17 मई को दुनियाभर में वर्ल्ड हाइपरटेंशन डे मनाया गया। इस दिन का मकसद लोगों को हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर के खतरों के बारे में जागरूक करना है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और इंडिया हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 25 प्रतिशत अडल्ट हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। यानी हर चार में से एक व्यक्ति को यह समस्या है।
हाइपरटेंशन एक ऐसी हेल्थ प्रॉब्लम है जो दिल की बीमारियों, स्ट्रोक, किडनी और आंखों से जुड़ी परेशानियों के साथ-साथ ब्रेन फंक्शन पर भी असर डालती है। इससे कॉग्निटिव डिक्लाइन यानी सोचने-समझने की क्षमता में कमी आ सकती है।
ManipalCigna Health Insurance के प्रमुख (प्रोडक्ट्स और बिजनेस ऑपरेशंस) आशीष यादव ने बताया, “हाइपरटेंशन कई क्रॉनिक और क्रिटिकल बीमारियों की जड़ हो सकता है।”
एक्सपर्ट्स का कहना है कि समय-समय पर ब्लड प्रेशर की जांच, हेल्दी डाइट, नियमित व्यायाम और तनाव को कंट्रोल करके इस बीमारी से बचा जा सकता है। वर्ल्ड हाइपरटेंशन डे के ज़रिए लोगों को इस साइलेंट किलर के प्रति सतर्क करने की कोशिश की गई।
हाइपरटेंशन वालों को हेल्थ इंश्योरेंस लेना क्यों होता है मुश्किल? जानिए पूरी डिटेल
अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर यानी हाइपरटेंशन है, तो हेल्थ इंश्योरेंस लेना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। ऐसे लोगों को इंश्योरेंस कंपनीज अक्सर बहुत सारे मेडिकल टेस्ट कराती हैं, जो ना सिर्फ टाइम लेने वाले होते हैं, बल्कि महंगे और टेंशन देने वाले भी हो सकते हैं।
TATA AIG General Insurance में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (कंज्यूमर अंडरराइटिंग) दिनेश मोसामकर के मुताबिक, इंश्योरेंस कंपनियां आपकी हेल्थ रिपोर्ट को कई पॉइंट्स पर चेक करती हैं:
अगर आपका बीपी काफी ज्यादा है और कंट्रोल में नहीं है, तो कंपनी आपका इंश्योरेंस प्रपोजल रिजेक्ट भी कर सकती है। और अगर पॉलिसी मिल भी जाती है, तो उसमें कुछ चीजें शामिल नहीं होंगी (जैसे exclusions), कुछ लिमिट्स लगाई जा सकती हैं या फिर वेटिंग पीरियड ज्यादा हो सकता है।
ManipalCigna Health Insurance के प्रमुख यादव ने बताया कि अगर मेडिकल रिपोर्ट्स में हाई लेवल हाइपरटेंशन सामने आता है, तो कंपनी आपकी पॉलिसी पर एक्स्ट्रा चार्ज (loading) भी लगा सकती है, जिससे प्रीमियम बढ़ जाता है।
यादव ने कहा कि पहले के मुकाबले अब हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के नियमों में काफी बदलाव आया है। करीब एक दशक पहले तक अगर किसी व्यक्ति को हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) होता था, तो इंश्योरेंस कंपनियां उसका आवेदन कई बार रिजेक्ट कर देती थीं। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
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आज, बेहतर मेडिकल डेटा और बीमारियों के मैनेजमेंट के चलते, इंश्योरेंस कंपनियां हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों को भी हेल्थ पॉलिसी देने को तैयार हैं। अगर किसी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर लो या मीडियम लेवल का है, तो उसे बिना किसी अतिरिक्त चार्ज (लोडिंग) के रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी मिल सकती है।
अगर ब्लड प्रेशर ज़्यादा हाई है, तो भी पॉलिसी मिल सकती है, लेकिन उसमें लोडिंग या को-पे जैसी शर्तें लग सकती हैं। कुछ कंपनियां ऐसे लोगों के लिए स्पेशल बीमा प्लान भी ऑफर करती हैं, लेकिन उनमें कवरेज लिमिटेड होता है।
Policybazaar के हेल्थ इंश्योरेंस हेड सिद्धार्थ सिंघल कहते हैं, “आज लगभग 95% हाइपरटेंशन से पीड़ित लोग रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस ले सकते हैं। उन्हें किसी तरह की एक्सक्लूजन या लंबे वेटिंग पीरियड का सामना नहीं करना पड़ता। केवल 5% मामलों में, जहां ब्लड प्रेशर की स्थिति बहुत ज़्यादा गंभीर होती है, वहां लोडिंग या को-पे के साथ पॉलिसी जारी की जाती है।”
