बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने देश के अरबपतियों के शेयर बाजार में बढ़ते प्रभाव को देखते हुए फैमिली ऑफिसेज़ (Family Offices) को अपने दायरे में लाने पर चर्चा शुरू कर दी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, सेबी इन फैमिली ऑफिसेज़ से पहली बार उनके संस्थानों, एसेट और निवेश रिटर्न की जानकारी साझा करने की मांग कर सकता है। इनके लिए एक अलग रेगुलेटरी कैटेगिरी बनाने की भी संभावना है।
सेबी का उद्देश्य यह समझना है कि किस प्रकार फैमिली-बेस्ड बड़े कारोबारी समूह सार्वजनिक बाजारों में निवेश करते हैं और उससे उत्पन्न संभावित जोखिम क्या हैं। बताया जा रहा है कि इस साल की शुरुआत में सेबी ने देश के कुछ सबसे बड़े फैमिली ऑफिसेज़ के साथ बैठकें की हैं और अन्य से लिखित सुझाव मांगे हैं। हालांकि अंतिम नियमों की समय-सीमा और स्वरूप अभी स्पष्ट नहीं हैं। वर्तमान में भारत में फैमिली ऑफिसेज़ के लिए कोई विशिष्ट नियमन नहीं है।
यह कदम इस ओर इशारा करता है कि भारत के सुपर-रिच परिवार अब बाजार में ऐसे बड़े खिलाड़ी बन चुके हैं जिनके निवेश बाजार की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। दो दशक पहले देश में फैमिली ऑफिस की संख्या बेहद सीमित थी। लेकिन अब ये स्टार्टअप्स को फंड देने, प्राइवेट इक्विटी में निवेश करने और आईपीओ में भाग लेने वाले अहम निवेशक बन चुके हैं। इनमें से कई नियामक इकाइयों जैसे कि वैकल्पिक निवेश फंड (AIF) या शैडो लेंडर्स बैंकिंग संस्थानों (shadow lenders) के जरिये निवेश करते हैं।
भारत में दुनिया के कुछ सबसे अमीर लोग रहते हैं। जैसे कि रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के मालिक मुकेश अंबानी, जिनकी नेटवर्थ $96.4 डॉलर है। अदाणी ग्रुप के प्रमुख गौतम अदाणी, जो पोर्ट से लेकर कोयला व्यापार तक फैले कारोबार में सक्रिय हैं। कई फैमिली ऑफिस पहले से ही आईपीओ में एंकर निवेशक के रूप में शामिल हैं। जैसे कि विप्रो के अज़ीम प्रेमजी की प्रेमजी इन्वेस्ट। बजाज समूह की बजाज होल्डिंग्स एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड और टेक उद्यमी शिव नाडार और नारायण मूर्ति की निजी निवेश कंपनियां।
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सिंगल फैमिली ऑफिस वे संस्थाएं होती हैं जो केवल एक परिवार की एसेट और लाइफ मैनेजमेंट के लिए समर्पित होती हैं। सिंगापुर में इन्हें टैक्स छूट का लाभ लेने के लिए न्यूनतम एसेट मैनेजमेंट की शर्तें पूरी करनी होती हैं। जबकि हांगकांग में सिंगल फैमिली ऑफिस को लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन मल्टी-फैमिली ऑफिस को अक्सर लाइसेंस चाहिए होता है।
हालांकि, भारत में ये संस्थाएं एक ही परिवार का प्रतिनिधित्व करती हैं। पर इनमें कई व्यक्ति, कंपनियां और संस्थाएं पूंजी प्रदान करती हैं। सेबी चाहता है कि उसे इस बात की स्पष्ट जानकारी हो कि फैमिली ऑफिस के तहत कितने लोग और किस प्रकार से निवेश कर रहे हैं। ताकि इनसाइडर ट्रेडिंग और हितों के टकराव जैसे जोखिमों को रोका जा सके।