हममें से ज्यादातर लोग यह मानकर बड़े होते हैं कि रिटायरमेंट जीवन का वह दौर है जब कमाई रुक जाती है, सेविंग का इस्तेमाल शुरू होता है और हम यही उम्मीद करते हैं कि जमा किया हुआ पैसा उतने समय तक चले, जितना हम जियें। लेकिन बहुतों के लिए यह सोच सुकून से ज्यादा चिंता लेकर आती है। आखिरकार बढ़ते मेडिकल खर्च, महंगाई और लंबी उम्र की संभावना के बीच कौन यह नहीं सोचेगा कि कहीं उनकी बचत जल्दी खत्म न हो जाए?
लेकिन अगर रिटायरमेंट का मतलब केवल सेविंग को खर्च करना न हो तो? अगर आपका पैसा हर महीने आपको सैलरी की तरह नियमित पे-चेक देता रहे और साथ ही बैकग्राउंड में धीरे-धीरे बढ़ता भी रहे तो? यही वादा करता है सिस्टेमैटिक विदड्रॉल प्लान। SWP एक ऐसी स्ट्रैटेजी जिसे आजकल रिटायर लोग तेजी से अपना रहे हैं ताकि उनका पैसा और ज्यादा कारगर तरीके से काम कर सके।
सिस्टेमैटिक विदड्रॉल प्लान (SWP) म्युचुअल फंड की एक सुविधा है। इसमें आप तय की गई राशि नियमित अंतराल पर निकाल सकते हैं। यह राशि हर महीने, तीन महीने या साल में एक बार ली जा सकती है। आपकी बाकी निवेशित रकम फंड में बनी रहती है और उस पर रिटर्न भी मिलता रहता है। इसे आप अपनी बचत से बनाई गई पर्सनल पेंशन मान सकते हैं। खास बात यह है कि इसे महंगाई के हिसाब से बढ़ने के लिए भी स्ट्रक्चर किया जा सकता है।
Also Read: Top-5 NPS Funds: 5 साल में दिया सालाना 20% तक रिटर्न, पैसा हुआ डबल
चार्टर्ड वेल्थ मैनेजर विजय महेश्वरी बताते हैं कि किस तरह SWP रिटायरमेंट को रोमांचक बना सकता है।
इस उदाहरण पर जरा गौर फरमाइए…
मान लीजिए किसी व्यक्ति के पास रिटायरमेंट के समय ₹1 करोड़ का कॉर्पस है, जिसे उसने एक अच्छे और डायवर्स म्युचुअल फंड में निवेश किया है।
वह हर महीने ₹50,000 निकालना शुरू करता है।
महंगाई से उनकी क्रय शक्ति (purchasing power) कम न हो, इसके लिए वह हर साल निकासी की राशि में 7% की बढ़ोतरी करता है।
पहली नजर में यह थोड़ा जोखिम भरा लग सकता है—आखिरकार, वे हर महीने पैसे निकाल रहे हैं। लेकिन 10 साल बाद के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं।
कुल निकाली गई राशि: ₹80 लाख
मौजूदा मासिक निकासी: ₹1,00,000
बचा हुआ कॉर्पस: ₹2.75 करोड़
आपने न केवल जीवन-यापन के खर्चों पर 80 लाख रुपये खर्च किए, बल्कि आपकी मूल संपत्ति लगभग तीन गुना बढ़ गई – जिससे आपको पहले की तुलना में ज्यादा फाइनेंशियल सिक्योरिटी मिली।
10 साल में इस रिटायर्ड व्यक्ति ने कुल ₹80 लाख निकाले होंगे। इस दौरान उनकी मासिक निकासी बढ़कर दोगुनी यानी ₹1,00,000 हो गई होगी। फिर भी, सेविंग घटने के बजाय उनका कॉर्पस बढ़कर करीब ₹2.75 करोड़ हो गया।
यही है कंपाउंडिंग का जादू। अगर आपके निवेश पर मिलने वाला औसत रिटर्न निकासी की दर से ज्यादा है, तो पैसा खर्च करने के बावजूद बढ़ता रहता है।
Also Read: SIFs का आगाज: Quant MF सितंबर में लॉन्च करेगा लॉन्ग-शॉर्ट इक्विटी फंड, खुलेंगे निवेश के नए दरवाजे
अगर आपकी निकासी दर निवेश पर मिलने वाले रिटर्न से कम है, तो पैसा निकालते हुए भी आपकी बचत बढ़ती रहती है।
यही वजह है कि SWP इतना ताकतवर है — यह आपके रिटायरमेंट फंड को एक खुद चलने वाली इनकम मशीन में बदल देता है।
नतीजा
सिर्फ रिटायरमेंट के लिए सेविंग मत करें।
इसे इस तरह डिजाइन करें कि आपके निवेश से आपको इनकम + ग्रोथ दोनों मिलें।
SWP = स्मार्ट, सिंपल, सस्टेनेबल।
स्त्रोत: विजय महेश्वरी
डिस्क्लेमर: म्युचुअल फंड निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं। लेख में दिया गया उदाहरण केवल जानकारी के लिए हैं। यह निवेश की सलाह नहीं है। निवेश करने से पहले कृपया अपने फाइनेंशियल सलाहकार से परामर्श करें।