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ब्याज दरें घटने के बाद Debt Mutual Fund में बनेगा पैसा? अच्छे रिटर्न के लिए निवेशक कैसे बनाएं दमदार स्ट्रैटेजी

ब्याज दरों में कटौती के बाद डेट म्युचुअल फंड्स के रिटर्न बढ़ सकते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप किसी भी डेट फंड में बिना सोचे-समझे निवेश कर दें।

Last Updated- February 17, 2025 | 12:01 PM IST
Will money be made in Debt Mutual Fund after interest rates fall? How investors can make a strong strategy for good returns ब्याज दरें घटने के बाद Debt Mutual Fund में बनेगा पैसा? अच्छे रिटर्न के लिए निवेशक कैसे बनाएं दमदार स्ट्रैटेजी

Debt Mutual Funds Investment Strategy: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा ब्याज दरों में कटौती के बाद आने वाले समय में डेट म्युचुअल फंड्स (Debt Mutual Fund) से बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद है। इसकी वजह यह है कि ब्याज दरें और बॉन्ड की कीमतें एक-दूसरे के उलट चलती हैं। सीधे शब्दों में कहें तो, जब ब्याज दरें और बॉन्ड यील्ड घटती हैं तो बॉन्ड की कीमतें बढ़ जाती हैं। और जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो बॉन्ड की कीमतें कम हो जाती हैं। हालांकि, इसका लाभ फंड की अवधि (ड्यूरेशन) पर निर्भर करता है। एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि ब्याज दरों में कटौती के बाद डेट म्युचुअल फंड्स के रिटर्न बढ़ सकते हैं। हालांकि वे निवेशकों को सावधान भी करते हैं कि बिना सोचे-समझे किसी भी डेट फंड में निवेश न करें।

Debt Mutual Fund: ब्याज दरों में कटौती का असर

BPN Fincap के डायरेक्टर ए के निगम कहते हैं, ब्याज दरों में कटौती से डेट म्युचुअल फंड को फायदा होता है क्योंकि इससे बॉन्ड की कीमतें बढ़ती हैं। जब RBI ब्याज दरें घटाता है, तो पुराने बॉन्ड, जिन पर ज्यादा ब्याज मिल रहा होता है, नए बॉन्ड की तुलना में ज्यादा आकर्षक हो जाते हैं। इससे उनकी कीमत बढ़ती है और डेट फंड के नेट एसेट वैल्यू (NAV) में इजाफा होता है। हालांकि, इसका लाभ किस हद तक मिलेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने किस प्रकार के फंड में निवेश किया है। उदाहरण के लिए…

लॉन्ग-ड्यूरेशन फंड: ये फंड लंबे समय तक परिपक्व होने वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं। इसलिए, जब ब्याज दरें घटती हैं, तो इन्हें ज्यादा फायदा होता है क्योंकि इनके पास मौजूद बॉन्ड लंबे समय तक ऊंची ब्याज दरों पर रिटर्न देते हैं।

शॉर्ट-ड्यूरेशन फंड: ये फंड कम अवधि में परिपक्व होने वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं। ब्याज दरों में कटौती से इन्हें भी फायदा होता है, लेकिन लॉन्ग-ड्यूरेशन फंड की तुलना में इसका प्रभाव कम होता है।

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Debt Mutual Fund: निवेशकों का बढ़ा रूझान

बाजार में जारी उतार-चढ़ाव को देखते हुए निवेशक पहले ही डेट म्युचुअल फंड्स की ओर अपना रुख कर चुके हैं। इस बात की बानगी एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के आंकड़ें भी करते हैं। पिछले महीने जनवरी में डेट म्युचुअल फंड्स में कुल 1.28 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का इनफ्लो आया। जबकि इससे ठीक एक महीना पहले यानी दिसंबर 2024 में इस कैटेगरी से निवेशकों ने 1.27 लाख करो़ड़ रुपये से ज्यादा की निकासी की थी। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले समय में डेट म्युचुअल फंड में इनफ्लो और बढ़ सकता है।

