भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) डेरिवेटिव सेगमेंट में जोखिम निगरानी व्यवस्था में बदलाव के प्रयास में फरवरी में पहली बार निर्धारित उपायों की नई श्रृंखला को लागू करने के लिए तैयार है। इसका लक्ष्य डेरिवेटिव बाजार में सटोरिया गतिविधियों पर लगाम लगाना है। उद्योग के कुछ प्रतिरोध के बावजूद नियामक प्रमुख जोखिम मानकों के साथ आगे बढ़ेगा। हालांकि उसने मूल प्रस्ताव के कुछ हिस्सों में संशोधन किया है।
सेबी ओपन इंटरेस्ट (ओआई) की गणना के लिए नई प्रणाली अपनाएगा। इसे फ्यूचर इक्विवेलेंट या डेल्टा-बेस्ड फ्रेमवर्क के नाम से जाना जाता है। सूत्रों के अनुसार इससे इंडेक्स ऑप्शंस के लिए ग्रॉस पोजीशन लिमिट बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये हो जाएगी।
फरवरी के परामर्श पत्र में इंडेक्स ऑप्शन के लिए 1,500 करोड़ रुपये की बहुतकम ग्रॉस लिमिट का सुझाव दिया गया था। इसमें हाई-फ्रीक्वेंसी कारोबारी भी शामिल है। लेकिन इसका कई बाजार विश्लेषकों ने विरोध किया। उनका तर्क था कि इससे वैधानिक तरीके से होने वाला व्यापार बाधित होगा।
सेबी के परामर्श पत्र में अधिकांश प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई है। लेकिन उद्योग जगत की प्रतिक्रिया के बाद इंट्राडे सीमा लागू करने की योजना को टाल दिया गया है। नियामक की सेकेंडरी मार्केट सलाहकार समिति ने संशोधित उपायों को मंजूरी दे दी है और नए नियमों के बारे में एक औपचारिक परिपत्र जल्द जारी होने की उम्मीद है।
नई ओपन इंटरेस्ट प्रणाली अंतर्निहित प्रतिभूतियों के हिसाब से डेरिवेटिव में कीमतों से संबंधित उतार-चढ़ाव पर नजर रखेगी। इससे बाजार गतिविधियों और कारोबारियों का पोजीशन का अधिक सही अंजाद लग सकेगा।
किसी शेयर के लिए अधिकतम स्वीकार्य ओपन फ्यूचर्स ऐंड ऑप्शन (एफऐंडओ) सौदों के निर्धारण से संबंधित मार्केट-वाइड पोजीशन लिमिट (एमडब्ल्यूपीएल) को अब फ्री फ्लोट का 15 प्रतिशत या औसत दैनिक डिलीवरी मूल्य के 65 गुना में से कम के रूप में परिभाषित किया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कैश मार्केट लिक्विडिटी के साथ डेरिवेटिव एक्सपोजर के अनुरूप है।
सिंगल स्टॉक के लिए विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों और म्युचुअल फंडों को मार्केट-वाइड पोजीशन लिमिट के 30 प्रतिशत तक सीमित रखा जाएगा जबकि व्यक्तिगत कारोबारियों को 10 प्रतिशत तक की इजाजत होगी। सेबी का मानना है कि इससे हेरफेर को काफी हद तक रोकने और शएयर के बार बार प्रतिबंध अवधि में जाने की दर घटेगी।
कंसनट्रेशन और एक्सपोजर जोखिमों की निगरानी के लिए सेबी इंट्राडे पोजीशन की निगरानी बढ़ाएगा। एक्सचेंजों को ट्रेडरों की गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया विकसित करने की जरूरत होगी जिसमें संभावित दुरुपयोग का पता लगाने के लिए रोजाना चार औचक इंट्राडे जांच शामिल हैं।
अन्य स्वीकृत बदलावों में दो दिन में साप्ताहिक एफऐंडओ निपटान को सीमित करना शामिल है जो अभी की मल्टीपल-एक्सपायरी व्यवस्था से कम है। एक्सपायरी कैलेंडर से संबंधित किसी तरह के बदलाव के लिए सबसे पहले सेबी की मंजूरी की जरूरत होगी। इससे इक्विटी डेरिवेटिव क्षेत्र (खासकर मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज) में जाने वाले नए निवेशक प्रभावित हो सकते हैं। मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज ने हरेक सप्ताह शुक्रवार को एक्सपायर होने वाले डेरिवेटिव अनुबंध शुरू करने की योजना बनाई थी।
सेबी ने एफऐंडओ के कारोबारी के लाभ से संबंधित नया सर्वे भी शुरू किया जिसका परिणाम जून के मध्य तक आना है। 2021-22 से 2023-24 तक हुए पिछले अध्ययन में पाया गया कि 93 फीसदी व्यक्तिगत कारोबारियों ने डेरिवेटिव में अपना पैसा गंवाया।
पिछले साल नवंबर में सेबी ने एफऐंडओ में अत्यधिक सट्टेबाजी को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए थे। जहां इंडेक्स ऑप्शन का कारोबार (प्रीमियम के लिहाज से) सालाना आधार पर 15 फीसदी घट गया था, वहीं यह दो साल पहले की तुलना में अभी भी 11 फीसदी ऊपर बना हुआ है। इसी तरह, व्यक्तिगत ट्रेडरों की भागीदारी हालांकि सालाना आधार पर 5 प्रतिशत कम है, लेकिन वर्ष 2022 की तुलना में 34 प्रतिशत अधिक है।
विश्लेषकों का कहना है कि बाजार नियामक पिछले हस्तक्षेपों के बावजूद इंडेक्स ऑप्शन में ऊंची गतिविधियों को लेकर अभी भी असहज है। सुधारों के नवीनतम दौर का उद्देश्य सख्त जोखिम नियंत्रण के साथ ट्रेडिंग दक्षता को संतुलित बनाना है।