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फंड प्रबंधकों ने कहा, काफी नहीं आरबीआई का पैकेज

Last Updated- December 08, 2022 | 12:04 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक का 20 हजार करोड़ का बेलआउट पैकेज म्युचुअल फंडों के रिडेम्पशन को और बढ़ावा देगा या फिर इससे निवेशकों का भरोसा बहाल क रने में कारगर साबित होगा।


भारतीय रिजर्व बैंक के 20,000 करोड़ की शॉर्ट टर्म लेंडिंग के जरिए म्युचुअल फंडों की लिक्विडिटी की समस्या ठीक करने और रिडेम्पशन केदबाव को कम करने के प्रयास से हो सकता है और ज्यादा निवेशक रिडेम्पशन के लिए जल्दबाजी करने लगें। रिजर्व बैंक इस सहायता राशि के लिए नौ फीसदी पर विशेष चार दिनों के रेपो का संचालन करेगी। रेपो रेट वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को पैसा मुहैया कराते हैं।

जबकि फंड प्रबंधक इस बात को स्वीकार करते हैं कि रिजर्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने जिस तेजी के साथ कदम उठाएं हैं उससे तो लगता है कि परिस्थिति अच्छी नहीं हैं, लेकिन ज्यादातर इस बात को स्वीकार करते हैं कि असली समस्या तरलता की है। इस बाबत रेलीगेयर एजिऑन एसेट मैंनेजमेंट के आशीष निगम कहते हैं कि वास्तविक समस्या तरलता की है न कि म्युचुअल फंड उद्योग की।

लिक्विड फंड द्वारा दिया जानेवाला एक साल में रिटर्न 8.73 प्रतिशत है जबकि लिक्विड प्लस इंस्टीटयूशनल कैटेगरी द्वारा समान अवधि के लिए दिया जानेवाला रिटर्न 8.89 प्रतिशत है। चूंकि रिजर्व बैंक म्युचुअल फंडों को सालाना 9 प्रतिशत की दर पर ऋण दे रही है, बैंक 11 प्रतिशत की ब्याज दर पर उधार देगी।

अब सवाल यह उठता है कि क्या फंड इस दर पर कर्ज ले पाने में सक्षम है? बाजार सूत्रों के अनुसार अधिकांश फंड हाउसों की कुल परिसंपत्ति 10-20 करोड़ रुपये की है। ग्राहकों पर इस ऋण का भार लादे जाने से ग्राहक इनसे और ज्यादा दूर भागेंगे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सिर्फ बैंक के पास केवल 3,500 करोड रुपये की क्रेडिट पहुंच पाई है क्योंकि वे इस उधार लेने की स्थिति में नहीं हैं।

First Published - October 15, 2008 | 10:55 PM IST

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