सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में चेल्लुबोयिना नागराजू बनाम मोलेती रामुडू मामले में अपने फैसले में कहा है कि वैध गिफ्ट डीड के पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी होने और प्राप्तकर्ता द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद दाता द्वारा एकतरफा तौर पर उसे निरस्त नहीं किया जा सकता है, बशर्ते उसमें निरस्त करने का कोई विशिष्ट अधिकार शामिल न किया गया हो। यह मामला दाता और प्राप्तकर्ता दोनों के लिए उपहार देने में सावधानी बरतने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
उपहार मौजूदा चल या अचल संपत्ति के स्वामित्व का स्वैच्छिक, गैर-मौद्रिक हस्तांतरण है। एक्वीलॉ की पार्टनर सौम्या बनर्जी ने कहा, ‘गिफ्ट डीड एक औपचारिक कानूनी दस्तावेज है जो इस तरह के हस्तांतरण को रिकॉर्ड करता है और उसे प्रभावी बनाता है।’ अचल संपत्ति के मामले में गिफ्ट डीड लिखित, दाता द्वारा हस्ताक्षरित, दो गवाहों द्वारा सत्यापित और पंजीकृत होना चाहिए। पंजीकरण के बिना डीड को अमान्य समझा जाता है और वह अदालत में पेश करने लायक नहीं होता है।
चल संपत्तियों के मामले में कब्जा देने के साथ ही उपहार की प्रक्रिया पूरी हो सकती है। इकनॉमिक लॉज प्रैक्टिस के पार्टनर अंशुमान जगताप ने कहा, ‘अगर संबंधित पक्ष गिफ्ट डीड के जरिये उपहार का दस्तावेज तैयार करना चाहते हैं तो वैधता के लिए उस दस्तावेज का पंजीकरण अवश्य कराया जाना चाहिए।’
गिफ्ट डीड सुनिश्चित करता है कि स्वामित्व का तत्काल हस्तांतरण हो गया है। इससे यह भी पता चलता है कि दाता जीवित है और उससे प्राप्तकर्ता को संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए पूर्ण कानूनी अधिकार मिल गए हैं। जगताप ने कहा, ‘गिफ्ट डीड के तहत स्वामित्व का हस्तांतरण दाता के जीवित रहने के दौरान होता है और वे अपने इरादे की पुष्टि कर सकते हैं। ऐसे में दान को वसीयत के मुकाबले चुनौती देना अधिक कठिन है।’ पंजीकृत गिफ्ट डीड को रद्द करना मुश्किल है। जगताप ने कहा, ‘अंतिम दस्तावेज होने के कारण यह प्राप्तकर्ता को संपत्ति पर सुरक्षा सुरक्षा और स्पष्ट एवं निर्विवाद स्वामित्व अधिकार प्रदान करता है।’
गिफ्ट डीड के पंजीकरण के बाद दाता अपना स्वामित्व और नियंत्रण खो देता है। अंशुमान ने कहा, ‘दाता धोखाधड़ी, जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव जैसे बेहद खास एवं मुश्किल से साबित होने वाली परिस्थितियों के अलावा डीड को एकतरफा तौर पर रद्द नहीं कर सकता अथवा संपत्ति को वापस नहीं ले सकता है। केवल मन बदल जाना अथवा बाद में प्राप्तकर्ता के साथ असहमति होना गिफ्ट डीड को खारिज करने के लिए वैध आधार नहीं है।’
गिफ्ट डीड के साथ देनदारियां भी आ सकती हैं। किंग स्टब ऐंड कासिवा एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नीज की पार्टनर गौरी जगताप ने कहा, ‘अगर प्राप्तकर्ता को पूरी तरह से संपत्ति मिली है और इससे संबंधित कोई ऋण या देनदारियां हैं, तो वे ही ऋण की अदायगी के लिए जिम्मेदार होंगे।’ उन्होंने कहा कि प्राप्तकर्ता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डीड में कोई प्रतिकूल या छिपी हुई शर्तें नहीं हैं जो उनके स्वामित्व अधिकारों को प्रभावित कर सकती हैं।
अगर डीड का मसौदा सही तरीके से तैयार नहीं किया गया है, बिना स्टाम्प वाला है या पंजीकृत नहीं है, तो इससे समस्या हो सकती है। ऐसे में प्राप्तकर्ता द्वारा संपत्ति की भविष्य में बिक्री या बंधक रखने में बाधा हो सकती है।