भारतीय शेयरों ने सोमवार को नई गिरावट का सामना किया। गिरावट की वजह अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का वह बयान रहा जिसमें उन्होंने अमेरिका में आयातित इस्पात और एल्युमीनियम पर शुल्क लगाने की बात कही। साथ ही यह भी कहा कि अमेरिकी आयात पर टैक्स लगाने वाले देशों पर जवाबी शुल्क लगाया जाएगा।
बीएसई सेंसेक्स 548 अंक यानी 0.7 फीसदी की गिरावट के साथ 77,312 पर बंद हुआ। निफ्टी-50 भी 178 अंक यानी 0.7 फीसदी की नरमी के साथ 23,382 पर बंद टिका। दोनों सूचकांकों में गिरावट का यह लगातार चौथा दिन है। बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 6 लाख करोड़ रुपये घटकर 417 लाख करोड़ रुपये रह गया।
राष्ट्रपति ट्रंप की रविवार की घोषणा से दुनिया भर के निवेशक बेचैन हो गए। उन्होंने अमेरिका में आयात हो रहे सभी स्टील और एल्युमीनियम पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने के इरादा जताया। अगर लागू किया गया तो इन उपायों से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है और अमेरिका में ब्याज दर घटने की संभावना कम हो सकती है। ट्रंप ने इन शुल्कों के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की है जिससे अनिश्चितता बढ़ गई। यह घोषणा इसी तरह के कई प्रस्तावों के बाद आई है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन सभी को लागू किया जाएगा या नहीं। इससे पहले, ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको पर टैरिफ की घोषणा की थी। लेकिन बाद में उन्हें 30 दिन का वक्त दिया जबकि चीन पर 10 फीसदी शुल्क लगा दिया।
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ की धमकियों ने बाजार के मनोबल को प्रभावित करना जारी रखा है। घरेलू यील्ड बढ़ रही है क्योंकि निवेशक जोखिम वाली संपत्तियों को लेकर सतर्क हैं और अपने निवेश को सोने जैसी सुरक्षित परिसंपत्ति में ले जा रहे हैं। आय के मोर्चे पर कंपनियों को कमजोर मांग, मार्जिन दबाव और अल्पावधि के आउटलुक पर सतर्कता के कारण डाउनग्रेड का सामना करना पड़ रहा है।
ऊंची बेंचमार्क दरें भारत समेत उभरते बाजारों को कम आकर्षक बनाती हैं। ट्रंप के कदम से अमेरिकी डॉलर भी मजबूत हो सकता है। डॉलर इंडेक्स 0.3 फीसदी बढ़कर 108.3 पर पहुंच गया। कारोबारी सत्र के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया और 87.47 पर कारोबार कर रहा था।
निवेशकों ने भी अपना पैसा सुरक्षित संपत्तियों की ओर लगाया, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सोने की कीमतें 1.54 फीसदी बढ़कर 2,905 डॉलर प्रति औंस हो गईं। सितंबर में अपने सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद से भारतीय शेयरों में बिकवाली हो रही है। इसकी वजह कंपनियों की आय में कमी और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की बिकवाली को माना जा रहा है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख सिद्धार्थ खेमका ने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत से बाजार की धारणा में कुछ स्थिरता आने की उम्मीद थी। लेकिन वैश्विक चिंताओं और विदेशी निवेशकों की गतिविधियों ने इसके असर को कम कर दिया है। बजट अब पीछे रह गया है और आरबीआई मौद्रिक राहत प्रदान कर चुका है। ट्रंप की व्यापार नीतियों के कारण वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल के बीच अब नजर तीसरी तिमाही के बचे हुए नतीजों, कंपनियों के अनुमानों और वैश्विक आर्थिक हालात पर रहेगी।
एफपीआई सोमवार को 2,464 करोड़ रुपये के शुद्ध बिकवाल रहे। घरेलू संस्थानों ने 1,516 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की। बाजार में चढ़ने और गिरने वाले शेयरों का अनुपात कमजोर रहा और 3,125 शेयरों में गिरावट आई जबकि सिर्फ 993 में बढ़त हुई। सेंसेक्स के दो तिहाई से अधिक शेयरों में गिरावट रही। 0.9 फीसदी टूटने वाले एचडीएफसी बैंक का सेंसेक्स की गिरावट में सबसे बड़ा योगदान रहा। उसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज का स्थान रहा।