बॉन्ड बाजारों (वैश्विक और घरेलू दोनों) के लिए अगले तीन से छह महीनों के दौरान हालात चुनौतीपूर्ण रहने के आसार हैं। विश्लेषकों का मानना है कि सब्जी की ऊंची कीमतों, बढ़ती तेल कीमतों और पारिश्रिमिक खर्च में तेजी से मुद्रास्फीति ऊपर बनी रह सकती है। उनका मानना है कि अल्पावधि में प्रतिफल (bond yields) मौजूदा 7.23 प्रतिशत से बढ़कर 7.5 प्रतिशत पर पहुंच सकता है।
इस हालात को ध्यान में रखकर विश्लेषकों ने निवेशकों को चार से छह वर्ष की परिपवक्ता अवधि वाले फंडों या अन्य योजनाओं में पैसा लगाने का सुझाव दिया है। दीर्घावधि निवेशक खासकर सात वर्षों से अधिक की अवधि में सतर्कता के साथ निवेश आवंटन पर विचार कर सकते हैं।
ऐक्सिस म्युचुअल फंड में फिक्स्ड इनकम के सह-प्रमुख देवांग शाह का कहना है, ‘10 वर्षीय बॉन्ड प्रतिफल अल्पावधि में बढ़कर 7.3 प्रतिशत पर पहुंच सकता है, लेकिन उसके बाद इसमें एक साल के अंदर 25-40 आधार अंक तक की नरमी आ सकती है। निवेशक अल्पावधि-मध्यावधि डेट फंडों में पैसा लगाने पर विचार कर सकते हैं।’
भारत में म्युचुअल फंडों के संगठन (एम्फी) द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़े के अनुसार डेट फंडों में जुलाई के महीने में 61,440.08 करोड़ रुपये का शुद्ध पूंजी प्रवाह दर्ज किया गया, जबकि जून में 14,135.52 करोड़ रुपये की बिकवाली दर्ज की गई थी।
बढ़ता प्रतिफल
पिछले महीने के दौरान, भारत में 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल 14.7 प्रतिशत तक बढ़कर 7.218 प्रतिशत हो गया था। इस बीच, अमेरिका में यह 4.35 प्रतिशत की 17 वर्षीय ऊंचाई पर पहुंच गया और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सख्त रुख की वजह से समान अवधि के दौरान 50.8 आधार अंक चढ़ गया।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत में अल्पावधि बॉन्डों पर प्रतिफल पर सख्त तरलता का असर दिख सकता है। आरबीआई ने सभी बैंकों के लिए 12 अगस्त से 10 प्रतिशत की नकदी आरक्षी अनुपात को बरकरार रखने की व्यवस्था पर जोर दिया है।
इस पहल के बाद अतिरिक्त नकदी 20 अगस्त तक घटकर 53,800 करोड़ रुपये रह गई जो 10 अगस्त को 2.6 लाख करोड़ रुपये थी। 10 अगस्त को ही आरबीआई ने इस संबंध में नीति की घोषणा की थी। एक वर्षीय और दो वर्षीय सरकारी बॉन्डों पर प्रतिफल 10 अगस्त से 8 आधार अंक और 4 आधार अंक तक बढ़ा है।
एवेंडस वेल्थ मैनेजमेंट की कार्यकारी निदेशक एवं प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) स्वाति सिंह ने कहा, ‘अगले 3 से 6 महीने बॉन्ड बाजारों के लिए महत्वपूर्ण होंगे। हमें 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल मुद्रास्फीति दबाव की वजह से बढ़कर 7.5 प्रतिशत पर पहुंच जाने का अनुमान है।
सब्जियों की कीमतों, बिजली की दरों में वृद्धि और ग्रामीण पारिश्रमिक वृद्धि की वजह से मुद्रास्फीति दबाव बढ़ सकता है। हमारा मानना है कि इससे आरबीआई को अचानक दर वृद्धि करने का कदम उठाना पड़ सकता है।’अपनी अगस्त की मौद्रिक नीति में आरबीआई ने रीपो दर लगातार तीसरी बैठक में 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनाए रखी।
जुलाई में उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर 7.44 प्रतिशत हो गई, जो अप्रैल 2022 के बाद से सर्वाधिक थी।