टाटा म्युचुअल फंड ने टाटा क्वांट फंड का टाटा फ्लेक्सी कैप फंड में विलय करने की घोषणा की है। यह विलय 21 मार्च, 2025 से प्रभावी हो गया। ऐसे में तमाम निवेशकों के मन में यह सवाल आते होंगे कि दो फंडों के विलय पर क्या करना चाहिए, फंड में बने रहना सही है या उससे बाहर निकल जाना?
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार और सहजमनी डॉट कॉम के संस्थापक अभिषेक कुमार ने कहा, ‘क्वांट फंड के पास 67.51 करोड़ रुपये की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) हैं। इस खास रणनीति ने व्यापक फ्लेक्सी कैप श्रेणी के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन किया है। टाटा म्युचुअल फंड शायद इसके जरिये संसाधनों को समेकित करना और अपने परिचालन लागत को कम करना चाहती है।’
फंड हाउस कई कारणों से अपनी योजनाओं का विलय कर सकते हैं। परिसंपत्तियों में बेहतर तालमेल बिठाना भी एक कारण है। स्क्रिपबॉक्स के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी अतुल सिंघल ने कहा, ‘फंडों का विलय किए जाने से बेहतर नतीजों के लिए पूरक या ओवरलैपिंग वाले निवेश दृष्टिकोणों को एकीकृत किया जा सकता है।’
नियामकीय मानदंडों के अनुपालन के लिए भी फंडों का विलय किया जाता है। सिंघल ने कहा, ‘सेबी की ओर से 2017 में म्युचुअल फंड वर्गीकरण मानदंड जारी किए जाने के बाद फंड हाउसों ने परिभाषित श्रेणियों के लिहाज से अपने फंडों का समेकन किया।’ फंड हाउस को हर प्रमुख श्रेणी में केवल एक फंड रखने की अनुमति दी गई थी और ऐसे में उन्हें अपने कई फंडों का विलय करना पड़ा।
खराब प्रदर्शन करने वाली स्कीम को बंद करने के लिए भी फंड मैनेजर अपनी म्युचुअल फंड योजनाओं का विलय करते हैं। ऐसे फंडों का विलय होने पर खराब प्रदर्शन का इतिहास मिट जाता है, जिससे फंड हाउस का प्रदर्शन बेहतर दिखता है।
इसके अलावा, फंड हाउस लागत में कटौती करने और सीमित फंड प्रबंधन संसाधनों को अपनी प्रमुख योजनाओं पर केंद्रित करने के लिए भी म्युचुअल फंड योजनाओं का विलय करते हैं।
कभी-कभी म्युचुअल फंड योजनाओं के विलय से निवेशकों को यह फायदा मिलता है कि वे बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंड में चले जाते हैं। 1फाइनैंस की वरिष्ठ उपाध्यक्ष (म्युचुअल फंड) रजनी तांडले ने कहा, ‘कमजोर प्रदर्शन करने वाले अथवा कम प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों वाले फंड को किसी बड़े और अच्छी तरह से प्रबंधित फंड के साथ विलय किए जाने से लंबी अवधि के निवेशकों के लिए बेहतर रिटर्न, विविधीकरण और निवेश के अवसर बढ़ सकते हैं।’
बड़े फंडों की रणनीति अपेक्षाकृत स्थिर होती है और उनकी लागत भी कम होती है। कुमार ने कहा, ‘विलय से निवेशकों को तभी फायदा होता है जब पैमाना बढ़ने के कारण व्यय अनुपात में कमी आती है।’
अगर दूसरे फंड (जहां निवेशक को जाना पड़ता है) की बुनियादी रणनीति और जोखिम एवं रिटर्न की विशेषताएं भिन्न हैं, तो निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है। रजनी तांडले ने कहा, ‘अगर दूसरे फंड का परिसंपत्ति आवंटन और उतार-चढ़ाव का स्तर अलग है, तो अनपेक्षित जोखिम पैदा हो सकता है। ऐसे में फंड कुछ निवेशकों के लिए उपयुक्त नहीं रहेगा।’
एक्सपेंस रेश्यो यानी व्यय अनुपात अधिक होने से रिटर्न कम हो सकता है। फंडों का विलय निवेशकों पर कर का बोझ भी डाल सकता है। अतुल सिंघल ने कहा, ‘इससे उन निवेशकों को पूंजीगत लाभ कर देना पड़ सकता है जो अपने निवेश को विलय किए गए फंड के साथ जारी नहीं रखना चाहते हैं और अपने यूनिट को भुना लेते हैं।’
अगर निवेशक इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि निवेश को बरकरार रखना चाहिए अथवा उसे समेट लेना चाहिए, तो उन्हें कोई निर्णय लेने से पहले इस सवाल पर गौर करना चाहिए कि दूसरा फंड उनके पोर्टफोलियो के लिए कितना सही है? रजनी तांडले ने कहा, ‘इस बात पर विचार करें कि क्या नया फंड आपकी दीर्घकालिक रणनीति के अनुरूप है और क्या निवेश को बरकरार रखना आपके उद्देश्यों के लिए सही है?’
अभिषेक कुमार ने कहा कि अगर उस फंड से पोर्टफोलियो में विविधीकरण को बेहतर करने और शुल्क को कम करने में मदद मिलती है तो निवेशकों को उसे बरकरार रखना चाहिए।
निवेशकों को दूसरे फंड के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर भी गौर करना चाहिए। तांडले ने कहा, ‘जिन प्रमुख मुद्दों पर गौर करना चाहिए उनमें शार्प रेश्यो (जोखिम समायोजित रिटर्न), जेन्सेन्स अल्फा (बाजार की अपेक्षाओं से अधिक रिटर्न) और डाउनसाइड रिस्क (उतार-चढ़ाव वाले बाजार में संभावित नुकसान) शामिल हैं।’
अगर नया फंड निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता और समय-सीमा के लिहाज से सही है तो निवेशकों को अपना निवेश बरकरार रखना चाहिए।
सिंघल ने कहा, ‘सेबी म्युचुअल फंड रेगुलेशन के अनुसार, इसमें यूनिटधारकों को एग्जिट लोड का भुगतान किए बिना बाहर निकलने का अवसर मिलता है। ऐसे में अगर वे बदलाव से खुश नहीं हैं तो आसानी से अपना निवेश समेट सकते हैं।’ कुमार ने सुझाव दिया कि अगर कोई निवेशक बाहर निकलने का निर्णय लेता है तो उसे लोड-फ्री विंडो यानी रियायती अवधि के दौरान ही ऐसा कर लेना चाहिए।
अगर कोई निवेशक अपना निवेश समेटकर उसे दोबारा किसी अन्य फंड में निवेश करना चाहता है तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नया फंड उसके लक्ष्यों के अनुरूप हो ताकि कर लागत को उचित ठहराया जा सके।