पहले के समय में जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) जैसी प्री-एक्सिस्टिंग बीमारियां होती थीं, उन्हें हेल्थ इंश्योरेंस में शामिल होने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता था। कई पॉलिसियों में अब भी 2–3 साल का वेटिंग पीरियड होता है।यादव ने कहा कि अब बहुत से इंश्योरेंस कंपनियां ऐसे प्रोडक्ट्स ऑफर कर रही हैं जिनमें ज़ीरो वेटिंग पीरियड मिलता है।
सिंगल के अनुसार, अगर कस्टमर 18–20 प्रतिशत ज़्यादा प्रीमियम देते हैं तो वह 2–3 साल के वेटिंग पीरियड को खत्म कर सकते हैं। हालांकि, शुरुआती 30 दिनों का वेटिंग पीरियड हर हाल में लागू होता है।
इंश्योरेंस कंपनियां अब क्यूम्युलेटिव बोनस राइडर भी दे रही हैं। इस राइडर की मदद से हर रिन्युअल पर बोनस के तौर पर बीमा राशि डबल हो सकती है – यानी 100% तक बढ़ सकती है। सबसे खास बात ये है कि इसकी कोई अपर लिमिट नहीं होती। ये फीचर उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है जो हाइपरटेंशन से जूझ रहे हैं, क्योंकि उन्हें हार्ट अटैक, स्ट्रोक जैसी गंभीर और महंगी बीमारियों का खतरा ज़्यादा होता है।
कई इंश्योरेंस कंपनियां अब कंडीशन मैनेजमेंट प्रोग्राम्स भी शुरू कर चुकी हैं। इन प्रोग्राम्स के तहत रेगुलर हेल्थ चेकअप्स, टेली-कंसल्टेशन और डॉक्टर्स से इन-पर्सन सेशंस की सुविधा दी जाती है, जिससे हाई बीपी को कंट्रोल करने में मदद मिलती है।
इसके अलावा कंपनियां ओपीडी राइडर भी ऑफर कर रही हैं, जिनमें डॉक्टर की कंसल्टेशन फीस, डायग्नोस्टिक टेस्ट और मेडिसिन जैसी खर्चों को कवर किया जाता है। ये हाइपरटेंशन के रेगुलर मैनेजमेंट के लिए काफी उपयोगी है।
बीमा प्रीमियम कैसे कम करें: कुछ आसान टिप्स और कॉमन गलतियों से बचें
अगर आपका हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल में है, तो आपको बीमा प्रीमियम में कोई extra लोडिंग नहीं लग सकता है। इससे आपकी जेब पर कम बोझ पड़ेगा।
अगर परिवार के बाकी सदस्यों को हाईपरटेंशन जैसी हेल्थ प्रॉब्लम नहीं है, तो फैमिली फ्लोटर पॉलिसी लेने से आपको बेहतर रेट मिल सकता है। यानि कुल प्रीमियम कम हो सकता है।
अगर प्रीमियम ज्यादा लग रहा है, तो आप डिडक्टिबल का ऑप्शन चुन सकते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ₹25,000 का डिडक्टिबल चुनने से प्रीमियम कम हो जाएगा और उसके ऊपर के खर्च बीमा कंपनी कवर करेगी।
अगर आप लोअर ग्रेड रूम चुनते हैं, तो प्रीमियम में कटौती हो सकती है। वहीं, बीमा कंपनी के नेटवर्क हॉस्पिटल्स में इलाज कराने से भी प्रीमियम 15% तक कम हो सकता है।
अगर एक साथ पूरा प्रीमियम देना मुश्किल लग रहा है, तो आप मंथली प्रीमियम का ऑप्शन भी चुन सकते हैं। इससे पेमेंट का बर्डन थोड़ा-थोड़ा करके बंट जाएगा।
अगर आप अपनी हेल्थ कंडीशन जैसे हाई ब्लड प्रेशर को डिस्क्लोज नहीं करते हैं, तो पॉलिसी तो मिल सकती है लेकिन क्लेम करते वक्त रिजेक्शन का खतरा रहता है।
अक्सर लोग पॉलिसी में दिए गए वेटिंग पीरियड, सब-लिमिट्स जैसी बातें ठीक से नहीं पढ़ते, जिससे बाद में दिक्कतें आती हैं।
रेगुलर हेल्थ चेकअप और प्रिवेंटिव स्क्रीनिंग जैसे फीचर्स को न लेना भी नुकसानदेह हो सकता है। ये हेल्थ को लंबे समय तक बेहतर बनाए रखने में मदद करते हैं।
आज के टाइम में खासकर मेट्रो सिटीज में ₹5 लाख का बीमा कवर काफी नहीं है। मेडिकल खर्च तेजी से बढ़ रहा है, इसलिए ज्यादा कवर चुनना समझदारी है।
Day One कवर राइडर सिर्फ पॉलिसी खरीदते वक्त ही लिया जा सकता है, बाद में नहीं। इसे छोड़ना फ्यूचर में नुकसान कर सकता है।
भारत में हेल्थ खर्च हर साल 10-15% तक बढ़ रहा है। ऐसे में cumulative bonus rider लेना जरूरी है ताकि आप मेडिकल इंफ्लेशन को बीट कर सकें।