जहां तक उतार-चढ़ाव का सवाल है तो कैलेंडर वर्ष 2022 विपरीत साबित हुआ है। यदि पहली छमाही ज्यादा उथल-पुथल भरी रही तो वर्ष की दूसरी छमाही इस संदर्भ में नरम बनी रही।
वर्ष के पहले 6 महीनों के दौरान सेंसेक्स अपने पूर्ववर्ती बंद भाव के मुकाबले 55 कारोबारी सत्रों में एक प्रतिशत से ज्यादा चढ़ा या गिरा। तुलनात्मक तौर पर, दूसरी छमाही में महज 22 कारोबारी सत्रों में ऐसा हुआ।
विश्लेषकों का कहना है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) प्रवाह में सुधार और बाजार में इस साल जून के निचले स्तर से तेजी आने की वजह से निवेशकों में पैसा लगाने को लेकर बेचैनी काफी हद तक शांत हुई है।
वर्ष की शुरुआत अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा सख्त रुख, चीन में कोविड-19 के फिर से बढ़ने और यूक्रेन पर रूस के हमले जैसे वैश्विक कारकों की वजह से पैदा हुए उतार-चढ़ाव के साथ हुई थी।
पहली छमाही के दौरान सेंसेक्स में लगभग हर दिन एक प्रतिशत का उतार-चढ़ाव देखा गया। इस बीच, दूसरी छमाही के दौरान सेंसेक्स में प्रत्येक पांच में से सिर्फ एक में इस तरह का उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया जिससे इस अवधि में बाजार में अस्थिरता घटने का संकेत मिलता है।
अमेरिका और चीन जैसे वैश्विक बाजारों में भी दूसरी छमाही के दौरान इस तरह का उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया
इस तरह का उतार-चढ़ाव अमेरिका और चीन जैसे वैश्विक बाजारों में भी दर्ज किया गया। पहली छमाही के दौरान अमेरिका का डाउ जोंस 52 कारोबारी सत्रों में 1 प्रतिशत से ज्यादा चढ़ा या गिरा और दूसरी छमाही के दौरान अब तक इस तरह का बदलाव 46 कारोबारी सत्रों में देखा गया है।
उतार-चढ़ाव घटने से घरेलू बाजारों को कई वैश्विक प्रतिस्पर्धियों को मात देने में भी मदद मिली है। सेंसेक्स दूसरी छमाही के दौरान 17 प्रतिशत चढ़ा, भले ही डाउ में 8.9 प्रतिशत की तेजी आई।
विश्लेषकों का कहना है कि इस साल बाजार का सबसे बड़ा वाहक एफपीआई निवेश पैटर्न रहा।
जनवरी और जून के बीच, वैश्विक निवेशकों ने घरेलू इक्विटी बाजारों से 2.2 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की। वहीं जुलाई से दिसंबर के बीच उन्होंने 90,000 करोड़ रुपये का निवेश किया था।
बीएनपी पारिबा में इक्विटी शोध प्रमुख (एशिया पैसिफिक) मनीषी रॉयचौधरी का कहना है, “काफी हद तक, दो या तीन चीजों ने भारत के पक्ष में काम किया है। पहला, हम स्पष्ट तोर पर वैश्विक आर्थिक मंदी की अवधि में हैं, खासकर विकसित बाजारों में मांग प्रभावित हुई है। इसका उत्तर एशिया पर असमान रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यदि आप दक्षिण कोरिया या ताइवान जैसी अर्थव्यवस्थाओं या चीन के कुछ हिस्सों को देखें तो पता चलता है कि वे विकसित बाजारों के लिए बड़े निर्यातक हैं। इसके विपरीत, भारत काफी हद तक घरेलू अर्थव्यवस्था है। बाजार के कई प्रमुख क्षेत्र अभी भी घरेलू केंद्रित हैं।”
बाजार में अस्थिरता में कमी आना निवेशक धारणा के लिए अच्छा संकेत है। शेयर कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव से छोटे निवेशकों की भागीदारी प्रभावित होती है। पहली छमाही के दौरान बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ने से रिटेल भागीदारी प्रभावित हुई थी, जिससे नए खाते खुलने की रफ्तार धीमी हुई और औसत दैनिक कारोबार में कमी आई।