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उच्च गुणवत्ता वाले शेयर 20 साल में सबसे सस्ते, लार्जकैप में निवेश का सही समय: सौरभ मुखर्जी

फंडामेंटल वृद्धि की संभावना एकसमान होने के बावजूद हमने अमेरिका और भारत के स्मॉलकैप व मिडकैप शेयरों के मूल्यांकन में भारी अंतर देखा है।

Last Updated- August 18, 2024 | 9:46 PM IST
उच्च गुणवत्ता वाले शेयर 20 साल में सबसे सस्ते, लार्जकैप में निवेश का सही समय: सौरभ मुखर्जी High-quality stocks at their cheapest in 20 years, says Saurabh Mukherjea
Saurabh Mukherjea, Founder & CIO, Marcellus Investment Managers

समान फंडामेंटल वृद्धि के बावजूद भारतीय और अमेरिकी स्मॉल और मिडकैप शेयरों के मूल्यांकन में भारी अंतर है, यह कहना है मार्सेलस इनवेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी सौरभ मुखर्जी का। सुंदर सेतुरामन को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि भारत में उच्च गुणवत्ता वाले लार्जकैप शेयरों में निवेश का सबसे सही वक्त है। बातचीत के  मुख्य अंश

भारतीय शेयरों में आपको वैल्यू कहां नजर आ रही है?

बाजार के मौजूदा परिदृश्य में दो अलग तरह की समस्या है : गुणवत्ता बनाम गैर-गुणवत्ता और स्मॉलकैप बनाम लार्जकैप। कम गुणवत्ता वाले शेयरों की कीमत उतनी ही ज्यादा है जैसी वह लीमन संकट वाले वर्ष में थी। दूसरी तरफ उच्च गुणवत्ता वाले शेयर 20 साल में सबसे सस्ते हैं।

इसके अलावा स्मॉलकैप की ट्रेडिंग लार्जकैप के मुकाबले ऊंचे मूल्यांकन पर हो रही है। इसे देखते हुए हम उच्च गुणवत्ता वाले लार्जकैप में निवेश की सिफारिश कर रहे हैं। हमारा मानना है कि भारत में यह समय पिछले दो दशक में ऊंची गुणवत्ता वाले लार्जकैप शेयरों में निवेश का है।

इस साल आपकी कौन सी सबसे बड़ी कामयाबी और सबसे बड़ी चूक रही है?

हमने कामयाबी के साथ एग्री थीम का अनुमान लगाया। इसके लिए भारत में ग्रामीण संकट की शुरुआती संकेतों की पहचान की। हमने जमीनी स्तर से फीडबैक इकट्ठा किया और अनुमान लगाया कि नीति निर्माता मददगार कदमों के साथ उपाय करेंगे।

इस कारण हमने आयशर मोटर्स और गोदरेज एग्रोवेट में पोजीशन बनाई, जिन्हें नीतिगत कदमों से फायदा मिला। हालांकि हमने चीन की गंभीर आर्थिक मंदी और उसके गहराते ढांचागत संकट को कमतर आंका। अगर हमने इसे ठीक तरह से देखा होता तो हम स्पेशियलिटी केमिकल कंपनियों में अपना निवेश घटाकर पोर्टफोलियो को दुरुस्त कर चुके होते जो चीन के बाजार पर काफी ज्यादा निर्भर हैं।

आपको अपने क्लाइंटों से आमतौर पर किस तरह के फीडबैक मिलते हैं?

साल 2022 और 2023 की पहली तिमाही में कमजोर प्रदर्शन के कारण मार्सेलस ने चुनौतीपूर्ण वक्त का सामना किया। इस अवधि में क्लाइंटों ने स्वाभाविक तौर पर हमारे प्रदर्शन पर सवाल उठाए और आश्चर्य जताया कि क्या हमारा प्रदर्शन स्थिर बाजार में अटपटा जैसा है।

हालांकि हमने कामयाबी के साथ रिकवरी की और पिछले एक साल में रफ्तार दोबारा हासिल कर ली। अब हम नए निवेश के शुरुआती संकेत और विदेशी निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी देख रहे हैं।

हमारे देसी क्लाइंटों के आधार में हमने मनोबल में बदलाव देखा और कई भारतीय इक्विटी में अपना निवेश घटाना चाह रहे हैं, वैश्विक इक्विटी में आवंटन बढ़ाना चाहते हैं और वैकल्पिक परिसंपत्ति वर्ग मसलन सोने में डायवर्सिफाई करना चाह रहे हैं।

भारत और वैश्विक बाजारों मसलन अमेरिका के प्रति आपके नजरिए में क्या कोई अंतर है?

निवेश का हमारा फलसफा विभिन्न बाजारों में एक सा बना हुआ है। हालांकि अमेरिकी बाजार अलग तरह के फायदों की पेशकश करता है, वह है, अपेक्षाकृत उच्च गुणवत्ता वाले शेयरों की ज्यादा संख्या, ज्यादा लिक्विड कंपनियां। इससे हम अपने मूल्यांकन के आकलन में ज्यादा चयनात्मक हो सकते हैं।

इसकी तुलना में भारत के मिडकैप क्षेत्र में ​लिक्विडिटी की चुनौतियां हैं। इस कारण उनसे निकलना और उचित कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाले शेयरों में फिर से निवेश करना मुश्किल होता है। लिहाजा, अमेरिका में पोर्टफोलियो का दोबारा संतुलित बनाना अपेक्षाकृत आसान होता है।

आप अपने फंड के बारे में बताएं, जो विदेशी बाजारों में निवेश करता है?

फंडामेंटल वृद्धि की संभावना एकसमान होने के बावजूद हमने अमेरिका और भारत के स्मॉलकैप व मिडकैप शेयरों के मूल्यांकन में भारी अंतर देखा है। उदाहरण के लिए 20 फीसदी आय वृद्धि के साथ अमेरिकी कंपनियां 20-25 गुना पीई पर कारोबार कर रही हैं जबकि ऐसे ही ग्रोथ प्रोफाइल के साथ भारतीय कंपनियों का पीई 30 गुना से ज्यादा है।

कभी-कभी तो यह 50 गुना को भी पार कर जाता है। यह विसंगति हमारे ध्यान में आई, क्योंकि भारत व अमेरिकी बाजार पिछले 10 व 20 वर्षों में सबसे उम्दा प्रदर्शन वाले अहम बाजार रहे हैं जबकि इन दोनों बड़े बाजारों के बीच काफी कम सह-संबंध है।

इस मौके को पहचानते हुए हमने ग्लोबल कंपाउंडर्स पोर्टफोलियो दो साल पहले पेश किया, ताकि उत्तर अमेरिका में आकर्षक मूल्यांकन के साथ उच्च गुणवत्ता वाली कंपनियों में निवेश किया जा सके और भारत में कोई विपरीत घटनाक्रम हो तो हमें डायवर्सिफाई होने का लाभ मिल सके। फंड ने डॉलर के लिहाज से 29 फीसदी और रुपये के लिहाज से 30 फीसदी का शुद्ध रिटर्न दिया है।

First Published - August 18, 2024 | 9:46 PM IST

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