आईआईएफएल कैपिटल के प्रबंध निदेशक आर वेंकटरामन का कहना है कि बढ़ती अनुपालन लागत और प्रौद्योगिकी में अधिक निवेश की जरूरत ब्रोकिंग उद्योग का परिचालन खर्च बढ़ा रही है। एक ईमेल इंटरव्यू में उन्होंने पुनीत वाधवा को बताया कि ब्रोकिंग क्षेत्र में दबाव को कम करने के लिए ब्रोकरों को राजस्व के अधिक स्रोतों को (वेल्थ मैनेजमेंट, डिस्ट्रीब्यूशन आदि) जोड़ने की जरूरत होगी। बातचीत के अंश:
क्या वित्त वर्ष 2025 की जनवरी-मार्च तिमाही के आय नतीजों से बाजार का भरोसा बढ़ा है?
आईआईएफएल ने निफ्टी के आय अनुमान 31 मार्च से 12 मई के बीच वित्त वर्ष 2026 के लिए 4.8 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2027 के लिए 3.5 प्रतिशत तक घटा दिए। यह कटौती आय में निराशा की आशंकाओं के कारण की गई थी। कच्चे तेल की कीमतों में नरमी का फायदा पाने वाले सीमेंट जैसे सेक्टरों में मामूली सुधार देखा गया। लेकिन ज्यादातर अन्य सेक्टरों, खासकर बैंकिंग, में गिरावट आई क्योंकि ऋण लागत बढ़ रही है, जमा वृद्धि धीमी हो रही है और ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद है।
मिडकैप और स्मॉलकैप पर आपका क्या नजरिया है?
निफ्टी मिडकैप 150 सूचकांक 28 गुना के पीई पर कारोबार कर रहा है जो निफ्टी स्मॉलकैप 250 सूचकांक (23 गुना) के मुकाबले महंगा है। निफ्टी कुल मिलाकर हमारे अनुमानों के आधार पर वित्त वर्ष 2026 के 23 गुना पीई पर कारोबार कर रहा है। स्मॉलकैप सेगमेंट आकर्षक दिख रहा है और इसमें केआईएमएस हॉस्पिटल्स, ट्यूब इन्वेस्टमेंट्स ऑफ इंडिया, दीपक फर्टिलाइजर्स ऐंड पेट्रोकेमिकल्स कॉरपोरेशन, जेबी केमिकल्स और अपोलो टायर्स जैसे शेयर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
डीमैट खाते खुलने की रफ्तार धीमी पड़ी है और इक्विटी में एसआईपी निवेश ऊंचे स्तरों से घटा है। क्या आप इस रुझान में जल्द बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं?
डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के छह महीने और भारत-पाकिस्तान के बीच 20 दिन के तनाव के बाद व्यापारिक टकराव डर कम होने से एसआईपी निवेश स्थिर होना चाहिए और यह अपनी पिछली बढ़त दर पर आ सकता है। हालांकि एसआईपी की रफ्तार धीमी हो गई है। लेकिन यह अभी भी 3 अरब डॉलर प्रति माह से ऊपर है। घरेलू संस्थागत निवेशक लगातार एसआईपी निवेश की मदद से खरीदारी जारी रखे हुए हैं और नकदी स्तर बहुत अधिक नहीं बढ़ा है।
क्या 2025 उभरते बाजार के बजाय विकसित बाजारों के लिए अच्छा रहेगा?
यह अनुमान लगाना मुश्किल है। अगर हालात सही हैं और वास्तव में उनमें सुधार हो रहा है तो सभी देश मजबूत होंगे। हालांकि, उभरते बाजारों के बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना अधिक है क्योंकि अमेरिकी डॉलर में कमजोरी और जिंसों में नरमी उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों के लिए ब्याज दरें घटाने का आदर्श माहौल बनाती हैं।
उभरते बाजारों में भारत का प्रदर्शन कैसा रह सकता है?
इनमें भारत की अच्छी स्थिति है। उसके पास कम कर्ज (मलेशिया के विपरीत) है, विविधता वाला औद्योगिक और विनिर्माण आधार (इंडोनेशिया के विपरीत), विशाल कार्यबल (थाईलैंड और मलेशिया के विपरीत) है।
क्या आपको वित्त वर्ष 2026 में ब्रोकिंग उद्योग के राजस्व पर असर पड़ने की आशंका है?
हमारा मानना है कि वित्त वर्ष 2026 ब्रोकिंग उद्योग के लिए अच्छा रहेगा। अनिश्चितताएं घटने से इस उद्योग को इक्विटी के जरिये धन जुटाने की गतिविधियों से मदद मिलेगी।
क्या अगले 12 से 18 महीनों में ब्रोकिंग उद्योग में बड़े ब्रोकर और मजबूत होंगे?
बढ़ती अनुपालन लागत और ऊंचे टेक्नॉलजी निवेश की जरूरत परिचालन लागत बढ़ा रही है। नियामकीय बदलावों से भी ब्रोकिंग शुल्क के ढांचे प्रभावित हो रहे हैं और डेरिवेटिव कारोबार सीमित होने से मुनाफा घट रहा है। इन दबाव को देखते हुए छोटे ब्रोकरों को प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। ब्रोकिंग सेगमेंट पर दबाव का मुकाबला करने के लिए ब्रोकरों को राजस्व के स्रोतों में विविधता लानी होगी।
पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं (पीएमएस) पर आपकी क्या राय है?
पीएमएस उद्योग भी बढ़ते अनुपालन, उच्च परिचालन लागत (विशेष रूप से प्रतिभा) और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण दबाव में है। अस्थिर बाजार में ज्यादा रिटर्न दिलाने की चुनौती छोटी पीएमएस फर्मों के लिए मुश्किलें खड़ी करती है। पीएमएस के लिए 50 लाख रुपये की तुलना में लगभग 10 लाख रुपये के न्यूनतम निवेश के साथ म्युचुअल फंड द्वारा विशेष निवेश फंडों की शुरुआत, नई पूंजी के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ाती है।