भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने वितरकों द्वारा पोर्टफोलियो में किए जाने वाले अनावश्यक बदलाव को रोकने के लिए एक नया नियम लागू किया है। आम तौर पर वितरक अधिक कमीशन पाने के लिए नई फंड पेशकश (एनएफओ) के दौरान ऐसा करते हैं। अब वितरक यदि किसी निवेशक को एक फंड से दूसरे फंड में ले जाता है तो उसे उन दोनों योजनाओं में से जिसमें सबसे कम कमीशन होगा वही मिलेगा। एस्टी एडवाइजर्स के निवेश प्रमुख विवेक शर्मा ने कहा, ‘सेबी का नया नियम निवेशकों की सुरक्षा की दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है। यह वितरकों के कमीशन को निवेशकों के हितों के साथ जोड़कर मिस-सेलिंग (गलत जानकारी देकर योजनाओं की बिक्री) को कम करेगा। साथ ही यह पोर्टफोलियो में अनावश्यक बदलाव पर भी लगाम लगाएगा और निवेश पोर्टफोलियो में लंबी अवधि की स्थिरता को बढ़ावा देगा।’
मिस-सेलिंग का एक मुख्य कारण वितरकों और उनके ग्राहकों के बीच हितों का टकराव है। परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां (एएमसी) सेक्टर, थीमैटिक और रणनीति आधारित एनएफओ लॉन्च कर रही हैं।
फिनोवेट की सह-संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी नेहल मोटा ने कहा, ‘एनएफओ पर वितरकों को अधिक कमीशन देने का चलन है जिससे अक्सर इन योजनाओं के लिए उनकी सलाह प्रभावित होती है।’ उन्होंने कहा कि बाजार में आने वाली वाली नई परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां भी अपनी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए अधिक कमीशन की पेशकश करती हैं। नई परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों की योजनाओं और एनएफओ दोनों में पर्याप्त ट्रैक रिकॉर्ड का अभाव होता है। इसलिए उनमें निवेश करना निवेशकों के हितों के खिलाफ होता है।
आम तौर पर 500 करोड़ रुपये से कम प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति (एयूएम) वाले छोटे ऐक्टिव फंड सालाना 2.25 फीसदी तक शुल्क ले सकते हैं, जबकि सबसे बड़े ऐक्टिव इक्विटी फंड के लिए शुल्क 1.25 फीसदी है। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और फिड्यूसिएरीज के संस्थापक अविनाश लूथरिया ने कहा, ‘अगर कोई वितरक किसी ग्राहक को सबसे बड़े फंड से सबसे छोटे फंड में हस्तांतरित करता है तो फीस में सालाना करीब 100 आधार अंकों की वृद्धि हो सकती है जिसे फंड हाउस और वितरक दोनों साझा कर सकते हैं।’
मिस-सेलिंग को बढ़ावा देने वाला एक अन्य कारक निवेशकों में वित्तीय साक्षरता की कमी है। ऐसे में निवेशक आम तौर पर खरीदी गई योजना की जांच नहीं करते हैं। आईआईटी मद्रास के एसोसिएट प्रोफेसर और फ्रीफिनकल के संस्थापक एम. पट्टाभिरमन ने कहा, ‘मिस-सेलिंग हमेशा वहीं होती है जहां गलत खरीदारी की जाती है।’ बिचौलियों द्वारा दी जाने वाली निवेश सलाह और आकस्मिक सलाह के बीच धुंधली रेखा भी इस मुद्दे को जटिल बना देती है। पट्टाभिरमन ने कहा, ‘सेबी का कहना है कि केवल पंजीकृत निवेश सलाहकार को ही निवेश संबंधी सलाह देनी चाहिए और बिचौलिये को केवल आकस्मिक सलाह देनी चाहिए। ज्यादातर मामलों में निवेश सलाह और आकस्मिक सलाह के बीच बारीक सीमा भी नहीं होती है। ऐसे में वितरक ही निवेश सलाह देने लगते हैं।’
मिस-सेलिंग के गंभीर नकारात्मक परिणाम दिखेते हैं। शर्मा ने कहा, ‘इसके जरिये उन योजनाओं की सिफारिश की जाती है जो निवेशक के लक्ष्य अथवा जोखिम उठाने की क्षमता के लिहाज से उपयुक्त नहीं होती हैं। आम तौर पर वितरक एक्सपेंस रेशियो और एग्जिट लोड जैसी लागत को छिपाते हैं अथवा उच्च जोखिम वाले फंडों में खतरों को कम करके आंकते हैं।’
निवेशकों के लिए मिस-सेलिंग से बचने का एक प्रभावी तरीका डीआईवाई (डू इट योरसेल्फ) को अपनाना और एमएफसेंट्रल डॉट कॉम जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए सीधे म्युचुअल फंड योजनाओं का विकल्प चुनना है।
पट्टाभिरमन ने कहा, ‘अगर निवेशक को सलाह की जरूरत है तो उन्हें पेशेवर सलाहकारों से ही सलाह लेनी चाहिए जिनका हितों का कोई टकराव न हो।’ उन्होंने कहा कि इसके लिए सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकारों से सलाह ली जा सकती है जो अलग से फीस लेते हैं। वितरक शायद ही कभी निफ्टी 50 जैसे पैसिव इंडेक्स फंड की सलाह देते हैं, क्योंकि उनका कमीशन ऐक्टिव इक्विटी फंड के मुकाबले काफी कम होता है।
लूथरिया ने कहा, ‘पैसिव इंडेक्स फंड में निवेश करके आप अपने कुल खर्च अनुपात को कम कर सकते हैं।’ निवेशकों को परिसंपत्ति आवंटन पर नियंत्रण रखना चाहिए और उसे वितरकों पर नहीं छोड़ना चाहिए। लूथरिया ने कहा, ‘वितरक इक्विटी फंडों को बेचने में काफी दिलचस्पी दिखाते हैं।’ मगर ऐसे में निवेशक का पोर्टफोलियो में जोखिम का स्तर उनकी सहन क्षमता से अधिक हो सकता है। बहरहाल, वित्तीय साक्षरता में सुधार लाना बेहद आवश्यक है। मोटा ने कहा, ‘उसके बाद ही आप बेहतर निर्णय ले सकते हैं और मिस-सेलिंग से बच सकते हैं।’