पिछले एक साल के दौरान अमेरिका केंद्रित फंडों और अमेरिकी बाजार का प्रदर्शन शानदार रहा है। पिछले एक साल में नैस्डैक 100 में करीब 32 फीसदी और एसऐंडपी 500 में करीब31 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह निफ्टी 100 और निफ्टी 500 जैसे भारतीय बाजार सूचकांकों के रिटर्न के लगभग बराबर है जहां क्रमशः करीब 31 फीसदी और करीब 32 फीसदी रिटर्न मिले हैं।
अमेरिका में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित व्यापक क्रांति हुई है। मोतीलाल ओसवाल ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) के प्रमुख (पैसिव फंड कारोबार) प्रतीक ओसवाल ने कहा, ‘इसने कई अमेरिकी कंपनियों और विशेष रूप से प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों की वृद्धि को रफ्तार दी है।’
पिछले साल की आय सात प्रमुख प्रौद्योगिकी शेयरों में केंद्रित थी, लेकिन एसऐंडपी 500 में शामिल गैर-प्रौद्योगिकी शेयरों का प्रदर्शन इस साल बेहतर रहा। अब मुद्रास्फीति की चिंता कम हो गई है। ऐसे में अमेरिकी फेडरल रिजर्व के लिए दरों में 50 आधार अंकों की कटौती करने की गुंजाइश बन गई है।
प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन ने कहा, ‘आगे दरों में कटौती किए जाने की उम्मीद बाजार के लिए एक सकारात्मक रुझान है।’ अब मंदी की आशंका कम हो गई है और बेरोजगारी में भी नरमी दिख रही है।
निवेशक अभी भी अमेरिकी इक्विटी फंड में निवेश कर सकते हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार (आरआईए) और फिड्यूसिएरीज के संस्थापक अविनाश लूथरिया ने कहा, ‘विविधीकरण के लिहाज से अमेरिकी इक्विटी फंड में निवेश करने के लिए कोई भी समय अच्छा ही रहता है।’
ओसवाल का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय विविधीकरण के लिए अमेरिका पहला विकल्प होना चाहिए क्योंकि वह 60 से 70 फीसदी वैश्विक बाजार पूंजीकरण का प्रतिनिधित्व करता है। डॉलर के मुकाबले रुपये में औसतन सालाना 3 से 4 फीसदी की नरमी दिख रही है। ऐसे में मुद्रा जोखिम से बचाव के लिए अमेरिका में निवेश करना आवश्यक है। भारतीय और अमेरिकी बाजारों के बीच कम सह संबंध से पोर्टफोलियो को स्थिरता मिलती है।
बहरहाल, पश्चिम एशिया में संघर्ष और यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक तनाव ने अमेरिकी इक्विटी में निवेश पर जोखिम बढ़ा दिया है। मौजूदा मूल्यांकन काफी अधिक हैं। धवन ने कहा, ‘अगर कोई निवेशक अधिक प्रौद्योगिकी वाले सूचकांक की ओर रुख करता है तो उसे काफी अधिक मूल्यांकन पर प्रवेश करना होगा।’
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने विदेशी निवेश पर कई तरह के अंकुश लगाए हैं जिससे काफी जटिलताएं पैदा हो गई हैं। लूथरिया ने कहा, ‘हर बार निवेश करते समय निवेशक को यह पता लगाना होगा कि जिस फंड में उनकी दिलचस्पी है, वह रकम स्वीकार कर रहा है या नहीं। साथ ही यह भी देखना होगा कि एसआईपी के जरिये निवेश करना बेहतर होगा या एकमुश्त निवेश।’
वित्तीय योजनाकारों का सुझाव है कि अमेरिकी इक्विटी फंड में निवेश करने से पहले एक विविधतापूर्ण देसी पोर्टफोलियो तैयार करना बेहतर रहेगा। धवन ने कहा, ‘विदेश में शिक्षा या विदेश यात्रा जैसे विदेशी मुद्रा आधारित लक्ष्य वाले निवेशकों को अमेरिकी इक्विटी फंड में निवेश अवश्य करना चाहिए।’ उन्होंने चेताया कि अगर आप कम समय के लिए निवेश करना चाहते हैं तो अधिक मूल्यांकन के कारण फिलहाल इसे नजरअंदाज कर सकते हैं।
नए निवेशकों को 7 से 10 साल के लिहाज से एसआईपी के जरिये निवेश करना चाहिए। उन्हें पैसिव फंडों का रुख करना चाहिए क्योंकि ऐतिहासिक तौर पर अमेरिका में इन फंडों ने ऐक्टिव फंडों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। ओसवाल का सुझाव है कि निवेशक को अपने इक्विटी पोर्टफोलियो का कम से कम 15 से 20 फीसदी हिस्सा अमेरिकी बाजार के लिए आवंटित करना चाहिए। मगर करों में अंतर के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
लूथरिया ने कहा, ‘विदेशी इक्विटी फंडों में निवेश को 24 महीने से अधिक समय तक रखे जाने पर 12.5 फीसदी की दर से दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर लगता है।’
हालिया तेजी के बावजूद निवेशकों को अमेरिकी इक्विटी फंड में अपने निवेश की बिकवाली तभी करना चाहिए जब उनका निवेश लक्ष्य पूरा हो गया हो अथवा उन्हें पैसे की सख्त जरूरत हो।
निवेश भुनाने का एक अन्य कारण पोर्टफोलियो को नए सिरे से संतुलित करना भी हो सकता है। मगर लूथरिया खरीदने की कठिनाई को देखते हुए अमेरिकी फंडों को केवल पोर्टफोलियो को नए सिरे से संतुलित करने के लिए बेचने के प्रति चेताते हैं। उनका सुझाव है कि भारतीय इक्विटी में अधिक निवेश के जरिये भी पोर्टफोलियो को संतुलित किया जा सकता है।