर यह सब महंगाई, GDP वृद्धि और दूसरी बातों पर निर्भर करेगा।’
सिनर्जी कैपिटल सर्विस के प्रबंध निदेशक विक्रम दलाल का कहना है, ‘RBI राहत और रियायत वापस लेने पर डटा है। चूंकि वह महंगाई और वृद्धि जैसे वृहद संकेतकों और विदेशी कारकों पर भरोसा करता है, इसलिए दर कटौती के बारे में तस्वीर छह से नौ महीने बाद ही साफ हो सकेगी।’
इधर बॉन्ड पर प्राप्ति भी सपाट चल रही है। सेन कहते हैं, ‘दर बढ़ने के साथ ही कम अवधि के बॉन्ड की प्राप्ति बढ़ गई है। महंगाई में कमी, प्रतिकूल वैश्विक कारकों में घटोतरी, अप्रैल में म्युचुअल फंड तथा बीमा कंपनियों के खेमे से बॉन्ड की मांग बढ़ने और दर बढ़ोतरी के बजाय कुछ अरसे बाद कटौतौ होने की उम्मीद से मझोली से लंबी अवधि के बॉन्ड की प्राप्ति कम हुई है।’
पिछले साल RBI ने रीपो दर बढ़ाई तो कम अवधि के डेट फंडों को काफी फायदा हुआ। पिछले एक साल में लिक्विड फंडों पर औसतन 6.15 फीसदी सालाना प्राप्ति रही। दर बढ़ने पर लंबी अवधि के फंडों को नुकसान होना चाहिए मगर पिछले एक साल में इन फंडों की औसत प्राप्ति 12.43 फीसदी रही है। इसकी वजह यह है 10 साल की बेंचमार्क प्राप्ति जून, 2022 के 7.6 फीसदी से घटकर इस समय करीब 7 फीसदी चल रही है।
क्वांटम असेट मैनेजमेंट कंपनी में फंड प्रबंधक (स्थिर आय) पंकज पाठक को लगता है, ‘लंबी अवधि का रिटर्न काफी समय तक ऐसा ही रहेगा। RBI जरूरत से ज्यादा नकदी को हमेशा के लिए हटाने को तैयार नहीं दिखता, इसलिए कम अवधि के बॉन्ड की प्राप्त गिर सकती है।’
एक साल का रिटर्न देखकर कई निवेशकों को लंबी अवधि के बॉन्ड खरीदना सही लगेगा। यदि बॉन्ड प्राप्ति और गिरती है यानी बॉन्ड की कीमत बढ़ती है तो निवेशक को फायदा हो सकता है। मगर कम अवधि के लिए इन बॉन्ड में निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है। महंगाई बढ़ी तो बॉन्ड पर प्राप्ति बढ़ सकती है यानी कीमत घट सकती है।
अगर आपको प्राप्ति में उतार चढ़ाव की चिंता है और अवधि से जुड़े जोखिम से बचे रहना चाहते हैं तो कम अवधि के फंड में रकम लगाएं। एक और तीन साल की अवधि वाली ये योजनाएं अनुकूल रिस्क-रिवॉर्ड अनुपात के साथ आती हैं, जिनमें कम अवधि के फंडों की यील्ड टु मैच्योरिटी 7.33 फीसदी (31 मई, 2023 को) रही।
दलाल की सलाह है, ‘निवेशकों को कम अवधि के फंड चुनने चाहिए क्योंकि प्राप्ति सपाट है। प्राप्ति सामान्य हो जाए तो वे कम अवधि के फंडों से लंबी अवधि के फंडों में जा सकते हैं।’
सेन कहते हैं, ‘इस समय तीन, पांच और दस साल के बॉन्डों पर एक जैसी प्राप्ति है। इसलिए निवेशकों को फंड की पोर्टफोलियो मैच्योरिटी देखकर अपने निवेश की अवधि तय करनी चाहिए। बाजार के कुछ हलके दीर्घावधि बॉन्डों की सलाह दे रहे हैं मगर आगे इसमें बढ़ोतरी की गुंजाइश बहुत कम है।’
कोई भी योजना चुनते समय पोर्टफोलियो की साख और एक्सपेंस रेश्यो पर ध्यान देना चाहिए। जोखिम कम रखना है तो कॉरपोरेट बॉन्ड फंड में रकम लगाएं क्योंकि उनके पोर्टफोलियो का 80 फीसदी हिस्सा उम्दा बॉन्डों में ही जाता है।
पाठक समझाते हैं, ‘लंबी अवधि के लिए स्थिर आय में निवेश करना है तो डायनमिक बॉन्ड फंड लिया जा सकता है। उसमें फंड प्रबंधक ब्याज दर की संभावना भांपकर कम या लंबी अवधि के डेट में निवेश करते हैं।’
टारगेट मैच्योरिटी फंड कम खर्च में बेहतरीन किस्म के बॉन्ड में रकम लगाते हैं। सेन कहते हैं, ‘निवेश की अवधि फंड की मैच्योरिटी जितनी रखें। परिपक्व होने तक निवेश रखेंगे तो उतारचढ़ाव का जोखिम नहीं रहेगा।’