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रुपये की कमजोरी से छोटे निर्यातकों की बढ़ी परेशानी

Last Updated- December 11, 2022 | 6:51 PM IST

भारतीय रुपया निम्नतम स्तर पर जा चुका है और रुपये में ऐसी गिरावट को अक्सर भारत के निर्यात के लिए वरदान माना जाता है। हालांकि छोटे निर्यातकों के पास साझा करने के लिए एक अलग कहानी है। आगरा के चमड़े के जूते निर्यातक गोपाल गुप्ता रूस-यूक्रेन संघर्ष से पैदा हुई चुनौतियों और अनिश्चितता की स्थिति से जूझ रहे हैं। लॉजिस्टिक्स की लागत और रद्द होने वाले ऑर्डर की संख्या में वृद्धि होने से उनकी दिक्कतें बढ़ी हैं। इसके अलावा, स्थानीय मुद्रा कमजोर होने से पिछले तीन महीने में आयात लागत अधिक हो गई है और मार्जिन में भी कमी आई है। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में गिरावट जारी रहने के बीच, उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि अगर मुद्रा अस्थिर बनी रहती है या फिर कमजोर होती है तब छोटे निर्यातकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। गुप्ता कहते हैं, ‘तथ्य यह है कि कमजोर मुद्रा, निर्यात के लिए अच्छे संकेत देती है लेकिन यह सभी पर लागू नहीं होता है। जब रुपये का अवमूल्यन होता है तब हमारे ग्राहक लाभ या छूट की मांग करते हैं।’ गुप्ता ने कहा, ‘अभी हमारी आयात लागत बढ़ गई है। हम इनसोल बोर्ड, पीयू लाइनिंग सामग्री आदि का आयात करते हैं। इसी तरह, हमारे स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं ने एडहेसिव, डाई, सॉल्वेंट्स की कीमतें हमारे स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं ने बढ़ा दी हैं। इसीलिए जब आयात या कच्चे माल की लागत बढ़ जाती है और अगर हमारे उत्पादों की कीमतों में कोई बदलाव नहीं आता है तब हमारे मार्जिन कम हो जाते हैं।’
गुप्ता केवल अकेले नहीं हैं। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में गिरावट जारी रहने के बीच, उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि अगर मुद्रा अस्थिर बनी रहती है या फिर कमजोर होती रहती है तब छोटे निर्यातकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कमजोर मुद्रा अल्पावधि में केवल कुछ निर्यात का ही समर्थन कर सकती है और केवल कुछ निर्यातकों को लाभ पहुंचा सकती है। नाम न छापने की शर्त पर एक निर्यातक ने कहा कि मुख्य चुनौती यह पता लगाना है कि अगले कुछ महीनों में रुपये का मूल्य क्या होगा क्योंकि भुगतान बाद की तारीख में किया जाता है। निर्यातक ने बताया, ‘हमें आमतौर पर आगे के लिए कवर लेना पड़ता है क्योंकि अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये के मूल्य की भविष्यवाणी करनी होती है, यानी जो अभी है वह आगे कुछ और हो सकता है। यदि कोई निर्यातक फॉरवर्ड कवर यह मानते हुए लेता है कि रुपया अगले छह महीनों में 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर चला जाएगा, लेकिन अर्थव्यवस्था में बदलाव की वजह से अगर यह 73 रुपये प्रति डॉलर तक सिमट जाता है तब निर्यातकों को बहुत नुकसान होगा। छोटे निर्यातकों के पास इस तरह के नुकसान उठाने के लिए कोई साधन नहीं है।’
वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के बीच रुपया गुरुवार को नया रिकॉर्ड बनाते हुए 77.63 प्रति डॉलर के निचले स्तर पर पहुंच गया। पिछले हफ्ते, ब्रेंट क्रूड तेल 6 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 115 डॉलर प्रति बैरल हो गया, जिससे चालू खाते के व्यापक घाटे की चिंता बढ़ गई है। तेल आयात में भारत के कुल आयात की बड़ी हिस्सेदारी है। 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से भू-राजनीतिक तनाव की बनी स्थिति के परिणामस्वरूप वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है और घरेलू मुद्रा पर भी दबाव बढ़ा है। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी ने कहा कि बड़े उद्योगों को थोड़े वक्त के लिए मुद्रा मूल्यह्रास से लाभ होता है लेकिन लंबे समय में इससे किसी को लाभ नहीं होगा। मुल्तानी ने कहा, ‘छोटे और मध्यम उद्यम वैश्विक वैल्यू चेन से अत्यधिक जुड़े नहीं हैं और मुद्रा में अस्थिरता के दौरान लिए गए फैसले भविष्य में कमजोर नतीजे का कारण बन सकते हैं।’
जिंसों की बढ़ती कीमतों के बीच आयातित कच्चे माल की लागत, निर्यातकों के मार्जिन को प्रभावित कर रही है। पारंपरिक क्षेत्र के सामानों जैसे कि कपड़ा और चमड़े के निर्यातकों को अब भी लाभ हो सकता है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन, कार्बनिक रसायन और दवा जैसे आयात पर आधारित सामान को बढ़ी हुई कीमतों का सामना करना पड़ेगा। मुल्तानी ने कहा, ‘आगे, निर्यात वृद्धि के लिए रुपये में स्थिरता की आवश्यकता है।’
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर के अनुसार, वैश्विक स्तर पर व्यापक रुझानों और फेडरल रिजर्व की उम्मीदों के बीच कई उभरते बाजार की मुद्राओं की तरह रुपये में भी आगे डॉलर के मुकाबले गिरावट को लेकर पूर्वग्रह कायम है। हालांकि, कमजोर मुद्रा के परिणामस्वरूप निर्यात में महत्त्वपूर्ण फायदा नहीं मिल सकता है। सबसे पहले, मांग में कमी के कारण चालू वित्त वर्ष में वैश्विक व्यापार की मात्रा उतनी मजबूत नहीं हो सकती है। इसके अलावा, नायर ने कहा कि अन्य प्रतिस्पर्धी मुद्राओं में भी डॉलर के मुकाबले गिरावट देखी जा रही है जिससे निर्यात को कोई प्रतिस्पर्धी लाभ नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘मांग फिर से बढ़ सकती है। अगर रूस यूक्रेन युद्ध खत्म हो जाता है और वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं तो यह दूसरी छमाही में मांग में वृद्धि की भरपाई कर सकता है।’ वर्ष 2021-22 में भारतीय निर्यात लचीला रहा। सरकार ने पिछले साल निर्यात के लिए 400 अरब डॉलर का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भी रखा था। लक्ष्य न केवल पूरा किया गया बल्कि इसे पार भी कर गया।

First Published - May 21, 2022 | 12:27 AM IST

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