Jane Street: अमेरिका की ट्रेडिंग फर्म जेन स्ट्रीट (Jane Street) भारत में उस समय विवादों में आ गई, जब भारतीय बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने उस पर रिटेल निवेशकों को नुकसान पहुंचाकर मुनाफा कमाने के लिए इंडेक्स प्राइस को कृत्रिम रूप से प्रभावित करने का आरोप लगाया। सेबी ने 3 जुलाई को जेन स्ट्रीट पर अस्थायी रूप से भारतीय सिक्युरिटीज मार्केट में ट्रेडिंग करने पर रोक लगा दी। सेबी का आरोप था कि कंपनी ने एक कोऑर्डिनेटेड ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी अपनाई जिससे बैंक निफ्टी इंडेक्स के भाव प्रभावित हुए, निवेशकों को भ्रमित किया गया और इसके चलते वोलैटिलिटी से कंपनी ने मुनाफा कमाया।
जेन स्ट्रीट ने हालांकि किसी भी गड़बड़ी से इनकार किया है और अब वह सेबी के आदेश को चुनौती दे रही है। साथ ही, कंपनी ने ₹4,800 करोड़ (करीब $560 मिलियन) एक एस्क्रो अकाउंट में जमा करवाकर भारतीय बाजारों में फिर से ट्रेडिंग शुरू कर दी है।
यह मामला संस्थागत निवेशकों को असहज कर गया है और यह भारत के फाइनैंशल मार्केट के लिए एक चेतावनी बन सकता है। यह बहस छेड़ रहा है कि आर्बिट्राज (लीगल ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी) और मार्केट मैनिपुलेशन (इलीगल हस्तक्षेप) के बीच अंतर कहां है।
जेन स्ट्रीट एक ग्लोबल क्वांटिटेटिव ट्रेडिंग फर्म है जो मैथेमेटिकल मॉडल और एल्गोरिदम की मदद से तेज़ी से और कई बाजारों में ट्रेड करती है। यह 45 से ज्यादा देशों में काम करती है और इसके 3,000 से ज्यादा कर्मचारी हैं। Financial Times की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में इसने नॉर्थ अमेरिका के इक्विटी ट्रेडिंग वॉल्यूम में 10.4% हिस्सेदारी दर्ज की थी, जो 2022 में 7.6% थी।
भारत में कंपनी कैश मार्केट (जहां असल में शेयर खरीदे-बेचे जाते हैं) और डेरिवेटिव्स मार्केट (जहां भविष्य की कीमतों पर दांव लगाए जाते हैं) दोनों में भारी मात्रा में ट्रेड करती है।
आर्बिट्राज एक लीगल ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी है, जिसमें अलग-अलग बाजारों में कीमत के अंतर का फायदा उठाया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई स्टॉक दो एक्सचेंज पर अलग-अलग कीमत पर ट्रेड हो रहा है, तो ट्रेडर सस्ती कीमत पर खरीदकर महंगी कीमत पर बेचकर मुनाफा कमा सकता है।
भारत में अक्सर यह कैश मार्केट और डेरिवेटिव्स मार्केट के बीच होता है, जहां ट्रेडर संबंधित एसेट को एक साथ खरीद और बेचकर छोटे और कम जोखिम वाले मुनाफे को लॉक करते हैं। जब तक ट्रेड वास्तविक बाजार विसंगतियों पर आधारित हों और कृत्रिम रूप से कीमतों को प्रभावित करने की कोशिश न हो, तब तक आर्बिट्राज पूरी तरह लीगल है।
सेबी के पूर्व सदस्य वी. रघुनाथन ने CNBC को बताया कि आर्बिट्राज बाजार की कीमतों को बराबरी पर लाने में मदद करता है, जिससे मार्केट इफीशिएंसी बेहतर होती है।
मार्केट मैनिपुलेशन गैरकानूनी है। इसका मतलब है जानबूझकर कीमतों को इस तरह प्रभावित करना जिससे बाजार गतिविधि की झूठी तस्वीर सामने आए। इसमें नकली मांग पैदा करना, बिना वास्तविक आर्थिक कारण के कीमतों को बढ़ाना या गिराना, या सिर्फ बाजार को प्रभावित करने के इरादे से ट्रेड करना शामिल है।
आर्बिट्राज बाजार की स्वाभाविक गतिविधियों के भीतर काम करता है, जबकि मैनिपुलेशन बाजार की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करता है और अन्य निवेशकों को नुकसान पहुंचा सकता है। अंतर ‘इरादे’ और ‘प्रभाव’ पर निर्भर करता है।
