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एफपीआई के निवेश पर दिखेगा असर

Last Updated- December 12, 2022 | 2:56 AM IST

प्राथमिक बाजार में पेशकश की भरमार, नतीजे के सुस्त सीजन और फेडरल रिजर्व की तरफ से प्रोत्साहन से जुड़े कदमों पर विराम की संभावना से विदेशी निवेशकों की तरफ से अल्पावधि में भारतीय इक्विटी की बिकवाली की रफ्तार तेज हो सकती है। अगले कुछ हफ्तों में एक दर्जन से ज्यादा कंपनियां आरंभिक सार्वजनिक निर्गम पेश कर रही हैं और इसके जरिए करीब 30,000 करोड़ रुपये जुटाएंगी। इनमें जोमैटो, ग्लेनमार्क लाइफ साइंसेज, उत्कर्ष स्मॉल फाइनैंस बैंक और सेवन आइलैंड्स शिपिंग शामिल हैं।

अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक और निदेशक यू आर भट्ट ने कहा, एफपीआई की तरफ से विभिन्न बाजारों मेंं होने वाले निवेश में भारत का भारांक भी है, जो कमोबेश बेंचमार्क वैश्विक सूचकांकों के भारांक के मुताबिक है और यह बार-बार नहीं बदलता। बड़े आईपीओ बाजार में पेश हो रहे हैं, ऐसे में उनके पोर्टफोलियो में कुछ अदलाबदली हो सकती है, जिससे द्वितीयक बाजार में हिस्सेदारी बिक्री व आईपीओ में भागीदारी हो सकती है। 

एफपीआई का परिदृश्य नतीजे के सीजन पर भी निर्भर करेगा। जून में जीएसटी संग्रह कई महीनों में पहली बार 1 लाख करोड़ रुपये से नीचे आ गया, जो कोरोना की दूसरी लहर के बीच सुस्त आर्थिक गतिविधियों का संकेत दे रहा है। देश के कई इलाकों में सख्त लॉकडाउन है, जो पहली तिमाही के नतीजों से जुड़े परिदृश्य पर असर डाल सकता है।

एवेंडस कैपिटल पब्लिक मार्केट्स ऑल्टरनेट स्ट्रैटिजीज के सीईओ एंड्र्यू हॉलैंड ने कहा, विकसित दुनिया में बढ़त की रफ्तार भारत जैसे उभरते बाजारों के मुकाबले तेज रही है। भारत में टीकाकरण काफी कम हुआ है। भारतीय कंपनियों के पहली तिमाही के नतीजे शायद ही बहुत अच्छे रहेंगे। साथ ही उच्च महंगाई के अनुमान से अगर फेड ब्याज दरों पर तेजी से सख्ती बरतता है तो अल्पावधि में डॉलर मजबूत हो सकता है, जो भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए ठीक नहीं होगा।

वास्तव में वैश्विक आर्थिक सुधार का रुख अलग-अलग है क्योंकि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में बाकी दुनिया के मुकाबले तेजी से आर्थिक बढ़त हो रही है। फेडरल रिजर्व के अधिकारियों ने परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम में सख्ती पर बातचीत शुरू कर दी है और ब्याज दरों में बढ़ोतरी के अनुमान को 2023 की ओर बढ़ा दिया है।

क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट के प्रमुख (इंडिया इक्विटी रिसर्च) जितेंद्र गोहिल ने हालिया नोट में कहा है, अगर डॉलर तेजी से बढ़ता है तो एफपीआई की तरफ से भारत से निवेश निकासी का जोखिम है, लेकिन हमारी राय यह है कि भारत में फंडामेंटल में सुधार को देखते हुए एफपीआई की निकासी सीमित रहेगी और साल 2013 के मुकाबले काफी कम रहेगी।

गोहिल ने कहा, आगामी महीनों में टीकाकरण में तेजी लाकर भारत खतरनाक तीसरी लहर को टाल सकता है। अगर भारत टीकाकरण में तेजी लाता है तो भारत के लिए औसत से ज्यादा प्रीमियम मूल्यांकन बना रह सकता है। पिछले 11 कारोबारी सत्रों में एफपीआई ने 4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की शुद्ध बिकवाली की है। इस साल अब तक उन्होंंने 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर खरीदे हैं जबकि देसी म्युचुअल फंडों ने 9,700 करोड़ रुपये के शेयरों की बिकवाली की है।

First Published - July 7, 2021 | 11:45 PM IST

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