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2025 में अमेरिकी आर्थिक नीति के चार बड़े बदलाव और उनका वैश्विक बाजारों पर असर

अचरज है कि आर्थिक नीति के मोर्चे पर चार अहम बदलाव के बावजूद अमेरिकी या वैश्विक अर्थव्यवस्था अस्थिर नहीं हुई है। यही हालात आगे रहेंगे या नहीं, 2026 में यह देखना अहम होगा

Last Updated- December 16, 2025 | 9:31 PM IST
Donald Trump
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप | फाइल फोटो

वर्ष 2025 में दुनिया अमेरिका की आर्थिक नीति में एक व्यापक और कम से कम तीन अन्य महत्त्वपूर्ण बदलाव का गवाह रही है। भविष्य में अमेरिका में शासन-सत्ता बदलने के बाद भी इन बदलावों को पलटना आसान नहीं होगा। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि इनका अमेरिका और दुनिया पर क्या असर पड़ेगा मगर यह पूरी तरह साफ है कि शेष दुनिया को नए हालात के अनुसार ढलना होगा।

सबसे पहले उस व्यापक बदलाव की चर्चा करते हैं। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने उस मुक्त-व्यापार व्यवस्था को निर्णायक रूप से उलट दिया है जो दशकों से वैश्विक अर्थव्यवस्था का आधार रही थी। दुनिया को अब अमेरिका द्वारा लगाए गए 10 फीसदी बुनियादी शुल्क के साथ आगे बढ़ना होगा।

इसके अलावा विभिन्न देशों पर कुछ और कर लगाए जाएंगे जो इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका उस देश के साथ अपने व्यापार संबंधों को किस निगाह से देखता है। स्टील और एल्यूमीनियम जैसे क्षेत्रों पर शुल्क और बढ़ जाएगा क्योंकि वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए रणनीतिक महत्त्व के माने जाते हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में भारित औसत शुल्क 3 फीसदी से बढ़कर लगभग 19 फीसदी हो गया है।

इस साल प्रमुख राष्ट्रों ने अमेरिका के साथ ऐसे व्यापार सौदे किए जो निराशाजनक रूप से एकतरफा हैं। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ (ईयू) को 15 फीसदी शुल्क का सामना करना पड़ रहा है (स्टील और एल्यूमीनियम पर ऊंचे शुल्क के साथ) जबकि ईयू को अमेरिका से होने वाले निर्यात पर शून्य शुल्क लग रहा है। अमेरिका के साथ व्यापार करने के विशेषाधिकार के लिए ईयू ने अमेरिकी ऊर्जा उत्पादों पर अतिरिक्त 750 अरब डॉलर खर्च (तीन वर्षों में) करने का वादा किया है। इनमें से 600 अरब डॉलर अमेरिका में निवेश होंगे और शेष रकम अमेरिकी सैन्य उपकरण खरीद पर खर्च करने की प्रतिबद्धता जताई है। 

जापान को भी 15 फीसदी के बुनियादी शुल्क का सामना करना पड़ेगा और वह अमेरिका में 550 अरब डॉलर का निवेश करेगा। ब्रिटेन को अमेरिका के साथ अपने ‘विशेष संबंधों’ के कारण केवल10 फीसदी शुल्कों का ही भुगतान करना होगा। चीन ने अमेरिका के साथ एक साल के लिए समझौता कर लिया है जिसके तहत उक्त अवधि में शुल्क 47  फीसदी के उच्च स्तर पर रहेगा। इसके एवज में चीन अमेरिका के लिए दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने और उससे अधिक सोयाबीन खरीदने पर सहमत हो गया है।

स्विट्जरलैंड पर अमेरिका ने 39 फीसदी शुल्क लगाया था। इसके राष्ट्रपति शुल्क कम कराने के मुद्दे पर बातचीत करने के लिए आनन-फानन में अमेरिका पहुंचे मगर उन्हें खाली हाथ लौटा दिया गया। दो महीने बाद अमेरिका स्विट्जरलैंड पर इस शर्त के साथ शुल्क घटाकर 15 फीसदी करने पर सहमत हो गया कि वह अमेरिका में 200 अरब डॉलर निवेश करेगा। भारत का व्यापार समझौते को लेकर किसी तरह की जल्दबाजी नहीं दिखाना उन राष्ट्रों के पूरी तरह आत्मसमर्पण करने की तुलना में बहुत साहसिक दिखता है जो कहीं अधिक समृद्ध हैं।

दूसरा बदलाव आव्रजन नीति से संबंधित है। अमेरिकी प्रशासन ने अपने यहां घुसने वाले लोगों पर शिकंजा कसा है। हजारों अवैध आप्रवासियों को निर्वासित किया है और शरण से जुड़े आवेदन रोक दिए गए हैं। इनके अलावा जन्मसिद्ध नागरिकता को सीमित करने का प्रयास किया गया है।

राष्ट्रपति ट्रंप के आर्थिक सलाहकारों में एक और अब फेडरल रिजर्व के चेयरपर्सन पद के लिए प्रबल दावेदार केविन हैसेट का कहना है कि असल मुद्दा आव्रजन की गुणवत्ता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका केवल 12 फीसदी आप्रवासियों को रोजगार और कौशल के आधार पर स्वीकार करता है जबकि कनाडा द्वारा स्वीकार किए गए 63 फीसदी और ऑस्ट्रेलिया द्वारा स्वीकार किए गए 68 फीसदी लोग अपने कौशल के आधार पर उन देशों में जाते हैं। 

