अगर आपने अपने परिवार में कोई कुत्ता या बिल्ली शामिल किया है तो उसके लिए बीमा (Pet Insurance) लेने का विचार शायद आपको आया हो। जानवरों के डॉक्टर (वेट) का बिल देखकर तो यह ख्याल जरूर आया होगा। बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस ने हाल ही में बिल्लियों के लिए बीमा पॉलिसी पेश की है। कंपनी कुत्तों के लिए बीमा पहले ही ला चुकी है। गो डिजिट ने भी वेटिना के साथ साझेदारी में कुत्तों के लिए कॉम्प्रिहेंसिव बीमा लाने का ऐलान किया है। आजकल पालतू पशु रखने का चलन बढ़ता जा रहा है और उनका इलाज भी काफी महंगा हो गया है। इसीलिए इलाज और दूसरे खर्चों का बोझ कम करने के लिए पालतू बीमा यानी पेट इंश्योरेंस की मांग भी बढ़ने की उम्मीद है।
पेट इंश्योरेंस पॉलिसी आम तौर पर कुत्तों और बिल्लियों के लिए ही होती है मगर इनमें घोड़े, खरगोश और दूसरे पशु भी शामिल किए जा सकते हैं। सेक्योरनाउ के सह-संस्थापक और मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) कपिल मेहता समझाते हैं, ‘इंसानों के बीमा की ही तरह पालतू के बीमा में भी अस्पताल का खर्च शामिल होता है। पालतू पशु को कोई बीमारी हो तो उसके इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले और छुट्टी मिलने के बाद के खर्च भी इसमें होते हैं।’
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पालतू पशुओं की जिंदगी इंसानों से बहुत कम होती है और उनके साथ कई तरह की बीमारी या दुर्घटना होने का डर लगा रहता है। बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के मुख्य तकनीकी अधिकारी टीए रामलिंगम बताते हैं, ‘बीमारी में जानवरों के अस्पताल का खर्च बहुत अधिक हो सकता है। पालतू पशुओं को दुर्घटना में चोट लगने पर भी अचानक खर्च आ सकता है।’ मेहता का कहना है कि पशुओं के अस्पताल बहुत कम हैं, इसलिए महंगे भी हैं। इलाज में 10,000 से 30,000 रुपये तक आराम से खर्च हो सकते हैं। पेट इंश्योरेंस यहीं काम आता है और पालतु पशु के मालिक को खर्च से बचाता है।
पेट इंश्योरेंस पालतू के अस्पताल में भर्ती होने पर तो काम आता ही है, उसकी मृत्यु, सर्जरी, उसके चोरी होने या भाग जाने पर भी बीमा की रकम मिलती है। पॉलिसीएक्स के संस्थापक और सीईओ नवल गोयल बताते हैं कि यदि पालतू पशु मर जाए या किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचा दे तो भी बीमा काम आता है। इतना ही नहीं उसका ओपीडी का खर्च भी पॉलिसी में मिलता है। ग्राहक पसंद की बीमा ले सकते हैं। रामलिंगम के मुताबिक पॉलिसी 1 महीने से 3 साल तक की होती है। एक ही पॉलिसी में कई पालतू पशुओं को कवर कराया जा सकता है। गोयल बताते हैं कि पॉलिसी अमूमन 7 हफ्ते से 8 साल के लिए होती हैं और इनमें 30,000 से 50,000 रुपये तक का बीमा होता है। हालांकि गोडिजिट की नई पॉलिसी में 40,000 से 1.5 लाख रुपये तक का बीमा होता है और अवधि 12 हफ्ते से 10 साल तक होती है।
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ऐसे बीमा बजाज आलियांज, फ्यूचर जेनेरली, न्यू इंडिया एश्योरेंस और गोडिजिट के पास हैं मगर लोगों में जानकारी नहीं होने के कारण ये ज्यादा बिक नहीं रहे। पशु चिकित्सक के पास जाने पर भी इस बीमा पॉलिसी में राशि के बराबर रकम मिल जाती है। इसमें हर तरह का खर्च शामिल होता है मगर कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट, स्पा, ग्रूमिंग और पैदाइशी बीमारियों का खर्च नहीं दिया जाता। मेहता बताते हैं, ‘कुछ कंपनियां 12 महीने पहले से चल रही बीमारियों को पॉलिसी में शामिल नहीं करतीं मगर कुछ तुरंत शामिल कर लेती हैं। ज्यादातर पॉलिसी में 10 फीसदी को-पे की शर्त होती है यानी इलाज का 10 फीसदी खर्च आपको अपनी जेब से भरना पड़ता है।’
कुछ बीमा कवर में खास शर्तें होती हैं। मसलन ओरिएंटल इंश्योरेंस कुत्तों का बीमा तो करती है मगर आंशिक अथवा पूर्ण अपंगता, रेबीज, कैनाइन डिस्टेंपर तथा लेप्टोस्पाइरोसिस जैसी बीमारियां तभी शामिल की जाती हैं, जब उनके टीके लगे होने का सर्टिफिकेट जमा किया जाता है। पालतू पशु खर्चीला बैठता है और उसकी उम्र तथा नस्ल के हिसाब से खर्च घटता-बढ़ता रहता है। पेट के कीड़े साफ कराना, किल्ली निकलवाना, छोटी-मोटी बीमारी और टीकों जैसे नियमित खर्च साल भर में आपकी जेब पर बहुत भारी पड़ सकते हैं। कैंसर और दिल की बीमारी का खर्च हजारों-लाखों रुपये बैठ सकता है। मगर बीमा कुछ सौ या कुछ हजार रुपये मे ही आ जाता है। गोयल कहते हैं, ‘दो साल के लैब्राडोर के लिए 50,000 रुपये का बीमा 400-500 रुपये सालाना में मिल जाता है।’