सेबी का कहना है कि जेन स्ट्रीट ने कई संस्थाओं के जरिए एक कोऑर्डिनेटेड ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी अपनाई। एक इकाई ने दिन की शुरुआत में भारी मात्रा में बैंकिंग स्टॉक्स खरीदे जिससे बैंक निफ्टी इंडेक्स ऊपर गया, वहीं दूसरी इकाई ने डेरिवेटिव्स में गिरावट पर दांव लगाया।
ट्रेडिंग के अंत में, खासकर एक्सपायरी के दिन, जेन स्ट्रीट ने पहले खरीदे गए स्टॉक्स को भारी मात्रा में बेच दिया, जिससे इंडेक्स नीचे चला गया। सेबी का कहना है कि इस कृत्रिम गिरावट से कंपनी को डेरिवेटिव्स से बड़ा मुनाफा हुआ। यह स्ट्रैटेजी “मार्किंग द क्लोज़” के रूप में जानी जाती है और अगर यह जानबूझकर की जाए तो इसे मैनिपुलेटिव माना जाता है। सेबी का कहना है कि कंपनी की इस कार्रवाई से बाजार की गतिविधियों की झूठी और भ्रामक तस्वीर बनी, जिससे खुदरा निवेशकों ने गलत स्तर पर ट्रेड किया और नुकसान उठाया।
जेन स्ट्रीट ने किसी भी गलत प्रेक्टिस से इनकार किया है और अपनी गतिविधियों को सामान्य इंडेक्स आर्बिट्राज बताया है। कंपनी ने इस पर सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा है, लेकिन यह साफ किया है कि वह सेबी के आदेश को चुनौती देगी। 14 जुलाई को जेन स्ट्रीट ने ₹4,844 करोड़ एस्क्रो अकाउंट में जमा कर दिए, जो सेबी की उस शर्त का हिस्सा था जो भारतीय बाजारों में फिर से ट्रेडिंग शुरू करने के लिए तय की गई थी।
इस मामले ने संस्थागत निवेशकों के एक वर्ग को परेशान कर दिया है। भले ही भारतीय शेयर सूचकांक अपने उच्चतम स्तर के करीब हैं, लेकिन विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) खासतौर पर मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स को लेकर सतर्क हो गए हैं, जहां वैल्यूएशन ऊंचे हैं और लिक्विडिटी सीमित है।
सेंट्रम रोकिंग में इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के सीईओ जिग्नेश देसाई ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, “FII नियामकीय कार्रवाई में स्थिरता और पारदर्शिता चाहते हैं, खासकर हाई-फ्रीक्वेंसी और एल्गोरिदमिक ट्रेडिंग से जुड़े मामलों में। जब तक सेबी पारदर्शिता और बाजार की स्थिरता बनाए रखती है, यह घटना लंबी अवधि के विदेशी निवेश को नहीं रोक पाएगी।”
वहीं, आइज़ैक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी के सीनियर फेलो केपी कृष्णन ने कहा कि इस केस का असर सिर्फ जेन स्ट्रीट तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह भारत में जटिल ट्रेडिंग रणनीतियों की परिभाषा और उनके नियमन को लेकर बड़ी दिशा तय कर सकता है।
जेन स्ट्रीट केस ने यह बड़ा सवाल खड़ा किया है कि मॉर्डन फाइनैंशल मार्केट कैसे काम करते हैं और नियामकों को बाजार की ग्रोथ और निवेशकों की सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे साधना चाहिए।
हाल ही में सेबी ने एक रिपोर्ट में बताया कि पिछले साल डेरिवेटिव्स मार्केट में 91% खुदरा निवेशकों को घाटा हुआ, जिसकी कुल राशि ₹1 लाख करोड़ से अधिक थी। हालांकि ये घाटे किसी एक फर्म के कारण नहीं हुए, लेकिन संस्थागत मुनाफों और खुदरा निवेशकों के घाटों के बीच बढ़ते फासले ने बाजार की निष्पक्षता को लेकर चिंता को और बढ़ा दिया है। इस मामले में सेबी की कार्रवाई इस बात का संकेत हो सकती है कि भविष्य में इस तरह की स्ट्रैटेजी पर और कड़ा नियंत्रण किया जाएगा।