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बाजार 2022 के निचले स्तर से 13 फीसदी ऊपर

Last Updated- December 11, 2022 | 8:06 PM IST

ऊंची तेल कीमतों, महामारी के बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा महामारी के बाद राहत कार्यक्रम को वापस लिए जाने, और रूस तथा यूक्रेन के बीच संघर्ष थमने का संकेत नहीं दिखने जैसी समस्याओं के बावजूद घरेलू शेयर बाजार अपना आधार बरकरार रखने में काफी हद तक सफल रहे हैं। सेंसेक्स अपने 7 मार्च 2022 के 52,843 के निचले स्तर से करीब 13 प्रतिशत चढ़ा है। सोमवार को यह सूचकांक 19 जनवरी के बाद से पहली बार 60,000 के स्तर पर फिर से पहुंच गया। इसलिए अब सवाल यह है कि भारतीय बाजार द्वारा इस तेज सुधार को किस नजरिये से देखा जाना चाहिए। मॉर्गन स्टैनली ने अपनी एक रिपोर्ट में उन कई कारकों का जिक्र किया है जो बाजार ढांचे और गति इस तेजी में ठोस बदलाव का संकेत दे सकते हैं। इन कारकों में शामिल हैं:

चुनाव परिणाम और नीति: इसमें कहा गया है कि ताजा राज्य चुनाव परिणामों से सरकार के नीतिगत प्रयासों को मदद मिली है, जिनमें जीडीपी में कॉरपोरेट लाभ की भागीदारी और निजी निवेश को प्रोत्साहन शामिल हैं।
 
नए लाभ चक्र और घरेलू प्रयास: ब्रोकरों का कहना है कि इसके स्पष्ट संकेत हैं कि भारतीय उद्योग जगत की मुनाफा वृद्घि नए चक्र में प्रवेश कर रही है। पूंजी पर प्रतिफल (आरओई) में बड़ा सुधार आने की संभावना है।

एमएनसी धारणा, एफडीआई और पूंजीगत खर्च: मॉर्गन स्टैनली के अनुसार, भारत के प्रति बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) की धारणा देश में निवेश के लिए सरकार से प्रत्यक्ष प्रोत्साहन की वजह से सर्वाधिक ऊंचाई पर है। ब्रोकरेज का कहना है कि एफडीआई में असमान वृद्घि हुई है जिसकी वजह से नए पूंजीगत खर्च चक्र को बढ़ावा मिलने की संभावना है और इसलिए वृद्घि की रफ्तार बढ़ सकती है।

बड़ी फंडिंग में बदलाव: ब्रोकरेज का कहना है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) प्रवाह के मुकाबले एफडीआई में वृद्घि का मतलब भारत के चालू खाता घाटे की फंडिंग में बड़ा बदलाव है। उसने कहा है, ‘यह अब वैश्विक पूंजी बाजार स्थिति के लिए कम महत्वपूर्ण है।’ आंकड़े के अनुसार, भारत में पिछले 24 महीनों में सकल एफडीआई (इक्विटी और डेट, दोनों) 10 अरब डॉलर से कम के एफपीआई के मुकाबले करीब 160 अरब डॉलर के आसपास हैं।

बढ़ती नीतिगत स्वायत्तता: रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब घरेलू चुनौतियां दूर करने के लिए बढ़ती नीतिगत स्वायत्तता का लाभ उठाने में सक्षम है। मॉर्गन स्टैनली में रणनीतिकार रिधम देसाई, शीला राठी और नयंत पारेख नक एक रिपोर्ट में कहा, ‘हम वित्तीय और मौद्रिक नीति, दोनों में यह देख सकते हैं। सरकार सामान्य वित्तीय घाटे के मुकाबले ज्यादा की समस्या से जूझ रही है, जिसे कम करने की कोई तत्काल आवश्यकता नहीं है और आरबीआई नकारात्मक वास्तविक दरों के साथ बने रहने में सक्षम है, क्योंकि अमेरिकी फेडरल अपनी आसान मौद्रिक नीति से बाहर हो गया है।’

तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव: ब्रोकरेज का कहना है कि वृहद हालात और बाजारों, दोनों पर तेल कीमतों के उतार-चढ़ाव का प्रभाव जीडीपी में तेल की घटती तीव्रता के कारण कम हो रहा है। जहां भारत वैश्विक ऊर्जा कीमतों पर निर्भर बना हुआ है, वहीं बढ़ती तेल कीमतों का प्रभाव अब ज्यादा स्पष्ट है।

First Published - April 7, 2022 | 11:39 PM IST

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