आखिर सरकार ने कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंजों से डीलिस्ट करने के नियम करीब करीब तैयार कर लिए हैं।
पूरे दो साल की मशक्कत के बाद सेबी और सरकार ने मिलकर इसके लिए दिशानिर्देश बनाए हैं। इसके अलावा सरकार ने क्लियरिंग कार्पोरेशन के कार्पोरेटाइजेशन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
मतभेदों के बावजूद किसी भी कंपनी की डीलिस्टिंग के लिए उसकेशेयरों की कीमत रिवर्स बुक बिल्डिंग की प्रक्रिया के जरिए तय की जाएगी। इससे पहले सेबी ने इस काम के लिए बनाए अपने प्रारूप में कहा था कि डीलिस्ट होने जा रही कंपनी के शेयर के लिए एक तय भाव की सिफारिश की थी, जो एक तय फ्लोर कीमत का 25 फीसदी प्रीमियम होना चाहिए और यह फ्लोर प्राइस किसी मान्यता प्राप्त रेटिंग एजेंसी से तय कराया जाना चाहिए।
सेबी ने यह प्रस्ताव इसलिए दिया था क्योकि उसका मानना था कि बुक बिल्डिंग प्रक्रिया के जरिए उस शेयर की सही कीमत नहीं आंकी जा सकेगी और इसमें गड़बड़ी हो सकती है। लेकिन कीमत तय करने के लिए कितनी शेयरहोल्डिंग होनी चाहिए उस पर अभी चर्चा का विषय है।
सेबी ने वित्त मंत्रालय को अपने प्रेसेन्टेशन में दो विकल्प दिए हैं, पहला यह कि प्रमोटर अपनी कंपनी के पब्लिक शेयरहोल्डिंग का 50 फीसदी खुद खरीद ले या फिर वो कंपनी के इतने शेयर खरीदे कि उसकी होल्डिंग 90 फीसदी से ऊपर हो जाए, इनमें से जिस भी तरीके से उसकी होल्डिंग ज्यादा बने वही विकल्प मंजूर किया जाए।
इसमें ऐसा कोई नियम नहीं रखा गया है कि कंपनी को एक्जिट करने के लिए कम से कम एक तय सीमा की पब्लिक भागीदारी होनी चाहिए। लेकिन सेबी ने यह सुझाव जरूर दिया कि अगर आधे शेयरहोल्डर बायबैक में हिस्सा नहीं लेना चाहते तो कंपनी की डीलिस्टिंग नहीं हो सकेगी।
लेकिन सरकार सेबी के इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थी, उसका मानना था कि अगर प्रमोटर के पास 90 फीसदी से ज्यादा शेयर हों तो कंपनी को डीलिस्टिंग से नहीं रोका जाना चाहिए और इससे उन शेयरहोल्डरों का नुकसान होगा जो कंपनी से खुश नहीं हैं और इससे बाहर निकलना चाहते हैं। सेबी ने सरकार से साफ कहा है कि हर एक्सचेंज का अपना क्लियरिंग कार्पोरेशन होना चाहिए।
सेबी नहीं चाहता कि सभी एक्चेंजों के लिए एक ही क्लियरिंग कार्पोरेशन हो क्योकि इससे मोनोपोली होने का खतरा हो सकता है। हालांकि इन क्लियरिंग कार्पोरेशन के कार्पोरेट गवर्नेंस मानक अलग अलग हो सकते हैं।
फिलहाल एनएसई, बीएसई और क्लियरिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के क्लियरिंग कार्पोरेशन एससीआरए ऐक्ट के तहत डीम्यूचलाइजेशन मानकों के तहत मान्य नहीं हैं। कानून मंत्रालय ने इन सभी नियमों के लिए एक फ्रेमवर्क सेबी को सौंप दिया है और सरकार जल्दी ही सेबी के इन दिशानिर्देशों को कानूनी जामा पहना देगी।