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एचडीएफसी विलय : एनबीएफसी के लिए नियामकीय बदलाव जरूरी

Last Updated- December 11, 2022 | 8:11 PM IST

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा प्राप्त आर्बिट्राज को कम करने के मकसद से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा किए गए विभिन्न नियामकीय बदलाव भारत के निजी क्षेत्र के सबसे बड़े ऋणदाता एचडीएफसी बैंक में एचडीएफसी लिमिटेड के विलय की राह में निर्णायक कारक साबित होंगे।
सोमवार को एचडीएफसी लिमिटेड और एचडीएफसी बैंक ने घोषणा की कि उनके बोर्ड ने नियामकीय मंजूरियों के तहत विलय को मंजूरी प्रदान की है। मौजूदा समय में एचडीएफसी लिमिटेड, बैंककी पैतृक कंपनी है।  
हाल के वर्षों के दौरान, आरबीआई ने बैंकिंग क्षेत्र में चूक के कई मामलों को देखते हुए एनबीएफसी और बैंकों के बीच नियमों में बदलाव किया है और इस तरह की शुरुआत इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) संकट के साथ शुरू हुई।
आरबीआई एनबीएफसी क्षेत्र के लिए व्यापक नियमेां के साथ आगे आया है जिनमें बड़ी एनबीएफसी को भी बैंकों के समान सख्त जांच के दायरे में लाया जाएगा। इसके अलावा आरबीआई ने एनबीएफसी के लिए आय पहचान और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) वर्गीकरण मानकों को अनुकूल बनाया है, जिसे केंद्रीय बैंक द्वारा एनबीएफसी के नियमों को बैंकों के समान बनाए जाने के अगले कदम के तौर पर देखा गया है।
एनबीएफसी के लिए लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (एलसीआर) भी पेश किया गया, जिसमें गैर-जमा लेने वाली एनबीएफसी (10,000 करोड़ रुपये के संपत्ति आकार वाली) और सभी जमाएं लेने वाली एनबीएफसी (भले ही आकार कुछ भी हो) के लिए एलसीआर के संदर्भ में लिक्वीडिटी बफर पर ध्यान देना अनिवार्य है। एलसीआर अल्पावधि देयताओं को पूरा करने के लिए निर्धारित अधिक तरलता वाली परिसंपत्तियों का अनुपात है।
हाल में, आरबीआई ने एनबीएफसी से 30 सितंबर 2025 तक ‘कोर फाइनैंशियल सर्विसेज सॉल्युशन’ (सीएफएसएस) पर अमल करने के लिए अपर एवं मिडिल लेयर के बारे में पूछा था। यह बैंकों द्वारा इस्तेमाल कोर बैंकिंग सॉल्युशन के समान प्रणाली है। इसके अलावा, आरबीआई ने यह भी संकेत दिया है कि 50,000 करोड़ रुपये से अधिक के परिसंपत्ति आकार वाली बड़ी एनबीएफसी को बैंकों में तब्दील किए जाने पर विचार किया जा सकता है।
आरबीआई द्वारा निर्धारित नियामकीय ढांचे में बदलाव का संकेत देते हुए एचडीएफसी लिमिटेड के चेयरमैन दीपक पारेख ने सोमवार को कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान, बैंकों और एनबीएफसी के लिए कुछ खास नियामकीय बदलाव आए हैं, जिससे संभावित विलय के लिए समस्याएं घटी हैं। पिछले तीन वर्षों में आरबीआई ने बैंकों और एनबीएफसी के बीच नियमों को अनुकूल बनाए जाने की दिशा में कई निर्देश जारी किए हैं।’
मैक्वेरी कैपिटल के सहायक निदेशक सुरेश गणपति ने कहा, ‘तथ्य यह है कि आरबीआई ने मानकों में बदलाव लाकर, एलसीआर मानकों को पेश कर और ऊंचे पूंजी स्तरों को बरकरार रखकर सभी आर्बिट्र्राज को समाप्त किया है जो एनबीएफसी सेक्टर में मौजूद थे।’
नियामकीय आर्बिट्राज को सीमित करने के अलावा, बैंकों और एनबीएफसी के बीच तरलता मानकों में अंतर घटाना, कम ब्याज की व्यवस्था, और बैंकों को प्राथमिकता क्षेत्र की उधारी (पीएसएल) पत्रों में निवेश का विकल्प आदि का भी विलय के लिए योगदान देने वाले कारकों में अहम योगदान रहा है।
एमके रिसर्च के अनुसार, इस विलय से 1.02 लाख करोड़ रुपये का एसएलआर/सीआरआर बोझ और 1.17 लाख करोड़ रुपये का पीएसएल दर्ज किया जा सकता है, जिससे शुद्घ लागत को बढ़ावा मिल सकता है।

First Published - April 5, 2022 | 11:43 PM IST

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