भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) म्युचुअल फंडों को क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप्स (CDS) में भागीदारी की अनुमति देने के लिए एक नए ढांचे पर विचार कर रहा है। यह नियामक द्वारा देश में मजबूत कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार विकसित किए जाने के प्रयासों का एक हिस्सा है।
बाजार नियामक ने एक दशक पहले पेश ढांचे में खामियों की पहचान करने के लिए एक कार्य समूह गठित किया है। इस घटनाक्रम से जुड़े लोगों का कहना है कि नवगठित समिति के कार्यों में जोखिम दूर करने और कम रेटिंग के कॉरपोरेट बॉन्डों में निवेश को आसान बनाने से जुड़े बदलाव सुझाना है।
नवंबर 2012 में, SEBI ने म्युचुअल फंडों को CDS बाजार में प्रवेश की अनुमति दी थी, लेकिन सिर्फ खरीदारों के तौर पर यह इजाजत दी गई थी। इसके अलावा, ढांचे में कई सीमाएं भी थीं। इन और कुछ अन्य सीमाओं की वजह से CDS बाजार में कारोबार तेजी नहीं पकड़ सका। एक अधिकारी ने कहा, ‘बाजार नियामक घरेलू बॉन्ड बाजार को मजबूत बनाना चाहता है। CDS के जरिये व्यापक भागीदारी से जोखिम घटाने और एए से कम रेटिंग वाले बॉन्डों की मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। ’
म्युचुअल फंडों को सिर्फ रक्षात्मक खरीदारों के तौर पर भागीदारी की अनुमति दी गई थी, जिसका मतलब है कि वे अपने क्रेडिट जोखिम को कम करने के लिए ही इस व्यवस्था का इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्हें प्रोटेक्शन प्लान बेचने की अनुमति नहीं है जिससे वे CDS अनुबंधों में शॉर्ट पोजीशन लेने से दूर हो गए हैं।
CDS व्यवस्था निवेशक को उस अन्य निवेशक के साथ अपना क्रेडिट जोखिम समायोजित करने की अनुमति देती है जो बॉन्ड निर्गमकर्ता के डिफॉल्ट की स्थिति में भुगतान को इच्छुक हो। यह डेरिवेटिव अनुबंध के जरिये चूक के जोखिम को बदलने की सुविधा प्रदान करती है। उद्योग के जानकारों का मानना है कि संशोधित ढांचा बाजार के विकास के लिए जरूरी है, लेकिन इससे कुछ चुनौतियां भी जुड़ी होंगी।
निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड के सीआईओ (फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टमेंट्स) अमित त्रिपाठी ने कहा, ‘पिछले समय में, CDS कारोबार कई वजहों से लगभग शून्य के बराबर रहा है। इसे देखते हुए हमें मूल्यांकन और निपटान के स्पष्टता लाने की जरूरत होगी। इस संबंध में नए प्रयास और घोषणाएं उत्साहजनक हैं।’ CDS ढांचे पर ऐसे समय में पुनर्विचार हो रहा है जब वैकल्पिक निवेश फंडों (AIF) को रक्षात्मक खरीदारों और विक्रेताओं, दोनों के तौर पर भागीदारी की अनुमति दी गई है। यह निर्णय इस महीने के शुरू में लिया गया था।
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कोटक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स में मुख्य कार्याधिकारी (निवेश परामर्श) लक्ष्मी अय्यर ने कहा, ‘हमें बैंकरों, बीमा कंपनियों, सॉवरिन फंडों, पीएमएस और म्युचुअल फंडों से व्यापक बाजार भागीदारी की जरूरत है। नियामक का जोर इस व्यवस्था को मजबूती के साथ विकसित करने पर रहेगा। व्यापक भागीदारी के अभाव में, सिर्फ AIF और म्युचुअल फंडों की निर्भरता के सहारे CDS बाजार में तेजी लाने में मदद नहीं मिल सकेगी। उम्मीद है कि भागीदारी के लिए इकाइयों के लिए यह प्रमुख मार्केटप्लेस होगा।’
सूत्रों के अनुसार, बैंकिंग नियामक अगले एक महीने के दौरान CDS के लिए नया ढांचा पेश कर सकता है। बाजार की रफ्तार तेज करने के लिए अन्य नियामकों से भी मानक जरूरी होंगे। अधिकारियों का कहना है कि SEBI का ढांचा RBI द्वारा निर्धारित बदलावों के अनुरूप होगा।