सर्वोच्च न्यायालय ने आज संकेत दिया कि वह अदाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच पूरी करने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को तीन महीने का समय और दे सकता है। सेबी ने जांच पूरी करने की मियाद 6 महीने बढ़ाने का अनुरोध करते हुए अदालत में याचिका डाली थी। मगर पीठ इस पर तैयार नहीं था।
बहरहाल पीठ ने कहा कि वह सप्ताहांत में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एएम सप्रे की अध्यक्षता वाली 6 सदस्यीय समिति की रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही अंतिम समयसीमा पर फैसला करेगा। शीर्ष अदालत में मामले की सुनवाई अब 15 मई को होगी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हन तथा न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला के पीठ ने कहा, ‘अदालत द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट रजिस्ट्री के पास है। हमें इसे पढ़ने का समय नहीं मिल पाया है। हम सोमवार को इस मामले पर विचार करेंगे।’
आवेदक का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सेबी 2016 से ही अदाणी समूह से संबंधित मामलों की जांच कर रहा है और उसे मुखौटा कंपनियों तथा लेनदेन से संबंधित ब्योरा काफी पहले ही मिल गया होता। सेबी का पक्ष रखते हुए सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि पहले बिल्कुल अलग मामलों में जांच की गई थी।
मेहता ने जांच में आने वाली चुनौतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने पीठ को बताया कि सेबी ने मदद के लिए विदेशी नियामकों से संपर्क किया है। मगर बैंक विवरण और लेनदेन का ब्योरा हासिल करना बहुत चुनौती भरा है और इसमें काफी वक्त लगेगा।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सेबी की याचिका में जिन 12 संदिग्ध लेनेदन का जिक्र किया गया है, वे बाजार नियामक की जांच में सामने नहीं आए हैं। मेहता ने कहा कि अमेरिकी प्रतिभूति नियामक को जांच पूरी करने में औसतन 34 महीने लग जाते हैं, इसलिए 6 महीने भी बहुत कम हैं।
मगर सर्वोच्च न्यायालय स्पष्ट तौर पर 6 महीने और देने के पक्ष में नहीं है। तीन महीने की मोहलत का संकेत देने से पहले पीठ ने कहा, ‘6 महीने देना सही नहीं होगा क्योंकि हम मान रहे थे कि जांच 2 महीने में ही पूरी हो जाएगी। हम यह नहीं कह रहे कि हम समय नहीं देंगे मगर 6 महीने और देना ठीक नहीं होगा।’
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सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि सेबी ने वैश्विक बाजार नियामकों के निकाय यानी प्रतिभूति आयोगों के अंतरराष्ट्रीय संगठन (IOSCO) से भी मदद करने का आग्रह किया है।
सेबी द्वारा अभी तक की गई जांच का खुलासा करने के भूषण के अनुरोध पर पीठ ने कहा, ‘इससे जांच प्रभावित होगी। यह कोई आपराधिक जांच नहीं है।’
सुनवाई के दौरान पीठ ने याचियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों में से एक को फटकार लगाते हुए कहा कि उन्होंने सेबी की नियामकीय विफलता जैसा कुछ नहीं कहा है।
पीठ ने कहा, ‘हमने समिति गठित की है। यदि सही मायने में नियामक की विफलता थी तो समिति उसे देखेगी। रिपोर्ट को देखे बिना यह कहना अनुचित है कि यह यह नियामकीय विफलता थी। हमने ऐसा नहीं कहा है।’ अदालत ने कहा कि ऐसे आरोपों से शेयर बाजार की स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
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2 मार्च को शीर्ष अदालत ने सेबी को दो महीने में जांच पूरी कर 2 मई तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। सेबी ने 29 अप्रैल को अदालत में आवेदन दाखिल कर कहा था कि उसे 12 संदिग्ध लेनदेन के संबंध में गलत वित्तीय ब्योरा दिए जाने, नियमों का उल्लंघन किए जाने और धोखाधड़ी वाले लेनदेन किए जाने जैसे संभावित उल्लंघनों का पता लगाने के लिए समय की जरूरत होगी। इसका विरोध करते हुए याची के वकील विशाल तिवारी ने कहा था कि सेबी मामले को अंतहीन जांच तक ले जाने की कोशिश कर रहा है।