भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने संपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) के प्रमुख कर्मचारियों को 20 फीसदी पारितोषिक म्युचुअल फंड यूनिट के तौर देने के संबंध में अपने परिपत्र में आज थोड़ा बदलाव किया है। नई व्यवस्था 1 अक्टूबर से लागू होगी।
नियामक ने कहा कि कनिष्ठ कर्मचारियों यानी 35 साल से कम उम्र वालों को पहले साल 10 फीसदी और दूसरे साल 15 फीसदी निवेश करना होगा जबकि अन्य कर्मचारियों को 20 फीसदी निवेश करना होगा। यह कदम उद्योग द्वारा प्रतिभाओं को अपने साथ बनाए रखने के संबंध में चिंता जताए जाने के कारण उठाया गया है। सेबी के इस कदम का मकसद म्युचअल फंड अधिकारियों के हितों को अपने यूनिटधारकों के हितों के साथ जोडऩा है। हालांकि मुख्य कार्याधिकारी, विभाग के प्रमुख और कोष प्रबंधक अगर 35 साल से कम के हों, तो उन्हें यह लाभ नहीं मिलेगा। सेबी ने प्रमुख कर्मचारियों शब्द की जगह निर्दिष्ट कर्मचारी कर दिया है। उद्योग के भागीदारों को अभी यह देखना होगा कि इसका असर अधिक कर्मचारियों पर पड़ेगा या इससे फंड कंपनियों को नए नियम लागू करने की दिशा में विवेकाधिकार का इस्तेमाल करने की छूट मिलेगी अथवा नहीं। पहले सेबी ने बताया था कि किन कर्मचारियों को ‘प्रमुख कर्मचारियों’ की श्रेणी में रखा जाएगा।
उद्योग ने शिकायत की थी कि इसमें वे कर्मचारी भी आ रहे हैं, जिनका कोष प्रबंधन से कुछ लेना-देना नहीं है।
इससे पहले सेबी ने कहा था कि नकद से इतर सभी लाभ और भत्ते कॉस्ट टु कंपनी (सीटीसी) में शामिल होंगे तथा 20 फीसदी उसके हिसाब से तय किया जाएगा। हालांकि अब नियामक ने स्पष्ट किया है कि मृत्यु या सेवानिवृत्ति के समय दिए जाने वाले लाभ और ग्रैच्युटी का भुगतान सीटीसी में शामिल नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही संबंधित कर्मचारियों द्वारा एएमसी से यूनिट के एवज में लिए गए ऋण पर ब्याज भी सीटीसी में शामिल नहीं होगा।
उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘नियामक द्वारा कुछ रियायत दी गई है लेकिन परिपत्र में अब भी कई पेचीदगियां हैं।’
पहले के परिपत्र में सेबी ने कहा था कि एएमसी के प्रमुख कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, बोनस, गैर-नकद लाभ और पीएफ-एनपीएस आदि अंशदान का न्यूनतम 20 फीसदी भुगतान उन म्युचुअल फंड योजनाओं के यूनिट्स के रूप में करना होगा, जिनका वे प्रबंधन करते हैं।
वैल्यू रिसर्च के मुख्य कार्याधिकारी धीरेंद्र कुमार ने कहा, ‘सैद्घांतिक तौर पर यह पहल अच्छी है, खास तौर पर जब अन्य लोगों के पैसों को प्रबंधन किया जा रहा हो। इसके बावजूद मेरा मानना है कि इसे फंड कंपनियों को स्वैच्छिक और स्वतंत्र तौर पर करने देना ज्यादा सहज होगा न कि नियामकीय दबाव के तहत ऐसा किया जाए।’
