भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की पहली महिला चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच का तीन साल का कार्यकाल कुछ ही दिन में पूरा होने वाला है। उनसे पहले के चेयरपर्सन – अजय त्यागी और यूके सिन्हा इस पद पर पांच-पांच साल से ज्यादा रहे क्योंकि उन्हें कार्यकाल विस्तार मिला था। तीन साल के शुरुआती कार्यकाल के बाद आम तौर पर विस्तार मिलता रहा है। लेकिन बुच की स्थिति थोड़ी जटिल है।
हालांकि बाजार की निगरानी और नियामकीय सुधारों में बुच का कामकाज बेमिसाल रहा है, लेकिन ‘हितों के टकराव’ से जुड़े विवाद का साया उनकी उपलब्धियों पर पड़ा है। इस विवाद को पहली बार हिंडनबर्ग रिसर्च, जो अब खत्म हो चुकी है, ने और उसके बाद विपक्षी दल कांग्रेस ने उठाया था।
हालांकि उनका कार्यकाल बढ़ने की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा रहा है। लेकिन सरकार ने सेबी के अध्यक्ष पद के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं, जिन्हें जमा करने की अंतिम तिथि 17 फरवरी थी। खबरों से संकेत मिलता है कि केंद्र को एक दर्जन से ज्यादा आवेदन मिले हैं और इस भूमिका के लिए कुछेक बड़े अफसरशाहों पर विचार किया जा रहा है।
चूंकि सरकार अभी इस चुनौतीपूर्ण फैसले से जूझ रही है कि बुच को चेयरपर्सन के पद पर बरकरार रखा जाए या ऐसे समय में नए चेयरपर्सन को नियुक्त किया जाए कि जब बाजार विदेशी फंडों की तेज बिकवाली के बीच गिरावट की राह पर हैं। आइए पूर्व निवेश बैंकर के ट्रैक रिकॉर्ड पर नजर डालें …।
बाजार में उछाल
बुच के कार्यकाल के दौरान बाजार में जबरदस्त उछाल आई थी। साल 2024 में आईपीओ के जरिये जुटाई गई पूंजी 1.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई जो न केवल भारत के लिहाज से रिकॉर्ड थी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी ऊपर के पायदानों पर रही।
भारत का बाजार पूंजीकरण 5.5 लाख करोड़ डॉलर के आंकड़े को पार कर गया और बाजार सितंबर 2024 में सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गए। यह कोविड के बाद तीन गुना से ज्यादा इजाफा है। डीमैट खातों की संख्या करीब 20 करोड़ हो गई है, म्युचुअल फंडों का परिसंपत्ति आधार करीब 70 लाख करोड़ रुपये हो गया है और देश भर से लोग शेयर बाजार में आए हैं।
कठिन सुधारों पर जोर
शेयर बाजार के तंत्र की बुच की गहरी समझ ने उन्हें चुनौतीपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाने में सक्षम किया। इनमें शेयरों के सौदों का निपटान चक्र टी+2 से घटाकर टी+1 करना और शेयरों के सौदों का उसी दिन निपटान शुरू करना शामिल है जो फिलहाल प्रायोगिक चरण में है। उनके नेतृत्व में सेबी ने आईपीओ निपटान का चक्र छह दिन से घटाकर तीन दिन कर दिया और स्टॉक ब्रोकिंग में जोरदार परिवर्तन किए।
सहयोग वाला दृष्टिकोण
सुधारों के लिए बुच के सहयोगात्मक दृष्टिकोण के कारण सभी हितधारक साथ आए। उन्होंने कई उद्योग मानक फोरम स्थापित किए और विभिन्न क्षेत्रों पर 180 चर्चा पत्र जारी किए। इनमें सूचीबद्ध कंपनियों और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए खुलासे के मानदंड, एसएमई की सूचीबद्धता के लिए सख्त उपाय, साइबर सुरक्षा, ईएसजी संबंधी खुलासे जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं। उन्होंने रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन (आरपीटी) के लिए कॉमन विश्लेषण प्लेटफॉर्म और म्युचुअल फंड निवेश पर नजर रखने के लिए एकीकृत पोर्टल जैसी पहल भी शुरू की।
तकनीक का इस्तेमाल
तकनीक की समर्थक के रूप में बुच ने साइबर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और आईपीओ के आवेदनों के तीव्र क्रियान्वयन तथा बाजार के मध्यस्थों के पंजीकरण में तेजी लाने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया। इनसाइडर ट्रेडिंग और फ्रंट-रनिंग के संबंध में सेबी के हालिया आदेश निगरानी में प्रौद्योगिकी के प्रभावी इस्तेमाल के सबूत हैं।
विवाद और चुनौतियां
अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में सेबी के जांच शुरू करने के एक साल से भी ज्यादा समय बाद अमेरिकी शॉर्ट सेलर ने बुच और उनके पति धवल बुच के स्वामित्व वाली परामर्श कंपनियों के संबंध में हितों के टकराव और आचार संहिता के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगाए। विपक्षी दल कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, बुच के निजी निवेश, उनके पिछले नियोक्ता के इसॉप और ब्लैकस्टोन के साथ धवल के संबंधों की जांच की। बुच दंपती के खंडन के बावजूद लोक लेखा समिति ने उनको तलब किया मगर उनके न आने के कारण सुनवाई स्थगित करनी पड़ी।