हरियाणा रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) ने हाल में एक मकान खरीदार के मुआवजे के दावे को फाइलिंग में देरी होने करने के कारण खारिज कर दिया। खरीदार को मकान पर कब्जा जून 2016 की निर्धारित समय-सीमा से चार साल बाद सितंबर 2020 में मिला था, लेकिन शिकायत अप्रैल 2024 में दर्ज की गई थी। खरीदारों की ओर से हुई गलतियों के कारण अतीत में ऐसे कई दावे खारिज किए गए हैं।
कई मकान खरीदार खराब दस्तावेजीकरण के कारण रेरा में मुकदमा हार जाते हैं। इंडियालॉ एलएलपी की पार्टनर निधि सिंह ने कहा, ‘बिल्डर और खरीदार के बीच समझौता, भुगतान संबंधी प्रमाण, देरी से शिकायत और कब्जे से पहले की आपत्तियां जैसे महत्त्वपूर्ण रिकॉर्ड अक्सर गायब हो जाते हैं।’ उन्होंने कहा कि खरीदारों को आवंटन पत्र, रसीद, शिकायत संबंधी पत्राचार या ईमेल, कब्जा संबंधी कागजात आदि सभी आवश्यक दस्तावेजों को सुरक्षित रखना चाहिए।
कई मकान खरीदार मानसिक पीड़ा या सट्टा में हुए नुकसान के लिए मनमानी रकम मांगकर अपने मामले को नुकसान पहुंचाते हैं। सीएमएस इंडस लॉ के पार्टनर क्षितिज बिश्नोई ने कहा, ‘इस तरह बढ़ा-चढ़ाकर किए गए नुकसान के दावे से उनकी विश्वसनीयता कमजोर होती है। ऐसे में ट्रिब्यूनल अथवा प्राधिकरण द्वारा मामले को पूरी तरह खारिज किया जा सकता है या मुआवजे में काफी कमी की जा सकती है। इसलिए उचित एवं सटीक दावा निर्णय लेने वालों के साथ बेहतर तालमेल बिठाता है।’
जिन मामलों में जहां रेरा से देरी के लिए मुआवजे की मांग की जाती है, आपको हुई कठिनाई को साबित करना होगा और उसके सबूत पेश करने होंगे। सिंह ने कहा, ‘केवल यह दिखाना पर्याप्त नहीं है कि कब्जा में देरी हुई। खास तौर पर ऐसे मामलों में जब खरीदार ने पहले ही कब्जा ले लिया हो, मकान सौंपने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए हों अथवा वर्षों तक कोई आपत्ति दर्ज न कराई हो। खरीदार के पक्ष को मजबूत करने वाला एक पहलू यह साबित करना भी है कि देरी होने के कारण कितना नुकसान हुआ है।’ इसके लिए किराये की रसीदें, पट्टा समझौते और चिकित्सा अथवा व्यक्तिगत आपात स्थितियों के रिकॉर्ड आपके दावे को मजबूत कर सकते हैं।
क्षेत्राधिकार सीमाओं के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मकान खरीदार अक्सर गलत फोरम में शिकायत करते हैं। एक्विलॉ की पार्टनर सौम्या बनर्जी ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, खरीदार मुआवजे के लिए रेरा से संपर्क कर सकता है। मगर 1 करोड़ रुपये से अधिक के मौद्रिक दावे राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) के लिए अधिक अनुकूल हैं।’
बिश्नोई ने कहा, ‘रेरा कब्जा मिलने में देरी और कानून के तहत ब्याज या जुर्माने के दावों के लिए सबसे अच्छा फोरम है। उपभोक्ता फोरम रिफंड, मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजा, निर्माण में खामियां अथवा सेवा संबंधी कमियों के लिए उपयुक्त है। दीवानी अदालतें परियोजना या आपके मकान से जुड़े प्रमुख विवादों, स्वामित्व संबंधी मुद्दों और निषेधाज्ञा से जुड़े जटिल मामलों को संभालती हैं।’ गलत फाइलिंग के मामले में देरी हो सकती है अथवा उसे खारिज या पुनर्निर्देशित किया जा सकता है।
कई खरीदार बिल्डर के साथ हुए समझौतों में प्रमुख प्रावधानों को नजरअंदाज कर देते हैं या गलत तरीके से पढ़ लेते हैं। बनर्जी ने कहा, ‘इन अनुबंधों में अक्सर कब्जा देने की समय-सीमा, देरी, जुर्माने और मुआवजा माफ करने पर एकतरफा शर्तें शामिल होती हैं जिन्हें खरीदार अनजाने में स्वीकार कर लेते हैं। मगर अदालतें इन समझौतों को तब तक बाध्यकारी मानती हैं जब तक उन्हें अनुचित साबित न कर दिया जाए। इसलिए समझौते की शर्तों एवं प्रमुख प्रावधानों की समीक्षा कानून के किसी जानकार की मदद से अवश्य करनी चाहिए।’
बड़ी परियोजनाओं में व्यक्तिगत रूप से शिकायत दर्ज करने से खरीदार की सौदेबाजी करने की ताकत कमजोर हो सकती है। बनर्जी ने कहा, ‘रेरा और उपभोक्ता फोरम जैसे प्राधिकरणों द्वारा सामूहिक शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान देने की अधिक संभावना होती है क्योंकि वे अलग-थलग असंतोष के बजाय एक साथ विफलता को दर्शाती हैं।’ जब शिकायत दर्ज करने के लिए कई खरीदार एकजुट होते हैं तो इससे बिल्डर और फोरम दोनों पर मामले में तेजी लाने का दबाव बनता है। इससे अधिक जुर्माने या सामूहिक निपटान होते हैं।
आम तौर पर लीगल नोटिस न भेजने का मतलब यह होता है कि शुरुआती समाधान छूट गया है। बिश्नोई ने कहा, ‘अच्छी तरह से तैयार किया गया लीगल नोटिस अक्सर बिल्डरों को समझौते के लिए मजबूर करता है। इससे लंबी मुकदमेबाजी के बिना मुद्दों को निपटाया जा सकता है। मुकदमेबाजी होने पर लीगल नोटिस आपकी गंभीरता को प्रदर्शित करेगा और वह आपके पक्ष को मजबूत करता है।’