माधवी पुरी बुच बुधवार को सेबी चेयरमैन की कमान संभालने जा रही हैं। अक्टूबर 2021 में पूर्णकालिक सदस्य की जिम्मेदारी से मुक्त हुईं माधबी को विभिन्न समस्याओं के समाधान और आगामी चुनौतियों की अच्छी समझ है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने नई बॉस बनने से पहले उद्योग के विभिन्न दिग्गजों और सेबी के अधिकारियों से कुछ चुनौतियों के बारे में बातचीत की, जिनमें से कुछ पर यहां प्रकाश डाला जा रहा है:
एनएसई संकट का निपटान
एनएसई से संबंधित विवाद 6 साल पुराने हैं, लेकिन इनका समाधान की संभावना से इनकार किया जा सकता है। एनएसई की पूर्व बॉस चित्रा रामकृष्ण के खिलाफ बाजार नियामक सेबी द्वारा पिछले महीने जारी एक आदेश में कहा गया कि उन्होंने हिमालयन योगी को गोपनीय जानकारी जारी की थी जिससे काफी हलचल मच गई थी और विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों को जांच के लिए आगे आना पड़ा। पुरी बुच इस मामले को आराम से देखेंगी जिससे कि सेबी को अन्य महत्वपूर्ण मामलों के लिए भी ध्यान देने में समय मिल सके।
उतार-चढ़ाव का प्रबंधन
जहां कोविड का बुरा समय पीछे बीत चुका है, लेकिन अस्थिरता का दौर फिर से शुरू हो गया है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा इस महीने ब्याज दरों में संभावित वृद्घि और भूराजनीतिक तनाव बढऩे से बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ा है। प्रमुख सूचकांक पहले ही अपने ऊंचे स्तरों से दो अंक की गिरावट दर्ज कर चुके हैं। धारणा में और कमजोरी आने से बाजार में खुदरा निवेश प्रवाह प्रभावित हो सकता है। नई सेबी मुखिया को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी प्रणालियां और प्रक्रियाएं आसानी से काम करें और उतार-चढ़ाव से बाजार को ज्यादा नुकसान न पहुंचे।
कार्य संतुलन
किसी भी सेबी मुखिया के लिए कार्य को संतुलित बनाना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। आसान नियमन से हेरफेर का जोखिम बढ़ता है। दूसरी तरफ, ज्यादा सख्ती से हितधारकों से भी प्रतिक्रिया को बढ़ावा मिलता है। इसका ताजा उदाहरण भारतीय उद्योग जगत में चेयरमैन एवं प्रबंधन निदेशक पद को अलग करना रहा है। कंपनियों को अनुपालन के लिए चार साल से अधिक का समय दिए जाने के बावजूद सेबी को भारी विरोध के बाद नियम वापस लेना पड़ा था। नए नियम तैयार करना और मौजूदा नियमों में बदलाव लाना बाजार विकास का हिस्सा है, लेकिर यह कार्य उतना आसान नहीं है, जितना लग रहा है।
प्रबंधन में बदलाव
ऐसे समय में जब सेबी द्वारा विभिन्न मामलों पर तेजी से काम किए जाने की संभावना है, नियामक को प्रमुख पदों के खाली होने की समस्या का भी सामना करना पड़ा है। नियामक मौजूदा समय में सिर्फ दो पूर्णकालिक सदस्यों (डब्ल्यूटीएम) के साथ काम कर रहा है। इसके अलावा, नियामक कार्यकारी निदेशकों को जोडऩे की भी संभावना तलाश रहा है। महामारी की वजह से पैदा हुई समस्या और सदस्यों के अभाव की वजह से प्रतिभूति अपीलीय पंचाट (सैट) के समक्ष मामलों का ढेर लग रहा है। इस महीने के शुरू में सरकार ने तीसरा सदस्य नियुक्त किया। पुरी बुच को पर्याप्त मानव श्रम और समर्थन की जरूरत होगी।
ब्रोकरों, एमएफ, एफपीआई को चिंता
भारतीय उद्योग जगत द्वारा जोर दिए जाने से उन्हें सख्त प्रशासनिक नियम टालने में मदद मिली। म्युचुअल फंडों, एफपीआई और ब्रोकर उतने भाग्यशाली नहीं थे क्योंकि नियामक ने उन्हें राहत प्रदान नहीं की। ब्रोकरों को शेयर गिरवी और मार्जिन फंडिंग से जुड़े नए नियमों से जूझना पड़ रहा है। म्युचुअल फंडों का मुनाफा प्रभावित हुआ है, क्योंकि सेबी ने निवेश की लागत घटाने की कोशिश की और उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धा से जूझने के लिए बाध्य होना पड़ा है।
आईपीओ को लेकर चिंता
वर्ष 2021 में आईपीओ के जरिये करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड पूंजी जुटाई गई। हालांकि सेकंडरी बाजार में अस्थिरता और नई सूचीबद्घ कंपनियों (खासकर स्टार्टअप) के शेयरों में भारी गिरावट से आईपीओ की राह अनिश्चितता के बादल दिख रहे हैं। सेबी ने नए जमाने की कंपनियों के शेयरों के मूल्यों को और ज्यादा तर्कसंगत बनाने के मकसद से नए मानक प्रस्तावित किए हैं।
स्वयं के बॉस का नियमन
सेबी को अक्सर उस वक्त अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है जब बात सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसयू) के नियमन की हो। इनमें से कई के पास नए शेयर जारी करते वक्त पर्याप्त सार्वजनिक फ्लोट और अन्य संबंधित नियम नहीं होते। सेबी को सरकार या पीएसयू को दंडित करने के अन्य तरीके पर विचार करना आसान नहीं है। बीमा दिग्गज एलआईसी की सूचीबद्घता से मामला और उलझता दिख रहा है जो महज 5 प्रतिशत फ्लोट के साथ सूचीबद्घ हो रही है और इसे बढ़ाकर पांच साल के अंदर 25 प्रतिशत करना होगा।