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सेबी की करेंसी वायदा की तैयारी

Last Updated- December 06, 2022 | 12:40 AM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी)का अगले दो महीनों में एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी फ्यूचर्स (ईटीसीएफ) लाने का विचार है।


भारतीय रिजर्व बैंक(आरबीआई),सेबी,के प्रतिनिधियों और सेबी के कार्यकारी निदेशक के प्रतिनिधित्व में बनी एक संयुक्त समिति इस मामले पर विचार कर रही है। इस संयुक्त समिति की रिपोर्ट के जारी होने के बाद ही कोई निर्णय होने की संभावना है।


सेबी के कार्यकारी निदेशक एम एस रॉय का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी दोनों इस मामले पर कार्य कर रहे हैं और बोर्ड के अंतिम निर्णय का इंतजार है।भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के वेल्थ और ट्रेजरी प्रबंधन पर आधारित कार्यक्रम इन्वेस्ट वाइस केदौरान मीडिया कर्मियों से बातचीत करते हुए उन्होनें कहा कि लगभग सभी विकसित देशों के पास इस प्रकार की सुविधा है।


उन्होंने कहा कि समिति की सिफारिशों के आने में अभी वक्त लगेगा। समिति की सिफारिशों के जारी होने के बाद सेबी,आरबीआई और सरकार साथ मिलकर सिफारिशों के अंतिम स्वरुप के विषय में निर्णय करेंगे।इस स्कीम का यह फायदा होगा कि कोई भी व्यक्ति तीन, छ:, नौ और बारह महीनों में बाजार में शेयर की कीमतों का अनुमान लगा सकता है और उसी आधार पर निवेश कर सकता है।


इसी प्रकार एक्सचेंज प्राइस  में सर्वाधिक उतार-चढ़ाव के दौरान  कोई निर्यातक अपने सारे निर्यात को अमेरिकी डॉलर में लगा सकता है जिससे वह बाजार में अनचाहे उतार-चढ़ाव से बच सके। करेंसी से जुडे फ्यूचर्स के जरिये निवेशकों को विदेशी शेयर बाजार के जोखिम से बचने में मद्द मिलने की उम्मीद है।


यह एक स्वतंत्र सेगमेंट होगा और शेयर बाजारों को ईटीसीएफ को जारी करने के पहले अनुमति लेनी पड़ेगी। ब्रोकरों को इसका कारोबार करने के लिये लाइसेंस लेना पड़ेगा और इस प्रक्रिया में कुछ समय लगेगा।


यह सब एक प्रक्रिया के अर्न्तगत किया जायेगा और हम इस दिशा में बहुत तेजी से कार्य कर रहें हैं। इसके अतिरिक्त सेबी इंट्रेस्ट रेट फ्यूचर्स पर भी कार्य कर रही है।उन्होंने कहा कि सेबी पहले ही डीएमए (डायरेक्ट मार्केट एक्सेस) की सुविधा को लांच कर चुकी है जिसकेजरिये संस्थागत ग्राहक(विदेशी और घरेलू दोनों) बिना ब्रोकरों केहस्तक्षेप के ऑर्डर बेच और खरीद सकते हैं।


यह ग्राहकों को ब्रोकरों की बुनियाद के जरिये एक्सचेंज ट्रेडिंग सिस्टम की सुविधा उठाने के लिये सक्षम बनायेगी।इसमें बाजार में खराब प्रभाव डालने वाले टाइम टैग और फ्रंट रनिंग की संभावना को कम करने की सक्षमता दिखती है।


पहले की व्यवस्था में संस्थागत निवेशकों को शेयर बेचने व खरीदने के लिये दलालों से संपर्क करना पड़ता था जबकि डीएमए के जरिये निवेशकों को दिये गये ऑर्डर पर सीधा नियंत्रण मिल जायेगा। इससे निष्पादन को तेज बनाने में मद्द मिलेगी और मैनुअल इंट्री से संबंधित जोखिमों को भी कम किया जा सकेगा।


देश में छोटे और मझोले उद्यमों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुये सेबी इसके लिये एक दिशा निर्देश तैयार कर रही है।इसके अतिरिक्त सेबी लिस्टिंग में लगने वाले समय को भी तीन हफ्ते से घटाकर लगभग एक हफ्ते पर लाने का प्रयास कर रही है। एक प्रावधान यह भी बनाया जा रहा कि निवेशकों को आईपीओ के सबक्रिप्शन के वक्त एडवांस पैसा नही देना पडेग़ा।

First Published - April 28, 2008 | 11:14 PM IST

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