दरों में कटौती का बॉन्ड यील्ड पर सीमित असर

एसेट मैनजमेंट कंपनी बजाज फिनसर्व में फिक्स्ड इनकम के सीनियर फंड मैनेजर सिद्धार्थ चौधरी कहते हैं कि इस बार ब्याज दरों में कटौती का लॉन्ग टर्म के बॉन्ड यील्ड पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है क्योंकि बाजार पहले से ही इसकी उम्मीद कर रहा था। मॉनेटरी पॉलिसी की घोषणा से पहले ही इसकी कीमत बाजार में एडजस्ट हो चुकी थी। इसके अलावा, निवेशकों को उम्मीद थी कि नकदी (liquidity) में और ढील (easing) दी जाएगी और नीतिगत रुख (stance) भी बदलेगा। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह नकदी मैनेजमेंट (liquidity management) को लेकर एक्टिव रहेगा और दर कटौती के बाद भी कुछ और कदम उठाए हैं।

आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा कि अप्रैल में होने वाली MPC की बैठक में केंद्रीय बैंक द्वारा नीतिगत दरों में एक और कटौती की संभावना है, जिससे बॉन्ड यील्ड थोड़ी और कम हो सकती है। साथ ही, उस समय तक बाजार में नकदी बेहतर रहने की उम्मीद है, जो यील्ड को और नीचे लाने में मदद कर सकती है।

फिलहाल यह माना जा रहा है कि भले ही कुछ चुनौतियां हों, लेकिन भारत में खुदरा महंगाई (CPI) धीरे-धीरे घटकर वित्त वर्ष 2025-26 तक 4% के लक्ष्य के करीब पहुंच सकती है। अभी सरकार की तरफ से ज्यादा खर्च (Fiscal Support) नहीं हो रहा है, इसलिए देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए रिजर्व बैंक (RBI) की नीतियों का सहारा जरूरी है।

हालांकि, दुनिया भर में आर्थिक नीतियों को लेकर बहुत अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे में, RBI आगे ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट से ज्यादा की कटौती करेगा या नहीं, यह सिर्फ भारत की अर्थव्यवस्था पर नहीं, बल्कि वैश्विक हालात पर भी निर्भर करेगा।

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निवेशकों को क्या करना चाहिए?

सिद्धार्थ चौधरी कहते हैं, ये दो विपरीत फैक्टर ये संकेत देते हैं कि निकट भविष्य में बॉन्ड का स्प्रेड रीपो रेट के मुकाबले थोड़ा और कम हो सकता है, जब तक कि बाहरी जोखिम कम नहीं हो जाते। इस समय 3-5 साल की अवधि वाले हाई क्रेडिट क्वालिटी फंड्स में निवेश करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। लॉन्ग ड्यूरेशन वाले फंड्स में निवेश करने से अधिक रिटर्न की संभावना रहती है, लेकिन मौजूदा माहौल में इसके लिए निवेशकों को बाजार के उतार-चढ़ाव (volatility) को सहने के लिए तैयार रहना होगा।

एके निगम के मुताबिक, ब्याज दरों में कटौती के बाद डेट म्युचुअल फंड्स के रिटर्न बढ़ सकते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप किसी भी डेट फंड में बिना सोचे-समझे निवेश कर दें। निवेश करने से पहले आपको एक सही योजना बनानी होगी। यह योजना आपके जोखिम उठाने की क्षमता, निवेश के लक्ष्य और जरूरत के समय पैसे निकालने की सुविधा (liquidity) को ध्यान में रखकर बनानी चाहिए। बाजार के मौजूदा उतार-चढ़ाव को देखते हुए, इस समय डेट म्युचुअल फंड्स में सोच-समझकर निवेश करना जरूरी है। सही रणनीति अपनाने से आप कम जोखिम में भी अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं।

 

(डिस्क्लेमर: यहां डेट म्युचुअल फंड को लेकर दी गई सलाह एक्सपर्ट की राय है। म्युचुअल फंड में निवेश जो​खिमों के अधीन है। निवेश संबंधी फैसला  करने से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें।)

First Published - February 17, 2025 | 11:47 AM IST

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