परमाणु करार को लेकर राजनीतिक गलियारों में चल रही उठा-पटक और कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग का असर शेयर बाजार पर भी दिखा।
शुक्रवार को भारी गिरावट के साथ बंद हुए शेयर बाजार सोमवार को भी राहत की सांस नहीं ले सके और बड़ी गिरावट के साथ बंद हुए। कारोबार की समाप्ति पर बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स 340.62 अंक लुढ़क कर 13,461.60 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 96.10 अंक गिरकर 4,040.55 के स्तर पर बंद हुआ।
एशियाई और यूरोपीय बाजारों में भी गिरावट का दौर रहा, जिससे बिकवाली को हवा मिली। बीएसई का मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांक तकरीबन 3 फीसदी नीचे बंद हुआ। क्षेत्रीय सूचकांकों में आईटी, फार्मा, एफएमसीजी में मामूली बढ़त दर्ज की गई, लेकिन अन्य सभी क्षेत्रों के सूचकांक गिरावट के साथ बंद हुए। रियल्टी क्षेत्र का सूचकांक 6.5 फीसदी लुढक़ा, जबकि तेल-गैस, ऊर्जा बैंकिंग, पूंजीगत वस्तुओं के सूचकांकों में 3 से 3.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। वाहन और पीएसयू क्षेत्र के शेयर भी 2.5 फीसदी कमजोरी के साथ बंद हुए।
सेंसेक्स में बढ़ने वाले शेयरों में हिंडाल्को, आईटीसी, इन्फोसिस, जेपी एसोशिएट्स, टाटा स्टील, सिप्ला और भेल प्रमुख रहे। वहीं सबसे ज्यादा 11.5 फीसदी गिरावट रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के शेयरों में देखी गई। एसीसी का शेयर करीब 9 फीसदी टूटा, जबकि डीएलएफ, रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा, एसबीआई और मारुति सुजुकी के शेयरों में भी गिरावट का रुख रहा।
सियासती पारा चढ़ा, सेंसेक्स गिरा
मानसून आने से मौसम भले ही सुहाना हो गया हो लेकिन तपती लू सरीखी गरम हवा के थपेड़े थम नहीं रहे हैं। राजनीतिक क्षितिज पर तप रहे परमाणु करार के मुद्दे और इससे ‘लाल’ हो रहे वाम दलों के चलते चल रही इस लू का असर सरकार पर ऐसा हुआ है कि उसकी आंखों की आगे अब अंधेरा छाने लगा है। राजनीतिक पारे की इस गर्मी से बेहाल होकर वह इस कदर पसीने-पसीने हो गई है, मानों अब गिरी-तब गिरी। उसकी यह हालत देखकर सेंसेक्स का पारा सोमवार को काफी लुढ़क गया।
क्या है 123 करार
अमेरिका ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1954 के सेक्शन 123 में संशोधन करके भारत को परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) में शामिल हुए बगैर परमाणु हथियार रखने की अनुमति दे दी है। इस संशोधन से 30 साल पुराने उस प्रतिबंध का खात्मा भी हो जाना है, जिसके तहत 1974 में परमाणु परीक्षण करने के बाद से ही परमाणु ऊर्जा और तकनीक भारत को दिए जाने की मनाही है।
संशोधन यह भी कहता है कि भारत को अपने सैन्य और असैन्य परमाणु उपयोगों को अलग-अलग वर्गीकृत करके असैन्य परमाणु उपयोगों की सूची सौंपनी होगी, जिनका निरीक्षण अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) करेगी। अमेरिकी सांसद हेनरी जे. हाइड ने इस बाबत बाकायदा एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी भी मिल चुकी है। इसी वजह से इसे हाइड एक्ट के नाम से भी जाना जाता है।
क्यों है समर्थक तैयार
सरकार और समर्थकों का कहना है कि अपनी जरूरतों के 70 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल आयात करने वाले भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल में लगी आग से बचने के लिए परमाणु ऊर्जा जैसे विकल्पों को अपनाना बेहद जरूरी है।
क्यों हैं विरोधी बेकरार
वाम दलों का कहना है कि अमेरिका से होने वाला यह करार भारत के लिए भेदभावपूर्ण और खतरनाक है। उनका कहना है कि हाइड एक्ट के नाम से पारित इस अधिनियम पर भारत के दस्तखत होने के बाद सैन्य परमाणु उपयोग या परमाणु परीक्षण जैसे कामों पर अमेरिकी अंकुश लग जाएगा। वाम दलों की यह भी दलील है कि अगर सरकार को परमाणु ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए यह करार करना ही है तो वह रूस या फ्रांस के साथ इसे करे, जो कि अमेरिका की तरह सैन्य-असैन्य की श्रेणियां नहीं बांटेंगे।
यूं चढ़ने लगा पारा
रविवार को माकपा नेता प्रकाश करात ने सरकार को खुली चेतावनी दी कि अगर परमाणु करार पर कदम आगे बढ़ाए तो वाम दल समर्थन वापस ले लेंगे।
कांग्रेस ने इस चेतावनी को ‘राजनीतिक’ करार देते हुए सिरे से खारिज कर दिया। कहा- इसमें नया कुछ नहीं है।
भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि सरकार अगर करार पर आगे बढ़ी तो उसे विश्वास मत हासिल करना पड़ेगा।
सोमवार को प्रधानमंत्री ने एक पखवाड़े लंबी चुप्पी तोड़ी, कहा- उनकी ख्वाहिश है कि करार पर आगे बढ़ने के सारे अधिकार उन्हें दिए जाएं। उन्होंने भरोसा दिलाया कि करार पर वार्ता पूरी होने के बाद सरकार खुद संसद में पहुंचेगी।
अगर वाम दल हुए लाल
यूपीए सरकार वाम दलों के 59 सांसदों के सहयोग पर टिकी है। अगर उसने समर्थन खींचा तो सरकार 30 सांसदों वाली सपा और छोटे दलों को साथ लेकर भरपाई करेगी।
गर्मी भरा है हफ्ता
यूपीए के लिए संकटमोचक साबित हो सकने वाले सपा मुखिया मुलायम सिंह ने कहा है कि वह 3 जुलाई यानी गुरुवार को इस बारे में कोई फैसला करेंगे।
शनिवार-रविवार को यूपीए की बैठक भी प्रस्तावित है, जिसमें दोनों के बीच करार पर अंतिम बातचीत होने की संभावना है।
….पारे की दिशा
सोमवार यानी 7 जुलाई को प्रधानमंत्री जी-8 की बैठक में जापान जाने के लिए प्रतिबध्द हैं जबकि वाम दलों की ख्वाहिश है कि देश में जब राजनीतिक पारा उफान पर है तो प्रधानमंत्री के विदेश दौरे का कोई औचित्य नहीं है। जाहिर है, प्रधानमंत्री का जाना तो उन्हें नागवार गुजरेगा ही, वह यह भी साफ ऐलान कर चुके हैं कि जुलाई मध्य में संभावित परमाणु करार पर वार्ता की घोषणा होते ही वह अपना समर्थन खींच लेंगे। यानी साफ है कि अगले हफ्ते का राजनीतिक तापमान शबाब पर होगा।