ट्रंप ने हाल में एच1बी वीजा और अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विदेशी विद्या​र्थियों के महत्त्व का उल्लेख किया था। मगर व्हाइट हाउस द्वारा हाल में जारी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज में बुनियादी रुख स्पष्ट किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘बड़े पैमाने पर प्रवासन का युग समाप्त हो गया है।’ 

तीसरा अहम बदलाव जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा पर प्राथमिकता देने से ट्रंप प्रशासन का पीछे हटना है। जनवरी 2025 में राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के बाद ट्रंप द्वारा सबसे पहले उठाए गए कदमों में पेरिस समझौते से हटना भी शामिल था जिसके अंतर्गत हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों ने समयबद्ध उत्सर्जन में कमी करने को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई है। ट्रंप अक्सर जलवायु परिवर्तन को ‘छलावा’ या ‘ठगी का काम’ बताते हैं। वे नवीकरणीय ऊर्जा को ‘मजाक’  बताते हैं और ‘स्वच्छ, सुंदर कोयले’ की बात करते हैं।

ट्रंप प्रशासन नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सब्सिडी समाप्त करने पर  सक्रियता से काम कर रहा है। ट्रंप प्रशासन इसके बजाय तेल खनन के लिए अधिक भूमि और जल की तलाश में जुट गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज में स्पष्ट रूप से कहा गया है, ‘हम विनाशकारी ‘जलवायु परिवर्तन’ और ‘विशुद्ध शून्य उत्सर्जन’  जैसे विचारों को अस्वीकार करते हैं जिन्होंने यूरोप को बहुत नुकसान पहुंचाया है, अमेरिका को खतरे में डाला है और हमारे विरोधियों के लिए सब्सिडी का इंतजाम किया है।’

ट्रंप के कदमों का सीधा मतलब यह है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने में बाकी दुनिया पर वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा। इसका मतलब यह भी होगा कि इससे लड़ने के लिए कम संसाधन होंगे क्योंकि ट्रंप प्रशासन जलवायु परिवर्तन को सहारा देने वाली परियोजनाओं में अरबों डॉलर की कटौती कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप अन्य राष्ट्र भी पेरिस समझौते से हट सकते हैं क्योंकि वे उन पर लगाए गए बोझ को अनुचित मानते हैं।

चौथा बदलाव अमेरिका के साथ-साथ अन्य विकसित देशों में सार्वजनिक कर्ज के स्तर में भारी भरकम बढ़ोतरी है। अमेरिका और अन्य विकसित देशों में सार्वजनिक कर्ज वर्ष 2007 के वैश्विक वित्तीय संकट संकट के बाद से लगातार बढ़ रहा है और 2020 में कोविड महामारी के आने से पहले भी यह औसतन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 104 फीसदी तक पहुंच गया था।

ट्रंप ने अपना ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ पारित किया जिसमें ट्रंप के पहले कार्यकाल में कर कटौती बरकरार रखी गई है और रक्षा बजट में इजाफा किया गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि अमेरिकी सरकार पर कर्ज 2024 में जीडीपी के 122 फीसदी से बढ़कर 2030 तक 143फीसदी हो जाएगा। विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए संबंधित आंकड़े क्रमशः 109  फीसदी और 119 फीसदी रहने के अनुमान हैं।

प्रेक्षकों को इस बात की चिंता सता रही है कि विकसित देशों में बढ़ते सार्वजनिक कर्ज से वैश्विक अर्थव्यवस्था में वृहद आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है। मगर ट्रंप के आर्थिक सलाहकारों का मानना है कि तेज आर्थिक वृद्धि, शुल्क राजस्व और कम ब्याज दरों से 2034 तक सरकारी कर्ज घटकर 94 फीसदी हो जाएगा। यह एक ऐसा अनुमान है जिस पर बारीकी से नजर रखी जाएगी। मगर यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि विकसित देशों ने सार्वजनिक ऋण नीचे रखने पर विकासशील देशों को जो पाठ पढ़ाया था वे स्वयं उसका पालन नहीं कर पाए हैं।

मौजूदा वर्ष समाप्त होने की तरफ बढ़ रहा है। मगर आश्चर्य की बात यह है कि आर्थिक नीति में इन बड़े बदलावों ने अभी तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था या वैश्विक अर्थव्यवस्था या वित्तीय बाजारों को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचाया है। आईएमएफ ने 2025 के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 3.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है जो पिछले साल की तुलना में केवल 20 आधार अंक कम होगा। अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर 2 फीसदी रहने का अनुमान है जो पिछले साल 2.8 फीसदी थी। 

अमेरिकी पूंजी बाजार ने इस साल सर्वकालिक उच्च स्तर को छू लिया और इससे 13 फीसदी रिटर्न मिला है। अमेरिका में एक साल की सरकारी प्रतिभूति पर यील्ड ट्रंप के कार्यभार ग्रहण करने के समय के स्तर से 50 आधार अंक कम है। जिन विशेषज्ञों ने गंभीर आर्थिक अस्थिरता की भविष्यवाणी की थी वे अब इस बात पर माथापच्ची कर रहे हैं कि उनसे आकलन करने में कहां गलती हो गई।

क्या निर्णायक घड़ी महज कुछ समय के लिए टल गई है? या ट्रंप कुछ खास करने वाले हैं? हमें 2026 में निश्चित रूप से इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे। 

First Published - December 16, 2025 | 9:31 PM IST

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