भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पूंजी पर्याप्तता मानक पेश करने की योजना बनाई है जिससे ब्रोकरों की धड़कन तेज हो गई है। शेयर ब्रोकर मार्जिन गिरवी, दिन के कारोबार में अग्रिम मार्जिन और इन नियमनों के उल्लंघन पर सख्त जुर्माने से जुड़े दिशा-निर्देशों का सामना पहले से ही कर रहे हैं।
सेबी चेयरमैन अजय त्यागी ने हाल में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए नए पूंजी पर्याप्तता मानक पेश किए जाने की जरूरत के बारे में बताया था। त्यागी ने कहा, ‘इस व्यवस्था में सभी तरह के ब्रोकर शामिल हैं। नेटवर्थ की सीमा करीब एक दशक पहले निर्धारित की गई थी। इसलिए, इसमें अब सुधार की जरूरत है। हम इस पर विचार करेंगे। पूंजी पर्याप्तता विचार का पहला स्तर होना चाहिए।’
ब्रोकरों का तर्क है कि ऐसे समय में पूंजी पर्याप्तता मानकों की कोई जरूरत नहीं है जब सेबी ने ग्राहक प्रतिभूतियों और मार्जिन पर ब्रोकरों की निर्भरता पहले ही घटा दी है।
जीरोधा के मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत ने कहा, ‘सेबी ने ब्रोकरों को किसी भी तरह से ग्राहकों को पूंजी देने से मना किया है। यदि यह वित्त पोषण नहीं होता है तो पूंजी पर्याप्तता का कोई कारण नहीं है।’
चूड़ीवाला सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक आलोक चूड़ीवाला ने कहा कि जब लेनदेन अग्रिम मार्जिन द्वारा समर्थित होगा तो पूंजी पर्याप्तता की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यदि हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि निवेशकों की सुरक्षा ऐसे तरीके से हो जिसमें व्यापार पर दबाव कम हो, तो यही आगे का रास्ता होना चाहिए।’
बाजार के एक वर्ग में सोच यह है कि प्रवेश नियमों को सख्त बनाए जाने से चूक और ब्रोकिंग उद्योग में गैर-प्रमाणिक प्रणालियों के बढ़ते जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
पूंजी पर्याप्तता व्यवसायों में सक्षम बनाने के लिए न्यूनतम पूंजी की जरूरत है। यह चलन बैंकिंग उद्योग में सामान्य है, जहां ऋणदाता की पूंजी पर्याप्तता उसके ऋण जोखिम से संबद्घ है। वहीं ब्रोकिंग उद्योग में, सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों ने न्यूनतम जमा और नेटवर्थ जरूरतें निर्धारित की हैं। ये 75 लाख रुपये से लेकर 10 करोड़ तक, ब्रोकर और परिचालन से जुड़े उसके सेगमेंट के आधार पर अलग अलग हैं।
ब्रोकरों का कहना है कि मौजूदा पूंजी पर्याप्तता मानक ब्रोकरों के लिए काफी सख्त हैं।
नेटवर्थ की सामान्य लेखा परिभाषा पूंजी और मुक्त रिजर्व है। जब ब्रोकर नेटवर्थ पर ध्यान देते हैं, वहीं हम सिर्फ लिक्विड परिसंपत्तियों पर जोर देते हैं, जो नकदी और ब्रोकर की लिक्विड परिसंपत्तियां हैं।
इस उद्योग में कई कंपनियां नियामकीय बदलावों से पहले से ही जूझ रही हैं। जुलाई, 2020 में सेबी ने मार्जिन ट्रेडिंग को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। दिसंबर 2020 से प्रभावी होने वाले नए मानकों में ब्रोकरों के लिए इक्विटी कैश सेगमेंट में कारोबार के लिए भी वैल्यू ऐट रिस्क (वीएआर) मार्जिन और एक्सट्रीम लॉस मार्जिन (ईएलएम) जुटाने की जरूरत होगी। यदि ग्राहकों के लिए मार्जिन वीएआर और ईएलएम की रकम के 25 प्रतिशत से ज्यादा हुआ तो दिसंबर से, ब्रोकरों को जुर्माना भुगतना पड़ेगा।
इसके अलावा, सेबी ने 1 सितंबर से पिछली व्यवस्था को समाप्त कर दिया है जिसमें ब्रोकर ग्राहक प्रतिभूतियों को लेकर पावर ऑफ अटॉर्नी हासिल कर सकते थे। ब्रोकरों का यह भी कहना है कि सख्त ब्रोकिंग मानकों से छोटे ब्रोकर प्रभावित हो सकते हैं और नई कंपनियों को इस क्षेत्र में प्रवेश करने में समस्या पैदा हो सकती है।
